
सनातन धर्म में विवाह पूर्व कुंडली मिलान का विधान है। कुंडली मिलान करने से वर और वधू के वैवाहिक जीवन की पूरी जानकारी प्राप्त हो जाती है। इससे गण, मैत्री, भाग्य, प्रकृति, स्वभाव, नाड़ी और भकूट दोष का पता चलता है। ज्योतिषयों की मानें तो कुंडली मिलान में समान नाड़ी मिलने पर शादी नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से शादी के उपरांत वैवाहिक जीवन में परेशानी आती है। ऐसी परिस्थिति में सुयोग्य एवं प्रकांड पंडित से सलाह लेकर ही परिणय सूत्र में बंधना चाहिए। वर और वधू के एक दूसरे को पसंद करने के संदर्भ में नाड़ी दोष का निवारण अनिवार्य है। वहीं, भकूट दोष लगने पर शादी के पश्चात वर और वधू को आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और वित्तीय परेशानी होती है।
भकूट क्या है?
ज्योतिष शास्त्र में भकूट का संबंध वर और वधू की चंद्र राशि से होता है। जब विवाह के लिए दो कुंडलियों का मिलान किया जाता है, तब दोनों की चंद्र राशियों के आपसी संबंध और दूरी को देखकर भकूट की गणना की जाती है।
अष्टकूट मिलान में भकूट सातवाँ कूट होता है और इसके अधिकतम 7 गुण निर्धारित हैं। यह कूट मुख्य रूप से विवाह के बाद के जीवन से जुड़ा होता है, जैसे—
- पति-पत्नी का मानसिक और भावनात्मक तालमेल
- आपसी प्रेम, विश्वास और समझ
- आर्थिक स्थिरता
- पारिवारिक सुख-शांति
- जीवन में उतार-चढ़ाव से निपटने की क्षमता
यदि भकूट अनुकूल हो तो दांपत्य जीवन में सामंजस्य बना रहता है, जबकि भकूट दोष होने पर रिश्ते में तनाव की संभावना बढ़ जाती है।
भकूट के प्रमुख प्रकार
- द्वि-द्वादश (2-12) भकूट दोष: जब वर और कन्या की चंद्र राशियाँ एक-दूसरे से 2 और 12वें स्थान पर हों (जैसे मेष-मीन, वृषभ-मेष), यह वित्तीय परेशानियों, कारोबार में नुकसान और अलगाव का कारण बन सकता है.
- नव-पंचम (5-9) भकूट दोष: जब चंद्र राशियाँ 5वें और 9वें स्थान पर हों (जैसे मेष-सिंह, वृषभ-कन्या), यह संतान प्राप्ति में देरी, रिश्तों में दूरियाँ और शारीरिक संबंध में बाधा ला सकता है.
- षडाष्टक (6-8) भकूट दोष: जब चंद्र राशियाँ 6वें और 8वें स्थान पर हों (जैसे मेष-कन्या, वृषभ-तुला), यह विवाह के बाद गंभीर शारीरिक कष्ट, स्वास्थ्य समस्याओं और मानसिक तनाव का कारण बन सकता है (इसे मृत्यु-षडाष्टक भी कहते हैं)

भकूट दोष के प्रभाव
भकूट दोष होने पर जीवन में निम्न समस्याएँ देखी जा सकती हैं—
- पति-पत्नी के बीच प्रेम की कमी
- छोटी-छोटी बातों पर झगड़े
- आर्थिक अस्थिरता
- ससुराल पक्ष से तनाव
- मानसिक अशांति
क्या भकूट दोष हमेशा अशुभ होता है?
ज्योतिष एक गहन और समग्र शास्त्र है। किसी भी दोष का प्रभाव तभी पूर्ण रूप से माना जाता है, जब कुंडली के अन्य योग भी उसी दिशा में संकेत दें। यदि—
- वर-वधू की राशियों के स्वामी ग्रह आपस में मित्र हों
- दोनों की चंद्र स्थिति मजबूत हो
- नवांश कुंडली शुभ हो
- नाड़ी और गण कूट अनुकूल हों
- कुंडली में शुभ ग्रहों की दृष्टि हो
तो भकूट दोष का प्रभाव काफी हद तक कम या पूरी तरह समाप्त हो सकता है।
इसी कारण अनुभवी ज्योतिषी केवल अष्टकूट मिलान पर नहीं, बल्कि पूरी कुंडली का विश्लेषण करते हैं।
भकूट और अन्य कूटों का संबंध
अष्टकूट मिलान में हर कूट का अपना महत्व है, लेकिन भकूट को मानसिक और भावनात्मक सामंजस्य से जोड़कर देखा जाता है।
जहाँ—
- वर्ण, वश्य और तारा प्रारंभिक तालमेल बताते हैं
- गण स्वभाव को दर्शाता है
- नाड़ी स्वास्थ्य और संतान से जुड़ा है
- भकूट दांपत्य जीवन की स्थिरता और भावनात्मक गहराई को दर्शाता है
इसीलिए भकूट को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाता, लेकिन इसे अंतिम निर्णय भी नहीं माना जाता।
भकूट दोष के ज्योतिषीय उपाय
भकूट दोष के निवारण के लिए चंद्र, गुरु या शुक्र ग्रह की शांति कराई जाती है।
- सोमवार या पूर्णिमा का व्रत
- चंद्र ग्रह शांति हवन
नियमित मंत्र जाप से मानसिक संतुलन और ग्रहों की शांति प्राप्त होती है।
- चंद्र मंत्र:
ॐ सों सोमाय नमः - गुरु मंत्र:
ॐ बृं बृहस्पतये नमः
दान को ज्योतिष में दोष निवारण का प्रभावी माध्यम माना गया है।
- दूध, चावल, सफेद वस्त्र, चांदी का दान
- कन्याओं और ब्राह्मणों को भोजन कराना
भकूट दोष होने पर विशेष दोष निवारण मुहूर्त में विवाह कराने से इसके प्रभाव कम हो जाते हैं।
भकूट और नाड़ी दोष में अंतर
अक्सर लोग भकूट और नाड़ी दोष को एक जैसा समझ लेते हैं, जबकि दोनों अलग हैं।
- भकूट दोष दांपत्य जीवन, भावनाओं और आर्थिक स्थिरता से जुड़ा है
- नाड़ी दोष स्वास्थ्य और संतान से
दोनों का प्रभाव क्षेत्र अलग-अलग होता है, इसलिए दोनों का अलग विश्लेषण आवश्यक है।
भकूट ज्योतिष में विवाह से जुड़ा एक अत्यंत महत्वपूर्ण कूट है, जो यह बताता है कि विवाह के बाद पति-पत्नी का जीवन कैसा रह सकता है। भकूट दोष होने का अर्थ यह नहीं कि विवाह असंभव है, बल्कि यह एक संकेत है कि कुंडली का गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए। सही ज्योतिषीय मार्गदर्शन, उचित उपाय और समझदारी से लिए गए निर्णय से भकूट दोष के नकारात्मक प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसलिए विवाह से पहले केवल भयभीत होने के बजाय ज्ञान और विवेक से निर्णय लेना ही ज्योतिष का वास्तविक उद्देश्य है।





