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सात वारों की गणना या नाम की जो पद्धति वेदों में निर्धारित की गई है, उसका वैज्ञानिक महत्व और मान्यता आज भी बरकरार है। संसार में पुरूष और प्रकृति के नाते प्रत्येक वस्तु को दो भागों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक वर्ष को उत्तरायण और दक्षिणायन इन दो भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक वार को दिन और रात इन दो भागों में विभक्त किया गया है। अर्थात् जिस वार का दिन होता है रात भी उसी वार की होती है। भारत में सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक का समय वार कहलाता है। परंतु पश्चिम देशों में दिन, रात्रि बारह बजे ही बदल दिया जाता है।
संस्कृत भाषा में दिन के लिए ‘अह’ और रात के लिए ‘रात्रि’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। अर्थात् एक दिनरात को ‘अहोरात्र’ कहते हैं। ‘अहोरात्र’ शब्द के आदि अंत के अक्षरों को छोड़ देने से संक्षेप में ‘होरा’ कहा जाता है। पूर्व क्षितिज पर इस समय यदि मेष राशि का उदय है तो कल इसी समय पुनः मेष राशि का उदय होगा अर्थात् एक दिन में बारह राशियों का एक चक्र पूरा हो जाता है। पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध की दृष्टि से प्रत्येक राशि को भी दो भागों में विभाजित किया गया है। इन भागों को ही होरा कहते हैं इस प्रकार एक अहोरात्र में होरा नामक 26 विभाग माने जाते हैं।
प्राचीन काल से आकाश में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार मानी जाती है-सूर्य का केंद्र मानकर क्रम में बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरू और शनि हैं। सात वारों के नाम भी इन्हीं ग्रहों के नाम पर अर्थात् रविवार, बुधवार, शुक्रवार, मंगलवार, गुरूवार और शनिवार। पृथ्वी भी एक ग्रह है किंतु वारों में इसका नाम नहीं होने का कारण है कि पृथ्वी इन ग्रहों से प्राप्त रश्मियों को ग्रहण करती है। अतः प्राप्तकर्ता के नाते पृथ्वी पर स्वयं के नाम से वार नहीं होगा। पृथ्वी किस-किस ग्रह से किस-किस कोण पर रश्मियाॅ प्राप्त कर रही है इसका मूल्यांकन पृथ्वी को केंद्र मानकर ही करना होता है अर्थात् पृथ्वी को रवि का स्थान देना होता है और पृथ्वी सभी ग्रहों की रश्मियों का निर्धारण करना होता है। साथ ही चूॅकि चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है किंतु निकटस्थ होने के कारण इन रश्मियों को पृथ्वी तक पहुॅचने देता है इसलिए चंद्रमा के नाम से चंद्रवार या सोमवार नाम रखा गया है।
अब जानते हैं कि इन नामों का क्रम प्रचलित अनुसार क्यों हैं। वार का नामकरण हेतु पृथ्वी को केंद्र मानकर शेष ग्रहों को स्थान दिया जाता है। क्योंकि पृथ्वी कहीं भी रहे चंद्रमा को उसके साथ ही स्थान देना होता है। अतः चंद्रमा सहित पृथ्वी से आरंभ होकर पहले पहले बुध, उसके आगे शुक्र, फिर रवि, क्रमशः मंगल, गुरू, शनि। इस क्रम के अनुसार प्रातः सूर्योदय से आरंभ होकर एक-एक ग्रह की एक-एक होरा मानी जाती है। दूसरे दिन सूर्योदय के समय जिस चैथे ग्रह की होरा आएगी वह वार उस ग्रह के नाम पर होगा। यह क्रम बाहर से केंद्र की ओर चलता है।
जैसे रविवार से शुरू करें तो पहली होरा रविवार से आरंभ होकर दूसरी होरा शुक्र, तीसरी बुध, चैथी, सोम, पाॅचवी शनि, छठवी गुरूवार, सांतवी मंगल की और आंठवी फिर रवि की होगी इसी क्रम से गिनती करने पर 22वीं होरा फिर रवि की और दिन समाप्ति पर पृथ्वी या चंद्रमा की होरा होगी अतः अगला दिन सोमवार होगा। अब सोमवार से आरंभ होकर पहली, आठवी, पंद्रहवी तथा 21वीं होरा फिर सोम की होगी, 23वीं होरा शनि तथा 24वीं होरा गुरू की होकर अहोरात्र समाप्त हो गया तब तीसरे दिन प्रातः मंगल की होरा होगी अतः वह दिन मंगलवार कहलायेगा। तिथि तथा नक्षत्र की भांति वार-क्रम प्रत्यक्ष नहीं देखा जा सकता किंतु वह है ग्रह संस्थान के अनुसार सुव्यवस्थित। यदि क्रम से सातों बार गिने तो व्यवस्था एकदम सही उतरेगी। इसी प्रकार चंद्रमा पर आधारित देशी तारीख को तिथि कहते हैं। चंद्रमा की कलाओं के बदलने के अनुसार अमावस्या के अगले दिन से पूर्णिमा तक शुक्लपक्ष की प्रथमा, द्वितीया, तृतीया….पंचदशी तक तिथियाॅ रहती है और उसके बाद फिर अमावस्या तक कृष्ण पक्ष की 1 से 15 तक तिथियाॅ होती हैं। अतः हिंदू मान्यताओं के अनुसार सूर्योदय के साथ ही दिन का प्रवेश पूर्णतः प्रकृति प्रदत्त एवं वैज्ञानिक है।
संस्कृत भाषा में दिन के लिए ‘अह’ और रात के लिए ‘रात्रि’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। अर्थात् एक दिनरात को ‘अहोरात्र’ कहते हैं। ‘अहोरात्र’ शब्द के आदि अंत के अक्षरों को छोड़ देने से संक्षेप में ‘होरा’ कहा जाता है। पूर्व क्षितिज पर इस समय यदि मेष राशि का उदय है तो कल इसी समय पुनः मेष राशि का उदय होगा अर्थात् एक दिन में बारह राशियों का एक चक्र पूरा हो जाता है। पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध की दृष्टि से प्रत्येक राशि को भी दो भागों में विभाजित किया गया है। इन भागों को ही होरा कहते हैं इस प्रकार एक अहोरात्र में होरा नामक 26 विभाग माने जाते हैं।
प्राचीन काल से आकाश में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार मानी जाती है-सूर्य का केंद्र मानकर क्रम में बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरू और शनि हैं। सात वारों के नाम भी इन्हीं ग्रहों के नाम पर अर्थात् रविवार, बुधवार, शुक्रवार, मंगलवार, गुरूवार और शनिवार। पृथ्वी भी एक ग्रह है किंतु वारों में इसका नाम नहीं होने का कारण है कि पृथ्वी इन ग्रहों से प्राप्त रश्मियों को ग्रहण करती है। अतः प्राप्तकर्ता के नाते पृथ्वी पर स्वयं के नाम से वार नहीं होगा। पृथ्वी किस-किस ग्रह से किस-किस कोण पर रश्मियाॅ प्राप्त कर रही है इसका मूल्यांकन पृथ्वी को केंद्र मानकर ही करना होता है अर्थात् पृथ्वी को रवि का स्थान देना होता है और पृथ्वी सभी ग्रहों की रश्मियों का निर्धारण करना होता है। साथ ही चूॅकि चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है किंतु निकटस्थ होने के कारण इन रश्मियों को पृथ्वी तक पहुॅचने देता है इसलिए चंद्रमा के नाम से चंद्रवार या सोमवार नाम रखा गया है।
अब जानते हैं कि इन नामों का क्रम प्रचलित अनुसार क्यों हैं। वार का नामकरण हेतु पृथ्वी को केंद्र मानकर शेष ग्रहों को स्थान दिया जाता है। क्योंकि पृथ्वी कहीं भी रहे चंद्रमा को उसके साथ ही स्थान देना होता है। अतः चंद्रमा सहित पृथ्वी से आरंभ होकर पहले पहले बुध, उसके आगे शुक्र, फिर रवि, क्रमशः मंगल, गुरू, शनि। इस क्रम के अनुसार प्रातः सूर्योदय से आरंभ होकर एक-एक ग्रह की एक-एक होरा मानी जाती है। दूसरे दिन सूर्योदय के समय जिस चैथे ग्रह की होरा आएगी वह वार उस ग्रह के नाम पर होगा। यह क्रम बाहर से केंद्र की ओर चलता है।
जैसे रविवार से शुरू करें तो पहली होरा रविवार से आरंभ होकर दूसरी होरा शुक्र, तीसरी बुध, चैथी, सोम, पाॅचवी शनि, छठवी गुरूवार, सांतवी मंगल की और आंठवी फिर रवि की होगी इसी क्रम से गिनती करने पर 22वीं होरा फिर रवि की और दिन समाप्ति पर पृथ्वी या चंद्रमा की होरा होगी अतः अगला दिन सोमवार होगा। अब सोमवार से आरंभ होकर पहली, आठवी, पंद्रहवी तथा 21वीं होरा फिर सोम की होगी, 23वीं होरा शनि तथा 24वीं होरा गुरू की होकर अहोरात्र समाप्त हो गया तब तीसरे दिन प्रातः मंगल की होरा होगी अतः वह दिन मंगलवार कहलायेगा। तिथि तथा नक्षत्र की भांति वार-क्रम प्रत्यक्ष नहीं देखा जा सकता किंतु वह है ग्रह संस्थान के अनुसार सुव्यवस्थित। यदि क्रम से सातों बार गिने तो व्यवस्था एकदम सही उतरेगी। इसी प्रकार चंद्रमा पर आधारित देशी तारीख को तिथि कहते हैं। चंद्रमा की कलाओं के बदलने के अनुसार अमावस्या के अगले दिन से पूर्णिमा तक शुक्लपक्ष की प्रथमा, द्वितीया, तृतीया….पंचदशी तक तिथियाॅ रहती है और उसके बाद फिर अमावस्या तक कृष्ण पक्ष की 1 से 15 तक तिथियाॅ होती हैं। अतः हिंदू मान्यताओं के अनुसार सूर्योदय के साथ ही दिन का प्रवेश पूर्णतः प्रकृति प्रदत्त एवं वैज्ञानिक है।
Pt.P.S Tripathi
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