दाम्पत्य पुरुष और प्रकृति के संतुलन का पर्याय है। यह धरती और आकाश के संयोजन और वियोजन का प्रकटीकरण है। आकाश का एक पर्याय अंबर भी है जिसका अर्थ वस्त्र है। वह पृथ्वी को पूरी तरह अपने आवरण में रखता है। वह पृथ्वी के अस्तित्व से अछूता नहीं रहना चाहता। पुरुष और आकाश में कोई भिन्नता नहीं है। आकाश तत्व बृहस्पति का गुण है। स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव का कारक गुरु ही है। गुरु अर्थात गंभीर, वह जो अपने दायित्व के प्रति गंभीर रहे। क्या आज के पति...
कुतः सर्वमिदं जातं कस्मिश्च लयमेफ्यति। नियंता कश्च सर्वेषां वदस्व पुरूषोत्तम।। यह जगत किससे उत्पन्न हुआ है और किसमें जा कर विलीन हो जाता है? इस संसार का नियंता कौन है? हे पुरुषोत्तम ! यह बताने की कृपा करें। महेश्वरः परोऽव्यक्तः चर्तुव्यूह सनातनः। अननंता प्रमेयश्च नियंता सर्वतोमुखः।। सनातन अनंत अप्रमेय सर्वशक्तिमान महेश्वर सबके नियंता हैं। तत्व चिंतको ने उन्हें ही अव्यक्त कारण, नित्य, सत, असत्य रूप, प्रधान तथा प्रकृति कहा है। वह (परमात्मा) गंध, वर्ण तथा रस से हीन, शब्द और स्पर्श से वंचित, अजर, ध्रुव, अविनाशी, नित्य और अपनी आत्मा...
जन्मकुंडली में सात ग्रहों के साथ दो छाया ग्रह राहु एवं केतु को भी उनके गोचर के अनुसार स्थापित किया जाता है। वैदिक युग में राहु ग्रह नहीं था, बल्कि एक राक्षस था। पौराणिक युग में उस राक्षस के दो भाग हो गये। समुद्र मंथन के पश्चात् मिले अमृत को देवताओं में बांटते समय धोखे से अमृतपान करने के पश्चात राक्षस का सिर भगवान श्री हरि विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र द्वारा धड़ से अलग हो गया। सिर-राहु में तथा धड़ केतु में अमर हो गया। पौराणिक गाथाआंे में राहु-केतु सर्प...
आधुनिक युग में जहां मानव शरीर में होने वाले रोगों के कारणों को जानने के लिए आधुनिक उपकरणों की सहायता लेते हैं वहीं वैदिक काल में वैद्य, हकीम, ज्योतिष की सहायता ले रोगों के कारणों की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर उपचार करते थे और यह भी जान लेते थे कि उपचार से सफलता प्राप्त होगी या नहीं। ज्योतिष के अनुसार रोग की उत्पत्ति होना, ग्रह, नक्षत्र एवं राशियों पर निर्भर करता है क्योंकि जन्मकुंडली उस आकाशीय पिंडों का चित्रण है जो जन्म के समय जातक के शरीर को प्रभावित करते...
शनि को ब्रह्माण्ड का बैलेंस व्हील माना जाता है अर्थात् शनि सृष्टि के संतुलन चक्र का नियामक है। क्योंकि बैलेंस शनि का मुख्य गुण है इसलिए यह बैलेंस की कारक राशि तुला में अतिप्रसन्न अर्थात् उच्चराशिस्थ होते हैं तथा व्यावसायिक जीवन में अधिक संतुलन, सुरक्षा व स्थिरता अर्थात् जाॅब सैक्यूरिटी आदि देने में समर्थ होते हैं। इसे न्याय का कारक इसलिए माना जाता है क्योंकि यह मनुष्य को उसकी गलतियों और पाप कर्मों के लिए दण्डित करके मानवता की रक्षा करता है और सृष्टि में संतुलन स्थापित करने की प्रक्रिया...
ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह के अनेक नाम हैं - सूर्य पुत्र, अस्ति, शनैश्चर इत्यादि। अन्य ग्रहों की अपेक्षा जो ग्रह धीरे-धीरे चलता हुआ दिखाई देता है उसे ही हमारे ऋषि मुनियों ने ‘‘शनैश्चर ‘‘अथवा ’शनि’ कहा है। पाश्चात्य ज्योतिष में इसे ‘‘सैटर्न’’ कहते हैं। जनसाधारण में इसे सर्वाधिक आतंकवादी ग्रह के रूप में जाना जाता है। ऐसी धारणा है कि शनि की महादशा, ढैया अथवा साढ़ेसाती कष्टकारी या दुःखदायी ही होती है। भारतीय ज्योतिष में शनि को न्यायाधीश माना गया है। किंतु ‘शनि’ एक ऐसा ग्रह है जो विपत्तियों,...
मानव जीवन और रोग का अटूट संबंध है। विश्व में ऐसा कोई जातक नहीं है, जिसे कभी कोई रोग न हुआ हो, चाहे वह छोटा रोग हो, चाहे बड़ा। पूर्व जन्म के अशुभ कर्मों के कारण जातक को रोग होते हैं। ज्योतिष के आधार पर रोग, उसकी तीव्रता तथा उसके समयावधि का आकलन किया जा सकता है। प्रत्येक राशि, नक्षत्र, ग्रह और भाव किसी न किसी रोग के कारक होते हैं। ज्योतिष की वह शाखा, जो राशि, नक्षत्र ग्रह तथा भाव के आधार पर रोग का ज्ञान कराती है, चिकित्सा...