archive#महाकाल_धाम

Other Articles

सम्राट अशोक महान और महाकाल की कथा

  सम्राट अशोक महान (मौर्य वंश) कथा: दीप्ति-युग का मौर्य सम्राट अशोक, कलिंगयुद्ध के पश्चात् अहिंसा मार्ग अवलम्बन के लिए विख्यात हुआ। परन्तु कम ही लोग जानते हैं कि दिल्ली-उत्तराखण्ड मार्ग से निकल कर जब अशोक अमलेश्वर की गुफा में पहुँचा, तब उसने स्वयं को महाकाल के चरणों में अर्पित कर दिया। उसने प्रत्येक पूर्णिमा को वहाँ ‘अमलेश्वर-स्नान’ किया। सम्राट ने आदेश दिया कि मौर्य साम्राज्य में सभी जजमानों को वार्षिक पिंडदान-पुण्यश्लोक अर्पित करे। विजय-पर्वों पर राजा अशोक महाकाल की आरती तथा नंदी-वन्दना अनिवार्य करवा कर स्वकीयं राज्य को पितृदोष-मुक्ति...
Other Articles

महाकाल और कलचुरी राजकुमार रुद्रसेन की कथा

“भयमोचन विभूति: कलचुरी राजकुमार रुद्रसेन की कथा” भयभूमि: अभूतपूर्व आतंक संवत् 1242 — कलचुरी वंश का नितांत प्रगतिशील राजकुमार रुद्रसेन अपनी सभा में ही भयभीत दिखता था। राजमहल के आँगन में प्रत्येक शोर, पशु-मंत्र और काले बादलों के गर्जन से ही उसका हृदय कांप उठता। पुरोवासी-मंत्री भी समझ न पाए कि स्वयम् पराक्रमी रुद्रसेन को कौन-सा दैवीय भय ग्रस्त कर रहा। रातों को वह जगकर झूलते फाफूंद की छवि देखता, मानो कालरात्रि स्वयं उसका साया हो। श्लोकः (शार्दूलविक्रीट, १९ मात्राः) तमसो मे क्लिन्नचेताः क्लन्ना पथिकपादयोः क्रन्दन्ति । किमस्मिन् कालरात्रौ कर्तव्यं,...
Other Articles

महाकाल धाम और व्यापारी रुद्रवर्धन की कथा

व्यापारविमोचन: व्यापारी रुद्रवर्धन की कथा विनाशवृत्तः संवत् 1321 — रत्नग्राम के सुप्रिय व्यापारी रुद्रवर्धन ने वस्त्र–मसालों के व्यापार में अपना सर्वस्व लगा दिया। बड़े कर्ज़ और तीव्र प्रतिस्पर्धा के कारण उसका घर-बार दहक उठा। मित्र ही विश्वासघात कर गए; बाजार में नामोनिशान तक मिटने को आया। रुद्रवर्धन स्वयं भी निराशा की अंधेरी गहराइयों में धंस चुका था। श्लोकः (शार्दूलविक्रीट, १९ मात्राः) व्यपाद्य भावत्यथ महाप्रयासो दूरीभवतः । केन कर्मणा नश्यति वणिज्यं? कर्मश्चैव रुद्रवत् ॥ दिव्यस्वप्ननिर्देशः एक संध्या, जब रुद्रवर्धन सकरा कर्ज़ चुकाने हेतु चित्त-बेताल बैठा, तब स्वप्न में महाकाल ने वरुणागपरिधान...
mahakal dham amleshwar

श्री महाकाल अमलेश्वर स्तुति

पाठेन स्तोत्रस्य अमलेश्वरस्य, सदा महेशस्य कृपा प्रसन्ना। यस्यापि भाग्यं लघु वा दुरात्मा, तं सोऽपि कुर्यात् शिवतुल्यधीरम्॥ जो भी इस श्रीअमलेश्वर...