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जन्मकुंडली के योगों और दशाओं का फलादेश से कैसे जाना जाए कि अमुक व्यक्ति सफल होगा या असफल…….

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सफलता का स्वाद कौन नहीं चखना चाहता? हर व्यक्ति सफल होने की कामना रखता है, इसके लिए प्रयास भी करता है परंतु सभी यह नहीं जानते कि सफलता किस प्रकार हासिल की जा सकती है। हम अपने आस-पास प्रतिदिन ऐसे सैंकड़ों उदाहरण देखते हैं कि कुछ लोगों को सफलता हासिल होती है और कुछ के हाथ केवल नाकामी लगती है। ऐसे में कैसे जाना जाए कि अमुक व्यक्ति सफल होगा या असफल।

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली के योगों और दशाओं का फलादेश करने से पूर्व लग्न भाव, पंचम भाव और नवम भाव अर्थात इस जन्म के साथ-साथ पूर्व जन्म का भी अवलोकन कर लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त अपनी योग्यता को पहचान कर अपनी प्रतिभा पर विश्वास करते हुए, अपना सौ प्रतिशत देने वाले व्यक्ति पर सारी दुनिया गर्व करती है।

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यह भी देखा गया है कि प्रतिभावान लोगों का जीवन अधिक संघर्षमय रहता है। अनुभव में यह पाया गया है कि जो लोग कम प्रतिभावान होते हैं, परंतु सफलता का मार्ग जानते हैं और जीवन में उच्च स्तरीय सफलता हासिल करते हैं। इसके विपरीत जो लोग बहुत अधिक प्रतिभावान होते हैं, कुशल और योग्य होते हैं ऐसे व्यक्तियों को जीवन भर प्रयासरत रहना पड़ता है।

इसका कारण उन्हें सफलता के मार्ग की जानकारी न होना होता है। जब हम सफलता चाहते हैं तो हमें मालूम होना चाहिए कि यह किस प्रकार संभव है। जिस रास्ते की कोई मंजिल न हो, उस रास्ते पर चलने से कोई लाभ नहीं, इसी प्रकार जिस विषय का कोई लक्ष्य न हो तो उस विषय पर समय और मेहनत लगाना, समय व्यर्थ करना सही नहीं है। जीवन में सफलता कैसे प्राप्त करें, सफलता के लिए ज्योतिष कर सकता है आपकी मदद।

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अनुशासन शक्ति 
जन्मपत्री में यदि लग्न कमजोर हो तो व्यक्ति चाहकर भी स्वयं को अनुशासित नहीं बना पाएगा। लग्न भाव कमजोर है या नहीं इसके लिए लग्न भाव में स्थित राशि, ग्रह स्थिति और लग्न भाव पर पडऩे वाले अन्य ग्रहों के प्रभाव से जाना जा सकता है। लग्न भाव में स्थित राशि स्थिर प्रकृति की हो, एक मजबूत ग्रह सूर्य या गुरु लग्न भाव में हो या लग्नेश स्वयं लग्न भाव में हो और कोई भी अशुभ ग्रह लग्न को न देखता हो तथा शुभ ग्रहों की दृष्टि लग्न भाव पर होना, लग्न भाव को मजबूत बनाती है।

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वैचारिक दृढ़ता 
एक जन्मजात प्रतिभावान और बुद्धिमान व्यक्ति भी जीवन में असफल हो सकता है। यदि उनके विचारों में स्थिरता की कमी है, यदि उसके जीवन लक्ष्य स्थिर नहीं हैं। जीवन में उसे क्या करना है, यदि वह यह सुनिश्चित करने के बाद अपने लक्ष्यों को बदलता रहता है तो ऐसे में उस व्यक्ति का सफल होना असंभव हो सकता है। वैचारिक दृढ़ता के लिए भी एक मजबूत लग्न के साथ-साथ तीसरा भाव जिसे पराक्रम भाव भी कहा जाता है होना चाहिए। दृढ़ता से ही सफलता के नए मार्गों को खोज सकते हैं।

नियोजन 
एक आधी-अधूरी योजना सकारात्मक परिणाम दे सकती है, परंतु बिना योजना के सफलता के लिए आगे बढऩा ठीक वैसे ही है जैसे अंधकार में सूई में धागा डालना। कुंडली का छठा भाव आपकी जीवन योजनाओं की जानकारी देता है। इसलिए छठे भाव से इसका निर्णय किया जाता है। छठे भाव में बुध या राहू योजना निर्माण का गुण देता है।

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असफलता का डर 
असफलता का डर हमें अपंग कर देता है। कुंडलीय दृष्टिकोण के अनुसार यह कमी व्यक्ति को सफलता प्राप्ति में असमर्थ तो बनाती ही है साथ ही व्यक्ति के लिए कदम ही नहीं उठा पाता। लग्न भाव और सूर्य कमजोर हो, और छठा भाव मजबूत हो तो व्यक्ति में यह दुर्गुण देखा जा सकता है।

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शीघ सफलता की चाह 
शीघ्र सफल होने की चाह में गलतियां करते चले जाने की संभावना बढ़ जाती है। चर लग्न इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यदि लग्न भाव भी कमजोर हो तो स्थिति अधिक गंभीर हो जाती है। एकादश भाव में चंद्र व्यक्ति को उच्चाभिलाषी बनाता है। एकादश भाव इच्छापूर्ति का भाव है और यहां चंद्र शीघ्र इच्छाओं की पूर्ति चाहता है।

दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति 
संघर्ष के बिना सफलता हासिल करना संभव नहीं है, वहां गलतियां और समस्याएं भी हैं। गलतियों और समस्याओं का दोष दूसरों को देने से बचना चाहिए। इसकी जगह अपनी गलतियों व दोषों का विश्लेषण करना चाहिए। एकादश भाव व भावेश का कमजोर होना दूसरों को दोष देने का स्वभाव देखता है। एकादश भाव असंतुलित स्वभाव भी देता है।

सलाह न मानने का स्वभाव
यदि लग्न भाव और लग्नेश दोनों कमजोर हों, राहू या पीड़ित बुध के प्रभाव में हो तो व्यक्ति बहुत अधिक बहस करने का स्वभाव रखता है। अपने को ही अधिक समझदार मानने की सोच में वह सही सुझावों पर ध्यान देने की जगह अनदेखा करता है।

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एकाग्रता की कमी 
कुछ लोग कार्य शुरू करते हैं परंतु उसमें अपना ध्यान लम्बे समय तक बनाए नहीं रख पाते। इसे एकाग्रता की कमी कहा जाता है। मेष लग्न के जातकों में यह कमी बहुधा पाई जाती है। इस लग्न के व्यक्ति कठिन कार्य हाथ में लेते हैं, प्रारंभ में जोश और उत्साह अधिक होने से अच्छी सफलता भी हासिल होती है परंतु एकाग्रता की कमी होने से शीघ्र ही जोश और उत्साह खोते हैं। ऐसे में सफलता हासिल करना कठिन हो जाता है और कई बार कार्य मध्य में ही छोड़ देते हैं। इसके अतिरिक्त शुक्र या कमजोर चंद्र का लग्न पर प्रभाव व्यक्ति को दिन में स्वप्न देखने अर्थात सामर्थ्य से बड़े उद्देश्य निर्धारित करने का गुण देता है।

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सबसे अलग रह कर कार्य करने का स्वभाव 
दूसरों के साथ मिल कर कार्य न करना, लोगों से मिलने-जुलने का गुण न होना या सहायता न करने का गुण व्यक्ति को अलग-थलग कर देता है। किसी के साथ भी न जुडऩे की आदत का विचार एकादश भाव और इसके स्वामी से किया जाता है। एकादश भाव कमजोर हो, इसका स्वामी अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो व्यक्ति अलग-थलग रहना पसंद करता है, यह स्वभाव सफलता में देरी का कारण बनता है।