
पाठेन स्तोत्रस्य अमलेश्वरस्य,
सदा महेशस्य कृपा प्रसन्ना।
यस्यापि भाग्यं लघु वा दुरात्मा,
तं सोऽपि कुर्यात् शिवतुल्यधीरम्॥
जो भी इस श्रीअमलेश्वर स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है,
महेश्वर स्वयं उसकी ओर कृपा से दृष्टि डालते हैं।
चाहे उसका भाग्य दुर्बल हो या स्वभाव कठिन —
शिव उसे भी अपने समान शांत और तेजस्वी बना देते हैं।
दिने दिने दु:खमपि क्षयं याति,
गृहं प्रसादं शिववाक्यमेति।
स्त्री वा पुमान् बालक वृद्धको वा,
सर्वे लभंते त्रिकालदर्शनम्॥
इस स्तुति का नियमित पाठ करते हुए व्यक्ति के दुख स्वयं लुप्त हो जाते हैं।
घर में शांति, समृद्धि, और शिववाणी की शक्ति का वास होता है।
स्त्री, पुरुष, बालक या वृद्ध — सभी को तीनों कालों में (भूत-भविष्य-वर्तमान) शिव का संरक्षण प्राप्त होता है।
रोगा न बाधन्ति, रिपवो न जयन्ति,
वाणी प्रसन्ना, मनश्च निर्मलम्।
धनं च लभ्येत्, यशसः प्रवृद्धिः —
भवेत् सदा अमलेश्वरानुग्रहेण॥
शरीर रोगमुक्त होता है, शत्रु पराजित होते हैं,
वाणी मधुर होती है, और मन निर्मल रहता है।
धन, यश और सद्गुण — ये सब श्री अमलेश्वर के अनुग्रह से सहज प्राप्त होते हैं।
एकवारं पठित्वा यशः लभेत,
द्विवारं पठित्वा भयात् विमुक्तः।
त्रिवारमपि पठन् स्वयमेव,
साक्षात् अमलेश्वरतुल्य तेजस्वी॥
एक बार पाठ करने से यश,
दो बार पाठ करने से भय से मुक्ति,
और यदि कोई तीन बार पाठ करे —
तो वह स्वयं अमलेश्वर के तुल्य तेजस्वी हो जाता है।
तस्माद् पठेत् भक्तियुतः प्रजाना: —
गृहे गृहे शोभताम् शिवस्तोत्रम्।
यदा जपंते हरदत्तवाचं —
तदा भवेत् सौख्यमयं हि जीवनम्॥
इसलिए हे भक्तों, इसे श्रद्धापूर्वक पढ़ा करो।
हर घर में शिवस्तोत्र की गूंज हो — यही मंगलकामना है।
जब यह स्तोत्र हर ह्रदय से गूंजता है,
तब जीवन स्वयं ही सौख्य से भर जाता है
१. अमलेश्वरं खारुन तीर संस्थं विशुद्ध चेताः प्रणमन्ति यत्र।
ज्योतिर्मयं भावनम उग्ररूपं महेश मीशं शरणं प्रपद्ये॥
२. कालानलं ध्याननि मीलिताङ्कं योगीन्द्र गम्यं त्रिनयं कृपालुम्।
संसार पाशात् परि पाहि नित्यं त्वाममलेश्वर नमामि शम्भो॥
३. खारून पूर्णस्य जलस्य पारे स्थितं सदा भक्त हितं दयालुम्।
गौरी सहायं शिव मेक मीडे मोहा पहं मृत्युहरं सुरेशम्॥
४. भस्माङ्ग रागं रुचिरं विभान्तं त्रिशूल धारं मृग नाभिपूर्णम्।
कामाङ्ग नाशं शमि तार्ति राशिं अमलेश्वरम भजे भक्तिपूर्वम्॥
५. वेदान्त वेद्यं हृदि भाव गम्यं लीनं समस्तेषु च सत्त्व रूपम्।
निर्वाणमूलं निजधाम युक्तं शान्तं महेशं शरणं प्रपद्ये॥
६. दिग्दन्तिनादैः सुत नूपुरैश्च गुञ्ज द्विनादै र्भजनैः सनाथम्।
प्रसन्न वक्त्रं करुणैक पूर्णं प्रणम्य नित्यं शिवमेक मीशम्॥
७. मन्दाकिनी मस्तक शोभिपादं विलोक्य भक्ताः श्रमहीन यात्राः।
लभन्ति सौख्यं च सदा समृद्धिं नमामि तं देव महेश मेकम्॥
८. शृङ्गार मूर्तिं भवभीति हर्ताम शिवं सदा सत्त्व गुणैक नाथम्।
सर्वप्रदं सर्वमय प्रकाशं त्वाममलेश्वर नमामि नित्यम्॥
९. तपो बला राधित मन्त्र गम्यं सर्वार्थदं सिद्धि विनायकं च।
कामेषु नित्यं वरदं च भक्तेः प्रभुं भजेऽहं हृदि भाव पूर्णम्॥
१०. जगच्च कारेश्वर भूतरूप यमान्तक त्वं परमार्थ बन्धो।
भवाब्धि पारं कृपया करोषि त्वदीय मूलं शरणं गतोऽहम्॥
११. न मन्दिरं किंचि दिदं विशेषं त्वदीय सान्निध्य वशात् पवित्रम्।
प्रपन्नलोकेs खिलसिद्धि संस्थं प्रणम्य नित्यं शिवमेक मीशम्॥
१२. द्वादश मेतत्तव नामगीतं पठेन्नरः श्रद्धयुतो निशङ्कम्।
स सर्वकामान् लभते सुखानि शिवं भजेत शाश्वत मेक मेकम्॥