॥ श्री महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् पुरश्चरण साधना विधि ॥
(“अयि गिरिनन्दिनी नन्दितमेदिनी” – यह स्तोत्र देवी दुर्गा की शक्ति, करुणा और महाविनाशिनी रूप की स्तुति है।)
🔱 1. पुरश्चरण क्यों करें?
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम् – आदिशंकराचार्यकृत यह स्तोत्र केवल स्तवन नहीं, बल्कि देवी की पूर्ण तांत्रिक, आध्यात्मिक, भौतिक और मानसिक शक्ति का संचयन है।
पुरश्चरण इसका विस्तारपूर्ण, नियमानुसार साधना रूप है:
उद्देश्य | फल |
---|---|
शक्ति साधना | आत्मबल, तेज, आकर्षण |
रोग-शत्रु नाश | भय, बाधा, तंत्र से रक्षा |
दरिद्रता नाश | दैविक कृपा, सौभाग्य |
मंत्र सिद्धि | मन्त्र साधनाओं की पूर्ति |
भक्ति, वैराग्य, मोक्षमार्ग | आत्मिक शांति और देवी दर्शन |
🔢 2. पुरश्चरण संख्या निर्धारण
स्तर | जप संख्या | अवधि सुझाव |
---|---|---|
लघु | 108 बार | 9-11 दिन |
मध्यम | 1008 बार | 21-40 दिन |
पूर्ण | 11,000 बार | 40 या 84 दिन |
विशिष्ट | 1,25,000 बार (जप+हवन सहित) | 108 दिन या नवरात्र साधना |
📌 एक पाठ = एक स्तोत्रपाठ (लगभग 30 श्लोक)
📍 3. स्थान, समय और पात्रता
तत्व | विधि |
---|---|
स्थान | शांत साधना कक्ष या मंदिर |
दिशा | पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख |
काल | ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4–6 बजे) या रात (8–12) |
वार | मंगलवार, शुक्रवार, या नवरात्रि/पूर्णिमा प्रारंभ |
शुद्धता | स्नान, श्वेत/लाल वस्त्र, सात्त्विक आहार |
लिंग | कोई भी साधक कर सकता है (ब्राह्मचर्य पालन आवश्यक) |
🌸 4. साधन-सामग्री
- देवी दुर्गा/महिषमर्दिनी का चित्र या यंत्र
- लाल या सफेद वस्त्र
- आसन: कंबल, कुस या मृगचर्म
- दीपक, धूप, पुष्प, चंदन, अक्षत
- नैवेद्य: मिश्री, फल, दूध, पंचामृत
- माला: रुद्राक्ष / चंदन / कमलगट्टा (108 मनके)
🪔 5. दैनिक साधना विधि (प्रति दिन)
🔰 1. संकल्प (आरंभ में)
ताम्रपात्र में जल, पुष्प लेकर संकल्प करें:
मम आत्मबल-वृद्ध्यर्थं, सम्पद्प्राप्त्यर्थं, शत्रुनाशाय,
श्रीमहिषमर्दिनी स्तोत्रस्य (उदा. १००८) पाठानां
पुरश्चरणं करिष्ये॥
🧘♀️ 2. पूजन और ध्यान
- दीप प्रज्वलित कर देवी का ध्यान करें:
सिंहवाहिनी चण्डेशि रक्तचामरधारिणि।
दंष्ट्राकरालवदना चण्डमुण्डविनाशिनि॥
- बीजमन्त्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ (108 बार)
📖 3. मुख्य पाठ: श्री महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम्
🔸 श्लोक प्रारंभ:
अयि गिरिनन्दिनी नन्दितमेदिनी विश्वविनोदिनि नन्दिनुते।
गिरिवरविन्यसितारिसुन्दरतारिलसत्कनकशैलसुते॥
🔸 प्रतिदिन नियत संख्या में जप करें (जैसे: 21, 51, 108 बार)।
🔸 जप के साथ कांपित पाठ (उच्च स्वर में) करें तो प्रभाव शीघ्र होता है।
🙏 4. समाप्ति / आरती / पुष्पांजलि
- आरती:
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी...
- पुष्प अर्पण: “त्वमेव माता च पिता त्वमेव…”
🏁 6. समापन विधि (पूर्णाहुति)
क्रिया | विधि |
---|---|
हवन | 108 आहुतियाँ – गाय के घी, तिल, गुड़, नारियल से |
तर्पण | जल+तिल से देवी, ऋषि, यंत्र तर्पण |
मार्जन | जल छिड़कें, शक्ति समाहित करें |
ब्राह्मण/कन्या पूजन | 5 ब्राह्मण या 9 कन्याओं को भोजन-वस्त्र-दक्षिणा |
📘 7. साधना ट्रैकर योजना (उदाहरण)
अवधि | प्रति दिन पाठ | कुल पाठ | समय |
---|---|---|---|
21 दिन | 48 पाठ | 1008 | ~1.5 घंटे |
40 दिन | 25 पाठ | 1000 | ~50-60 मिनट |
84 दिन | 12 पाठ | 1008 | ~25-30 मिनट |
📌 8. विशेष बिंदु
- नवरात्रि में यह साधना सर्वोत्तम मानी जाती है।
- स्तोत्र बीजमंत्रयुक्त है, इसलिए जप के साथ बीजमंत्र (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं…) का संयोजन करें।
- यदि समय कम हो, तो प्रतिदिन कम से कम 3 बार श्रद्धा से स्तोत्र पाठ करें।
🙏 अंत में:
श्री महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र के जप से देवी दुर्गा स्वयं साधक के हृदय में प्रतिष्ठित होती हैं। जो भय, रोग, बाधा, दरिद्रता से ग्रसित हो – उनके लिए यह साधना रामबाण है।
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम्
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोनिधिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दुर्मदरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि हासरते
शिखरिशिरोमणितुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
अयि शतखण्डविखण्डितरुण्डवितुण्डितशुण्डगजाधिपते
रिपुगजगण्डविदारणचण्डपराक्रमशौण्डमृगाधिपते ।
निजभुजदण्डविपाटितचण्डनिपाटितमुण्डभटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥
अयि रणदुर्मदशत्रुवधोद्धरदुर्धरनिर्जरशक्तिभृते
चतुरविचारधुरीणमहाशयदूतकृतप्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीहदुराशयदुर्मतिदानवदूतदुरन्तगते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥
अयि शरणागतवैरिवधूगणवीरवराभयदायिकरे
त्रिभुवनमस्तकशूलविरोधिशिरोधिकृतामलशूलकरे ।
धिमिधिमितामरदुन्दुभिनादमुहुर्मुखरीकृतदिङ्निकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥
अयि निजहुङ्कृतिमात्रनिराकृतधूम्रविलोचनधूम्रशते
समरविशोषितशोणितबीजसमुद्भवशोणितबीजलते।
शिव शिव शुम्भनिशुम्भमहाहवतर्पितभूतपिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥
धनुरनुषङ्गरणक्षणसङ्गपरिस्फुरदङ्गनटत्कटके
कनकपिशङ्गपृषत्कनिषङ्गरसद्भटशृङ्गहताबटुके ।
कृतचतुरङ्गबलक्षितिरङ्गघटद्बहुरङ्गरटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥
सुरललनाततथेयितथेयिकृताभिनयोदरनृत्यरते
कृतकुकुथः कुकुथो गडदादिकतालकुतूहलगानरते ।
धुधुकुटधुःकुटधिन्धिमितध्वनिधीरमृदङ्गनिनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥
जयजयजप्यजये जयशब्दपरस्तुतितत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमझङ्कृतनूपुरशिञ्जितमोहितभूतपते ।
नटितनटार्धनटीनटनायकनाटितनाट्यसुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥
अयि सुमनःसुमनःसुमनःसुमनःसुमनोरमकान्तियुते
श्रितरजनीरजनीरजनीरजनीरजनीकरवक्त्रवृते।
सुनयनविभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥
महितमहाहवमल्लमतल्लिकवल्लितरल्लकभल्लरते
विरचितवल्लिचपल्लितमल्लिकसल्लिकभिल्लिकवर्गवृते ।
श्रितकृतफुल्लसमुल्लसितारुणतल्लजपल्लववल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥
अविरलगण्डगलन्मदमेदुरमत्तमतङ्गजराजगते
त्रिभुवनभूषणभूतकलानिधिरूपपयोनिधिराजसुते ।
अयि सुदतीजनलालसमानसमोहनमन्मथराजमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥
कमलदलामलकोमलकान्तिकलाकुलिताऽतुलभालतले
सकलविलासकलानिलयक्रमकेलिचलत्कलहंसकुले।
अलिकुलसङ्कुलकुन्तलमण्डलमौलिमिलद्वकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
करमुरलीरववीजितकूजितलज्जितकोकिलमञ्जुमते
मिलितपुलिन्दमनोहरगुञ्जितरञ्जितशैलनिकुञ्जगते ।
निजगणभूतमहाशबरीगणसद्गुणसम्भृतकेलितते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
कटितटपीतदुकूलविचित्रमयूखतिरस्कृतचण्डरुचे
प्रणतसुरासुरमौलिमणिस्फुरदंशुलसन्नखचन्द्ररुचे।
जितकनकाचलमौलिमदोर्जितनिर्जरकुञ्जरकुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥
विजितसहस्रकरैकसहस्रकरैकसहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारकसङ्गरतारकशङ्करतारकसूनुसुते ।
सुरथसमाधिसमानसमाधिसमाधिसमाधिसुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किन्न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥
कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेऽङ्गणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि भवानि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं कलयन्ननुकूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दुमुखीसुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवतीकृपया किमु न क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥
अयि मयि दीनदयालुतया करुणापरया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयाऽसि यथाऽसि तथाऽनुमिताऽसि रमे ।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरु मे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥