
प्रदोष व्रत — परिचय (क्या है?)
प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत प्रिय व्रत है। यह व्रत हर माह की त्रयोदशी तिथि (Trayodashi) पर रखा जाता है — यानी चन्द्रमा की 13वीं तिथि पर। त्रयोदशी तिथि के संध्या-काल (शाम के समय) को “प्रदोष काल” कहते हैं, और उसी समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है। त्रयोदशी का अर्थ है “तेरहवीं तिथि”, और यह चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक मास में दो बार आती है — एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में।
प्रदोष काल — कब और क्यों पूजा करें?
प्रदोष काल वह समय होता है जब सूर्यास्त के बाद लगभग 1.5 से 2 घंटे तक का समय होता है, जिसे आज भी बहुत पवित्र माना गया है। इस समय भगवान शिव के सिद्धिबल का संयोग अधिक प्रभावशाली माना जाता है। पूजा, ध्यान, जाप आदि इसी समय में करना श्रेष्ठ फलदायी माना जाता है।
साल का आख़िरी प्रदोष व्रत — क्यों खास?
(a) यह साल का अंतिम प्रदोष व्रत है
साल 2025 का आखिरका प्रदोष व्रत है:
📅 17 दिसंबर 2025 (बुधवार)
इसे बुध प्रदोष व्रत कहते हैं क्योंकि यह बुधवार के दिन पड़ रहा है।
यह वर्ष का अंतिम प्रदोष व्रत होने के कारण आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। पूरे वर्ष में हम भगवान शिव की कृपा और रक्षा के लिए यह व्रत करते हैं, और साल के अंत में इसका होना विशेष फलदायक माना जाता है।
आख़िरी प्रदोष व्रत का विशेष महत्व
(a) शुभ योगों का निर्माण
इस दिन कई दुर्लभ और शुभ योग बन रहे हैं, जिनके कारण पूजा और व्रत का फल और भी अधिक मान्यता प्राप्त होता है:
👉 सर्वार्थ सिद्धि योग — सभी कार्यों का सिद्धि योग
👉 अमृत सिद्धि योग — अमृत समान फल देने वाला योग
👉 सुकर्मा योग — शुभ कार्यों के फलकारी योग
👉 धृति योग — धैर्य और सत्कर्मों का फल ज्यादा देना वाला योग
ऐसे योग दुर्लभ होते हैं, और इन शुभ संयोगों के समय शिवपूजा करने से भक्तों का जीवन, स्वास्थ्य, समृद्धि, मनोकामना और आध्यात्मिक उन्नति के लिए विशेष लाभ मिलता है।
प्रदोष व्रत का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
📌 (a) शिव की आराधना और उसके फल
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है। शिवजी को प्रदोष काल में प्रसन्न करने से:
✔ पापों से मुक्ति
✔ सभी बाधाओं का नाश
✔ हित, शांति, समृद्धि की प्राप्ति
✔ जीवन में सुख-शांति की वृद्धि
✔ मानसिक और आत्मिक बल की वृद्धि
✔ कष्ट, रोग और विपत्ति से रक्षा होती है
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति मन, वचन और कर्म से दिव्य आस्था लिए प्रदोष व्रत रखता है और सही विधि से पूजा करता है — उसके हर प्रकार के संकट दूर होते हैं।
2025 में आख़िरी प्रदोष व्रत — तिथि-समय📍
▶️ तिथि विवरण (Panchang)
📆 प्रदोष व्रत तिथि:
➡️ त्रयोदशी तिथि 16 दिसंबर रात 11:58 से शुरू होकर
➡️ 18 दिसंबर दोपहर 02:33 तक रहेगी।
लेकिन चूंकि 17 दिसंबर को पूरी तरह त्रयोदशी तिथि है, इसलिए यही दिन व्रत रखा जाता है।
📍 व्रत दिवस: बुधवार (Wednesday)
📍 व्रत नाम: बुध प्रदोष व्रत
प्रदोष काल पूजा मुहूर्त (लगभग)
⏰ शुभ प्रकाश समय: शाम 05:27 बजे से रात 08:11 बजे तक — यह वही समय है जब प्रदोष काल शुरू होता है और पूजा-अर्चना श्रेष्ठ मानती है।

पूजा विधि — कैसे करें प्रदोष व्रत?
प्रदोष व्रत के दिन पूजा करने की विधि नीचे साझा कर रहा हूँ:
🔹 (a) सुबह की तैयारी
✔ व्रत का संकल्प लें
✔ स्नान करें
✔ साफ-सुथरे वस्त्र पहनें
✔ घर में शिवलिंग स्थापित करें
(b) पूजा सामग्री
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शिवलिंग या शिव की तस्वीर
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बेलपत्र (Bilva leaves)
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दूध, जल, दही, शहद, घी
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चावल, धतूरा, फूल, फल
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ढोलक, घण्टी या घंटियाँ
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मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष mala
(c) पूजा क्रम
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व्रत का श्रीगणेश पूजा
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भगवान शिव का अभिषेक (दूध, जल, दही, घी, शहद)
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बेलपत्र, धतूरा, फूल चढ़ाना
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शिव-पार्वती का ध्यान एवं मंत्रजाप
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ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें
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प्रसाद वितरण और व्रत की कथा का पाठ
व्रत कथा और श्रद्धा भाव
प्रदोष व्रत की कथा प्रचलित है कि एक बार एक राजा ने शिवजी का सच्चे हृदय से व्रत किया। उसके राज्य में धन-समृद्धि बढ़ी, शत्रु विनष्ट हुए और राजपुत्रों का कल्याण हुआ। कथा कहती है कि भगवान शिव खुद प्रदोष काल में अपने भक्त को दर्शन देकर आशीर्वाद देते हैं।
इस कारण भक्तजन प्रदोष व्रत को केवल एक उपवास नहीं बल्कि जीवन-मार्ग पर आध्यात्मिक उन्नति, स्व-शुद्धि और ईश्वर के साथ गहरा संबंध मानते हैं।
प्रदोष व्रत के लौकिक और आध्यात्मिक लाभ
🪔 (a) आध्यात्मिक लाभ
✔ दिल में शांति
✔ मन में स्थिरता
✔ आत्मिक उन्नति
✔ भय, तनाव से मुक्ति
✔ पूर्वजों की आत्मा को शांति
(b) लौकिक लाभ
✔ स्वास्थ्य में सुधार
✔ सुख-समृद्धि
✔ नौकरी/व्यापार में सफलता
✔ धन-लाभ
✔ पारिवारिक सौहार्द
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत से शिवजी का आशीर्वाद मिलता है और जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव आता है।

साल भर के प्रदोष व्रत
साल 2025 में हर महीने दो-दो प्रदोष व्रत थे (शुक्रा-त्रयोदशी पंक्ति, जैसे जून, जुलाई, अगस्त आदि) और उनमें से यह 17 दिसंबर को आख़िरी प्रदोष व्रत था।
निष्कर्ष — क्यों यह व्रत खास?
👉 यह साल का आख़िरी प्रदोष व्रत है जिससे भक्त वर्ष का समापन भगवान शिव की आराधना के साथ करते हैं।
👉 इस दिन शुभ और दुर्लभ योग बन रहे हैं, जो पूजा के फल को और अधिक गुणा करते हैं।
👉 भगवान शिव को प्रसन्न करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि, भय-दुःख से मुक्ति तथा आत्मिक कल्याण मिलता है।





