वास्तु शास्त्र का पालन करें और जीवन स्वस्थ रखें
वास्तु शास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ: समरांगण सूत्रधार, मानसार, विश्वकर्मा प्रकाश, नारद संहिता, बृहतसंहिता, वास्तु रत्नावली, भारतीय वास्तु शास्त्र, मुहूत्र्त मार्तंड आदि वास्तुज्ञान के भंडार हैं। अमरकोष हलायुध कोष के अनुसार वास्तुगृह निर्माण की वह कला है, जो ईशान आदि कोण से आरंभ होती है और घर को विघ्नों, प्राकृतिक उत्पातों और उपद्रवों से बचाती है।
ब्रह्मा जी ने विश्वकर्मा जी को संसार निर्माण के लिए नियुक्त किया था। इसका उद्देश्य था कि गृह स्वामी को भवन शुभफल दे, पुत्र, पौत्रादि, सुख, लक्ष्मी, धन और वैभव को बढ़ाने वाला हो।
वास्तु दोष से मुक्ति के लिए पंचतत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश चारों दिशाएं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण तथा चारों कोण नैत्य, ईशान, वायव्य, अग्नि एवं ब्रह्म स्थान (केंद्र) को संतुलित करना आवश्यक है।
देखने में आ रहा है कि आजकल पुरूषों को पहले की तुलना में ज्यादा शारीरिक एवं मानसिक रोग हो रहे है। यह तय कि विज्ञान ने बहुत उन्नति की है। मेडिकल सांईस के कई अविष्कार मनुष्य के जटिल रोगों को दूर करने में सहायक हो रहे है। किंतु विज्ञान आधुनिक चिकित्सा की इतनी तरक्की के बाद भी मनुष्य के रोग घटने की बजाए, बढ़ते ही जा रहे है। आज नई-नई और असाध्य बीमारियां जन्म ले रही है प्रायः हर व्यक्ति किसी ना किसी रोग से पीडि़त है।
आधुनिक तकनीकों के कारण आजकल छोटे या बड़े भवनों की बनावट पहले के भवनों की तुलना में सुंदर व भव्य तो जरूर हो गई हैं, परंतु अब भवन आयताकार या चैकर न होकर अनियमित आकार के बनने लगे है। घरों की अनियमित आकार की बनावट के कारण ही उनमें वास्तुदोष उत्पन्न होते है। जो वहां रहने वालों को शारीरिक व मानसिक रोगी बनाने में अहम भूमिका निभाते है। यह एक अटल सत्य हे की वास्तु का रोगों से अभिन्न संबंध है।
किसी भी भवन में उत्तर पूर्वी भाग का संबंध जल तत्व से होता है अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से किसी भी मानव के शरीर में जल तत्व के असंतुलित होने से अनेक व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। अतः उत्तर पूर्व को जितना खुला एवं हल्का रखेंगे उतना ही अच्छा है इस दिशा में रसोई का निर्माण अशुभ है रसोई निर्माण करने पर उदर जनित रोगों का सामना करना पड़ता है परिवार के सदस्यों में तनाव बना रहता है इस दिशा में यदि भूमिगत जल भण्डारण की व्यवस्था हो तो घर में आने वाली जलापूर्ति की पाइप भी इसी दिशा में होना शुभ है।
भवन में ईशान कोण कटा हुआ नहीं होना चाहिए। कोण कटा होने से भवन में निवास करने वाले व्यक्ति रक्त विकार से ग्रस्त हो सकते है यौन रोगों में वृद्धि होती है प्रजनन क्षमता दुष्प्रभावित होती है। ईशान कोण में यदि उत्तर का स्थान अधिक ऊंचा है तो उस स्थान पर रहने वाली स्त्रियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ईशान के पूर्व का स्थान ऊंचा होने पर पुरुष दुष्प्रभावित होते हैं परिवार का कोई सदस्य बीमार हो तो उसे ईशान कोण में मुंह करके दवा का सेवन कराने से जल्दी स्वास्थ्य लाभ मिलता है। भवन के दक्षिण-पूर्व दिशा का संबंध अग्नि तत्व से होता है जिसे अग्नि कोण माना गया है। इस दिशा में रसोई का निर्माण करने से निवास करने वाले लोगों का स्वास्थ्य ठीक रहता है अगर इस दिशा मंे जल भण्डारण या जल स्त्रोत की व्यवस्था की जाती है तो उदर रोग, आंत संबंधी रोग एवं पित्त विकार आदि बीमारियों की संभावना रहती है।
दक्षिण-पूर्वी दिशा में दक्षिण का स्थान अधिक बढ़ा हो तो परिवार की स्त्रियों को शारीरिक और मानसिक कष्ट होते हैं। पूर्वी दिशा में दक्षिण का स्थान अधिक बढ़ा हो तो परिवार की स्त्रियों को शारीरिक और मानसिक कष्ट होते हैं। पूर्व का स्थान बढ़ा हुआ होने से पुरुषों को शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
दक्षिण-पश्चिम भाग का संबंध पृथ्वी तत्व से होता है अतः इसे ज्यादा खुला नहीं रखना चाहिए इस स्थान को हल्का व खुला रखने से अनेक प्रकार की शारीरिक बीमारियों एवं मानसिक व्याधियों का शिकार होना पड़ता है। निवास करने वाले सदस्यों में निराशा तनाव एवं क्रोध उत्पन्न रहता है अतः इस स्थान को सबसे भारी रखना श्रेष्ठकर है यह भाग भवन के अन्य भागों से कटा हुआ नहीं होना चाहिए वरना मधुमेय की बीमारी, ज्यादा सोचना अतिचेष्टा तथा अति जागरुकता जैसी व्याधियां उत्पन्न होती हैं।
दक्षिण-पश्चिम में दक्षिण का भाग अधिक बढ़ा हुआ अथवा नीचा हो तो उसमें निवास करने वाली स्त्रियों के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है पश्चिमी भाग अगर अधिक बढ़ा हुआ और अधिक नीचा हो तो पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः दक्षिण-पश्चिम के कोण को न तो बढ़ायें और न छोटा करें। इस स्थान को भवन में सबसे ज्यादा भारी रखना शुभ है।
भवन के उत्तर-पश्चिम भाग वायव्य कोण का संबंध वायु तत्व से होता है मानव के प्राणों का वायु से सीधा संबंध है अतः इस स्थान को खुला रखना शुभ है इस स्थान में भारी सामान नहीं रखना चाहिए एवं भारी निर्माण भी नहीं करवाना चाहिए। भारी निर्माण करवाने से वायु विकार तथा मानसिक रोगों की संभावना बढ़ जाती है। इसके धरातल का उत्तर -पूर्व के अपेक्षा थोड़ा ऊंचा किंतु दक्षिण-पूर्व एवं दक्षिण-पश्चिम से कुछ नीचा होना शुभ है। भवन के इस भाग में ऊपर का स्थान अधिक बड़ा होने से परिवार की स्त्रियों को त्वचा संबंधी रोग जैसे एग्जिमा, एलर्जी आदि बीमारियों की संभावना रहती है।
यदि उत्तर की अपेक्षा यदि पश्चिम का स्थान अधिक बढ़ा हुआ हो तो पुरुषों को शारीरिक व्याधियां होने की संभावना रहती है। वास्तु शास्त्र में भवन के मध्य या केंद्र ब्रह्म स्थान को अति महत्वपूर्ण माना गया है। वास्तु में इसका वही महत्व है जो मानव शरीर में नाभि का होता है।
आकाश तत्व से संबंधित होने के कारण इस स्थान को खुला छोड़ना श्रेयस्कर होता है। इस स्थान पर किसी भी प्रकार की गंदगी होने से निवास करने वाले प्राणियों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बनी रहती हैं इस स्थान पर विशेषकर शौचालय सीढ़ियां अथवा गटर, सैप्टिक टैंक आदि का निर्माण नहीं कराना चाहिए अन्यथा श्रवण दोष पैदा होते हैं एवं विकास कार्य प्रभावित होते हैं ब्रह्म स्थान खुला रखने से अनेक परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
इन मुख्य वास्तु दोषी के कारन होते हैं पुरुषों एवं महिलाओं में रोग (बीमारियां)—-
आइये जानते हे (देखते है) कि वह कौन से ऐसे महत्वपूर्ण वास्तुदोष है जिसके कारण पुरूषों में विभिन्न प्रकार के रोग पैदा होते है जो कभी-कभी उनका जीवन भी लील लेते है।
– यदि घर का नैऋत्य कोण (SW), विशेषतौर पर पश्चिम नैऋत्य (West of the South West) किसी प्रकार से नीचा हो या वहां किसी भी प्रकार का भूमिगत पानी का टैंक, कुआ, बोरवेल, सैप्टिक टैंक इत्यादि हो तो वहां रहने वाले पुरूष सदस्य अक्सर रोगों से पीडि़त रहेगें और उन्हें मृत्यु-भय बना रहेगा।
– अगर नैऋत्य कोण पर ऊँचाई पर हो, और दक्षिण और नैऋत्य के बीच में या नैऋत्य और पश्चिम के बीच में कुएं, गड्ढे या चैम्बर खोदे जायें या मोरी बनायी जाय तो उस घर का मालिक ऐसी बीमारी से पीडि़त हो जाएगा जिसका इलाज नहीं हो।
-पूर्व दिशा में खाली जगह न हो और पश्चिम दिशा की ओर बरामदे को ढलाऊ बनाकर घर बना हो तो वहां रहने वालो को आंखों की बीमारी, लकवा आदि बीमारियां होती है।
– दक्षिण दिशा की ओर घर का द्वार हो और पूर्व-उत्तर की हद तक निर्माण किया गया हो तथा पश्चिम में खाली जगह हो और प्लाट में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर ढलान हो, पश्चिम में भूमिगत पानी का स्रोत हो तो ऐसे घर का मालिक अल्पायु में ही भयंकर रोगों का शिकार होगा।
– नैऋत्य (SW) या पश्चिम-नैऋत्य (West of the South West) में कम्पाऊण्ड वाल या घर का द्वार हो तो घर के लोग बदनामी, जेल, एक्सीडेंट या खुदकुशी के शिकार होंगे। हार्ट अटैक, आपरेशन, एक्सिडेन्ट, हत्या, लकवा अर्थात किसी भी प्रकार की असामयिक मृत्यु का शिकार होगें।
– पूर्व, आग्नेय कोण, दक्षिण, पश्चिम, नैऋत्य कोण और वायव्य कोण, उत्तर और ईशान कोण से किसी भी प्रकार से नीचे हो तो घर के स्वामी की पत्नी का निधन हो जाएगा। उसे आर्थिक समस्याएं आएगी और अंत में उसकी जीवन यात्रा भी समाप्त हो जाएगी। वह लाईलाज बीमारी से पीडि़त होगा।
– घर के पश्चिम नैऋत्य (West of the South West) मार्ग प्रहार हो तो घर के पुरूष उन्माद जैसे रोगों की शिकार होंगे। कहीं कहीं वे खुदकुशी भी कर सकते है।
– जिस घर का पश्चिम नैऋत्य कोण बढ़ा हुआ हो उस घर के पुरूषों को लम्बी बीमारियों या उनकी दर्दनाक मौत की संभावना बनती है।
– बड़े आकार के वह बंगले जिसके पश्चिम भाग में कम्पाऊण्ड वाल के अंदर झोपडि़यां, कमरे, चबूतरे इत्यादि के फर्श गृहगर्भ के स्तर से नीचे हो तो बीमारी, बदनामी और धनहानि होती है।
– पूर्व, आग्नेय और दक्षिण नीचे हो नैऋत्य, पश्चिम और वायव्य कोण उत्तर और ईशान से ऊँचे हों तो घर के मालिक की मृत्यु होगी, पुत्रों का नाश होगा।
– दक्षिण के साथ मिलकर अगर नैऋत्य में बढ़ाव होता तो मालिक रोगों, प्राण-भय और अकाल मृत्यु के भय से परेशान रहेगा।
-किसी घर के आंगन से पानी नैऋत्य की ओर से बाहर बहकर जाता है तो उस घर में अनहोनी की संभावना रहती है।
– ऊपर बताए गए वास्तु दोषों के साथ सभी या कुछ दोषों के होने के बाद भी कुछ खुशहाल परिवार देखने में आते है।
इसका कारण यह है कि जब घर का ईशान कोण कट जाता है या पूर्व व उत्तर की सड़कों के कारण उस स्थल का ईशान कोण कट गया हो, तो ऐसे में नैऋत्य में रहने वाले की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। परंतु ऐसे घरों में रहने वाले केवल पैसे को महत्व देते हुए अभिमान के कारण दूसरो की इज्जत करना, प्रेमपूर्वक व्यवहार रखना भूल जाते है। निश्चित ही हत्या करने वाले, हत्या और आत्महत्या के शिकार हुए लोग, दुर्घटनाओं में मरने वालों दीर्घव्याधिग्रस्तों के घरों की बनावट में यह दोष अवश्य होता है।
उपरोक्त वास्तुदोषों को दूर कर पुरूषों को होने वाले रोगों से बचा जा सकता है। ध्यान रहे वास्तुशास्त्र एक विज्ञान है। वास्तुदोष होने पर उनका निराकरण केवल वैज्ञानिक तरीके से ही करना चाहिए और उसका एकमात्र तरीका घर की बनावट में वास्तुनुकुल परिवर्तन कर वास्तुदोषों को दूर किया जाए।
इन वास्तुदोषों का प्रभाव होता हैं महिलाओं के स्वास्थ्य पर —-
आजकल की महिलाओं का स्वास्थ्य चार-पांच दशक पहले की महिलाओं की तुलना में ज्यादा खराब रहने लगा है। रहन-सहन, खान-पान इत्यादि हर प्रकार की सावधानियां बरतने के बाद भी महिलाओं में रोग बढ़ते ही जा रहे है।
वास्तु का रोगों से अभिन्न संबंध है। आजकल बनने वाले घरों की बनावट में बहुत ज्यादा वास्तुदोष होते है। पिछले कुछ दशकों से आर्किटेक्ट मकानों को सुंदरता प्रदान करने के लिए अनियमित आकार के मकानों को महत्त्व देने लगे है। जिस कारण मकान बनाते समय जाने-अनजाने वास्तु सिद्धांतों की अवहेलना होती रहती है।
चाहे महिला हो या पुरूष उनकी हर प्रकार की बीमारी में वास्तुदोष की भी अपनी एक महत्त्व भूमिका अवश्य रहती है। वास्तुदोष के कारण घर में सकारात्क और नकारात्क ऊर्जा के बीच असंतुलन पैदा हो जाता है। जो महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके जीवन पर भी प्रभाव डालता है। देखते है ऐसे कौन से वास्तु दोष है जो घर में ऊर्जा के असंतुलन का कारण बनते है।
-जिस घर का आगे का भाग टूटा हुआ, प्लास्टर उखड़ा हुआ या सामने की दीवार में दरार, टूटी फूटी या किसी प्रकार से भी खराब हो रही हो उस घर की मालकिन का स्वास्थ्य खराब रहता है उसे मानसिक अशान्ति रहती है और हमेशा अप्रसन्न उदास रहती हैं।
– किसी घर का नैऋत्य कोण (SW), विशेषतौर पर दक्षिण नैऋत्य (South of the South West) किसी भी प्रकार से नीचा हो या वहां किसी भी प्रकार का भूमिगत पानी का टैंक, कुआ, बोरवेल, सैप्टिक टैंक इत्यादि हो तो वहां रहने वाली महिलाएं सदस्य अक्सर रोगों से पीडि़त रहेगी और उन्हें मृत्यु-भय बना रहेगा।
-उत्तर (North) और ईशान (North east) ऊँचा हो और बाकी सभी दिशाए व कोण पूर्व (East), आग्नेय (South east), दक्षिण (South), पश्चिम (West), नैऋत्य (South west) और वायव्य (North west) नीचे हो तो घर की स्त्री को लाईलाज बीमारी होती है और असामयिक मृत्यु की संभावना प्रबल हो जाती है।
-अगर उत्तर, ईशान और पूर्व से नैऋत्य और पश्चिम निचले हो तथा आग्नेय, दक्षिण और वायव्य ऊँचे हो तो जबरदस्त आर्थिक हानि होगी उस घर का मालिक कर्ज से परेशान होगा। उसकी पुत्री व पत्नी लम्बी बीमारियों से पीडि़त होगी।
-उत्तर, ईशान और पूर्व से नैऋत्य, पश्चिम और वायव्य निचले, आग्नेय और दक्षिण ऊँचे होने पर उस घर के मालिक की पत्नी की या तो असामयिक मृत्यु हो जाएगी या वह लम्बी बीमारी से परेशान रहेगी। ऐसे बने घर में हमेशा बीमारी, कलह, शत्रुता बनी रहती है।
-घर का आग्नेय नीचा हो, और आग्नेय और पूर्व के बीच में या आग्नेय और दक्षिण के बीच में कुओं, पानी का टैंक, सैप्टिक टैंक, बोरवेल या मोरियां बनायी जाएं तो घर के सदस्यों को दीर्घकालिन व्याधियां होंगी विशेषतौर पर घर के मालिक की पत्नी दीर्घ व्याधि से पीडि़त होगी।
– ईशान कोण स्थित घर की उत्तर ईशान दिशा की लम्बाई घटे और उत्तरी हद तक निर्माण किया गया हो तो घर की मालकिन रोग से ग्रस्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी अथवा आर्थिक कठिनाईयों से परेशान होकर कठिन जीवन व्यतीत करेगी।
-घर के दक्षिण नैऋत्य (South of the South West) मार्ग प्रहार हो तो स्त्रियां उन्माद जैसे रोगों की शिकार होंगी। कहीं कहीं वे खुदकुशी भी कर सकती है।
– दक्षिण नैऋत्य मार्गप्रहार से उस घर की नारियां भयंकर रोगों से पीडि़त होंगी। इसके साथ नैऋत्य में कुआं, बोरवेल, भूमिगत पानी की टंकी अर्थात् किसी भी प्रकार से नीचा हो तो वे आत्महत्या कर सकती है या लम्बी बीमारी से उनकी मृत्यु हो सकती है।
– जिस घर का दक्षिण नैऋत्य कोण बढ़ा हुआ हो उस घर की स्त्रियों को लम्बी बीमारियों या उनकी दर्दनाक मौत की संभावना बनती है।
-उत्तर वायव्य में मार्ग प्रहार हो तो उस घर की स्त्रियां बीमार रहेगी। उत्तर वायव्य मार्ग प्रहार हो तो स्त्रियां न केवल बीमार होंगी, बल्कि घर वाले अनेक प्रकार के व्यसनों के शिकार होंगे।
-पूर्व दिशा में मुखद्वार हो और उत्तर दिशा की हद तक निर्माण किया हो, दक्षिण में खाली स्थल हो तथा नैऋत्य अगे्रत हो, तो उस घर की स्त्रियां दुर्घटनाग्रस्त होंगी।
-दक्षिण में घर का मुख्यद्वार हो और ईशान कोण तक भवन निर्माण किया गया हो दक्षिण दिशा खुली हो और वहां ढलाऊ बरामदा बनाया जाये तो ऐसे घर की मालकिन लाइलाज बीमारी से परेशान रहेगी। उस घर के बच्चे भी गलत रास्तों पर चलेंगे।
-घर के दक्षिण दिशा में अहाते का होना या खुला होना या सभी कमरों व बरामदों में दक्षिण का भाग नीचा हो तो उस घर की स्त्रियां सदैव रोगी रहती है, ऐसे घरों में अकाल मृत्यु की संभावना रहती है। परिवार में आर्थिक कष्ट रहता है।
-किसी घर के आंगन से पानी दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण की ओर से बाहर बह जाता तो उस घर की स्त्रियों के स्वास्थ्य के लिए शुभ नहीं होता है।
उपरोक्त वास्तुदोषों को दूर कर महिलाओं को होने वाले रोगों से बचा जा सकता है। ध्यान रहे वास्तुशास्त्र एक विज्ञान है। वास्तुदोष होने पर उनका निराकरण केवल वैज्ञानिक तरीके से ही करना चाहिए और उसका एकमात्र तरीका घर की बनावट में वास्तुनुकुल परिवर्तन कर वास्तुदोषों को दूर किया जाए।
ध्यान दीजिये ,वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन न करने से निम्न लिखित रोग हो सकते हैं—
पूर्व दिशा में दोष: यदि पूर्व दिशा का स्थान ऊंचा हो, तो गृह स्वामी गरीब होगा और उसकी संतान अस्वस्थ, मंदबुद्धि, पेट और यकृत की रोगी रहेगी।
– यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढाल पश्चिम दिशा की ओर हो, तो जातक आंखों की बीमारी से ग्रस्त और लकवे का शिकार होगा। – घर के पूर्वी भाग में कूड़ा-कचरा, पत्थर और मिट्टी के ढेर हांे, तो संतान हानि हो सकती है। – घर के पश्चिम में नीचा, या रिक्त स्थान हो, तो गृह स्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर की बीमारी से अल्प काल में मृत्यु को प्राप्त होगा। – यदि पूर्व की दीवार पश्चिम की दीवार से ऊंची हो, तो संतान की हानि होगी। – यदि पूर्व में शौचालय हो, तो घर की बहू-बेटियां अस्वस्थ रहेंगी। बचने के उपाय: – पूर्व में पानी, पानी की टंकी, टोंटी और कुआं लगाना शुभ है। – पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है। यह काल पुरुष का मुख है। पूर्वी फाटक पर ‘सूर्य यंत्र’ स्थापित करें और वास्तु मंगलकारी तोरण लगाएं। – पूर्वी भाग नीचा और खाली होने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगे। धन और वंश की वृद्धि होगी तथा यश और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। पश्चिम दिशा में दोष: पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है। यह काल पुरुष का पेट, गुप्तांग एवं प्रजनन अंग है। – यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो फेफड़े, मुख, छाती और चमड़ी के रोग होने की संभावना होगी। – यदि पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरुष संतान अस्वस्थ होगी। यदि पश्चिमी भाग का जल, या वर्षा का जल पश्चिम से हो कर, बाहर जाए तो पुरुष लंबी बीमारियों के शिकार होंगे। – यदि मुख्य द्वार पश्चिम दिशा वाला हो, तो घर के लोग बीमार रहेंगे। – यदि पश्चिम दिशा में दरारें हों, तो गृह स्वामी के गुप्तांग में बीमारी होगी। – यदि पश्चिम में अग्नि स्थान हो, तो गर्मी, पित्त और मस्से की शिकायतें हांगी। बचने के उपाय: घर में ‘वरुण यंत्र’, स्थापित करें। शनिवार को व्रत रखें और काले दान करें। पश्चिम की चारदीवारी ऊंची रखें। भारी वृक्ष लगाएं। पश्चिम में ढाल न रखें। उत्तर दिशा में दोष: – यदि उत्तर दिशा ऊंची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियां, थकावट, घुटने की बीमारियां बनी रहेंगी। – उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है। यह काल पुरुष का हृदय है। कुंडली का चतुर्थ भाव इसका कारक स्थान है। – यदि उत्तर दिशा उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियां रुग्ण हो जाएंगी। बचने के उपाय: यदि उत्तर में बरामदे की ढाल हो, तो स्वास्थ्य लाभ होगा और आयु में वृद्धि होगी।, पूजा घर में ‘बुध यंत्र’ स्थापित करें। बुधवार का व्रत रखें।, घर के प्रवेश द्वार पर संगीतमय घंटियां लगाएं। घर की दीवारों को हरे रंग का बनाएं। घर में तोता पालना शुभ है। – दक्षिण दिशा के दोष: – दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है। यह काल पुरुष का बायां सीना, बायां फेफड़ा और गुर्दा होता है। जन्मकुंडली का दशम भाव इसका कारक स्थान है। – यदि घर के दक्षिण में कुआं, दरार, कचरा, कूड़ादान, पुराना कबाड़ हों, तो गृहस्वामी को हृदय रोग, जोड़ों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आंखों की बीमारी और हाजमे की खराबी आदि हो सकते हैं। – दक्षिण में उत्तर से कम ऊंचा चबूतरा हो, तो जातक हृदय और आंखों के रोगों से पीड़ित होगा। – यदि दक्षिण द्वार नैर्ऋत्याभिमुख हो, तो दीर्घ व्याधियां, एवं अचानक मृत्यु देने वाला हो। – यदि दक्षिण भाग नीचा हो ओर उत्तर से अधिक खाली स्थान हो, तो घर की महिलाएं सदा अस्वस्थ रहेंगी। वे उच्च रक्तचाप, चोट, पाचन क्रिया की गड़बड़ी मासिक-धर्म में दोष, खून की कमी, अचानक मृत्यु, या दुर्घटना की शिकार होंगी। दक्षिण पिशाच का निवास है। इसलिए थोड़ी जगह खाली रख कर घर का निर्माण करवाएं। – यदि दक्षिण में कुआं, या जल हो, तो अचानक दुर्घटना से मृत्यु होगी। बचने के उपाय: यदि दक्षिण भाग ऊंचा हो, तो घर के लोग स्वस्थ एवं संपन्न होंगे। वास्तु मंगलकारी तोरण लगावें। हनुमान जी की उपासना करें। दक्षिणमुखी घर का जल उत्तर-पूर्व दिशा से हो कर बाहर निकले, तो स्वास्थ्य लाभ होगा। दक्षिण द्वार पर ‘मंगल यंत्र’ लगावें। दक्षिण में कमरे ऊंचे बनवाएं। घर के मुख्य फाटक के अंदर-बाहर दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणपति लगावें। रसोई के गलत स्थान पर होने से रोग: रक्तचाप, अफारा, अपच, अम्लता, मंदाग्नि, बदहज़मी, नाड़ी अवरुद्धता, लकवा और, मानसिक तनाव हांेगे। उत्तर-पूर्व में रसोई होना : यह जल का स्थान है। यदि यहां रसोई होगी, तो हृदय रोग, खांसी, अम्लता, मंदाग्नि, बदहज़मी, पेट में गड़बड़ी और आतों के रोग आदि होंगे। पूर्व में दोष होना: यदि पूर्व में रसोई हो, तो मधुमेह, मोटापा, कान के रोग और गुप्तांग में रोग उत्पन्न हो सकते हैं। उत्तर-पश्चिम में दोष होना: यदि रसोई पश्चिम में हो, तो पेट में गैस, चर्म के रोग, छाती में जलन, दिमाग के रोग आदि होंगे और स्वभाव में क्रोध रहेगा। रसोई दक्षिण-पश्चिम (नैर्ऋत्य कोण) में होना: नैर्ऋत्य कोण का संबंध पृथ्वी तत्व (मंगल) से है। दक्षिण पश्चिम का संबंध राहु से है। मंगल और राहु की युति होने से कई प्रकार के रोग उत्पन्न होंगे। रोग: कोलेस्ट्राॅल बढ़ने का रोग, नाड़ी विकार, रक्तचाप, सिर दर्द, लकवा, जोड़ों का दर्द, यकृत-गर्दन के रोग, चर्म रोग, आंखों और हृदय के रोग, पागलपन, कैंसर, टाइफायड जैसे रोग हो सकते हैं। दक्षिण-पूर्व में दोष होना: दक्षिण पूर्व में दोष होने से बहरापन, गूंगापन, तिल्ली के रोग, पीलिया, लीवर और छाती के रोग होने की संभावना रहती है।