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हिंदू संस्कृति में पंचांग का महत्व

हिंदू संस्कृति में पंचांग का अपना विशेष महत्व है। जीवन के विभिन्न संस्कारों, यात्राओं, किसी कार्य के आरंभ आदि में पंचांग की सहायता ली जाती है। उद्देश्य केवल एक होता है - व्यक्ति और समाज के जीवन को सुखमय बनाना। अयन, विषुव, ऋतु, सौर एवं चंद्र, पक्ष, तिथि (सूर्य एवं चंद्र उदयास्त सहित), दिनमान, रात्रिमान और नक्षत्र पंचांग के मुख्य अंग हैं। इन सारे तथ्यों का विश्लेषण गणित के आधार पर किया जाता है। सौर मास से संक्रांतियां, षष्ठि, संवत्सर और वारों के आकलन को भी इस व्यवस्था से जोड़कर...
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ज्योतिष विद्या का मेरुदंड “नक्षत्र”

ज्योतिष विद्या का मेरुदंड ”नक्षत्र“ है। ऋषियों एवं आचार्यों ने सर्वप्रथम नक्षत्र आधारित ज्योतिषीय सिद्धांत ही प्रतिपादित किए थे। ”न क्षरति न सरति इति नक्षत्र“। नक्षत्रों के विभिन्न विभाजनों पर आधारित फलित के सूत्र दिए गए हैं। इसी में एक विभाजन 3020‘ या 200 कला का है। यहां 27 नक्षत्र 108 चरणों में विभक्त हैं। विशेष स्थिति का नक्षत्र विशेष फलद होता है और सूक्ष्मता के लिए नक्षत्र का विशेष चरण महत्वपूर्ण होता है। जैसे 64वां चरण (नवांश) अति प्रचारित है जो आपके संज्ञान में होगा। 27 नक्षत्रों में निम्नलिखित...
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बच्चों का पढाई में मन क्यूँ नहीं लगता : ज्योतिष्य विश्लेषण

बच्चों के पढ़ाई में मन नहीं लगने के कारण माता-पिता चिंतित रहते हैं, जो स्वाभाविक है। इसका एक कारण चित्त की चंचलता हो सकती है। दूसरा कारण मन के कारक चंद्र का दुर्बल होना होता है। वहीं मन का प्रतिनिधित्व करने वाले दूसरे भाव या उसके स्वामी का पीड़ित होना भी इसका एक कारण है। शिक्षा के कारण ग्रहों बृहस्पति (ज्ञान) और बुध (बुद्धि) अशुभ होने की स्थिति में भी जातक की शिक्षा अधूरी रह सकती है। यहां मन के कारक चंद्र की उन विभिन्न स्थितियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत...
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