ज्योतिष शास्त्र में हर दिन को एक अधिपति दिया गया है। जैसे- रविवार का सूर्य, सोमवार का चंद्र, मंगलवार का मंगल, बुधवार का बुध, बृहस्पतिवार का गुरु, शुक्रवार का शुक्र व शनिवार का शनि। इसी प्रकार दिन के खंडों को भी आठ भागों में विभाजित कर उनको अलग-अलग अधिष्ठाता दिये गये हैं। इन्हीं में से एक खंड का अधिष्ठाता राहु होता है। इसी खंड को राहुकाल की संज्ञा दी गई है। राहुकाल में किये गये काम या तो पूर्ण ही नहीं होते या निष्फल हो जाते हैं। इसीलिए राहुकाल में...
वैशाख मास परम पावन मास है। यह भगवान विष्णु का प्रिय मास है, इसलिए इस मास स्नान, तर्पण, मार्जन, पूजन आदि का विशेष महत्व है। वैशाख मास में जब सूर्य मेष राशि का होता है, तब किसी बड़ी नदी, तालाब, तीर्थ, सरोवर, झरने, कुएं या बावड़ी पर निम्नोक्त श्लोक का पाठ कर श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए। श्लोक ‘‘यथाते माधवो मासोवल्लभो मधुसूदन। प्रातः स्नानेन मे तस्मिन फलदः पापहा भव।। स्नान करने की विधि प्रातः काल उठकर सर्वप्रथम किसी नदी, तालाब, तीर्थ स्थान, कुएं या बावड़ी...
महाशिवरात्रि के दिन अथवा नागपंचमी के दिन किसी सिद्ध शिव स्थल पर कालसर्प योग की शांति करा लेने का अति विशिष्ट महत्व माना जाता है। निरंतर महामृत्युंजय मंत्र के जप से, शिवोपासना से, हनुमान जी की आराधना से एवं भैरवोपासना से यह योग शिथिल पड़ जाता है। श्रावण मास में सोमवार का व्रत करते हुये भगवान शिव से कालसर्प योग के दुष्प्रभावों से बचाने के लिये प्रार्थना करने पर बहुत शांति मिलती है। महा शिवरात्रि की शुभ वेला में संपूर्ण कालसर्प दोष निवारण यंत्र की स्थापना कर, महामृत्युंजय मंत्र का...
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।। लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिध्र्यानगम्यं। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।। जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शय्या पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो सब देवताओं द्वारा पूज्य हैं, जो संपूर्ण विश्व के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीले मेघ के समान जिनका वर्ण है, जिनके सभी अंग अत्यंत सुंदर हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किये जाते हैं, जो सब लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूपी भय को दूर करने वाले हैं,...
व्याधिं मृत्यं भय चैव पूजिता नाशयिष्यसि। सोऽह राज्यात् परिभृष्टः शरणं त्वां प्रपन्नवान।। प्रण्तश्च यथा मूर्धा तव देवि सुरेश्वरि। त्राहि मां पùपत्राक्षि सत्ये सत्या भवस्य नः।। ”तुभ पूजित होने पर व्याधि, मृत्यु और संपूर्ण भयों का नाश करती हो। मैं राज्य से भृष्ट हूं इसलिए तुम्हारी शरण में आया हूं। कमलदल के समान नेत्रों वाली देवी मैं तुम्हारे चरणों में नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूं। मेरी रक्षा करो। हमारे लिए सत्यस्वरूपा बनो। शरणागतों की रक्षा करने वाली भक्तवत्सले मुझे शरण दो।“ महाभारत युद्ध आरंभ होने के पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों...
ग्रह पीड़ा निवारण हेतु - ग्रह योगों में अभीष्ट और अनिष्ट स्थितियां इस शक्ति के अनुकूल एवं प्रतिकूल कारणों से ही बनती है, अतः आद्याशक्ति की उपासना ग्रहों के अनिष्ट परिणामों से रक्षा कर सकती है। सभी लोगों तथा विशेषकर ज्योतिष फलादेश देने वालों को तो शक्ति उपासना बहुत शक्ति प्रदान करती है। आद्या शक्ति की उपासना महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, नवदुर्गा, दशविद्या, गायत्री आदि अनेक रूपों में की जाती है। नवरात्रि के समय शक्ति उपासना का महत्व सभी भारतीय पौराणिक ग्रंथों में बतलाया गया है। जन्म से मृत्युपर्यन्त की स्थिति...
बुधवार व्रत: व्रत बुध ग्रह को प्रसन्न करने वाला महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत का पालन किसी भी बुधवार से किया जा सकता है। यह व्रत व्यापारियों को व्यापार में वृद्धि व लाभ प्रदाता, विद्यार्थियों को ज्ञान, बुद्धि व वाक्द्गाक्ति देने वाला, ग्रहस्थी महिलाओं को गृह कार्य में दक्षता प्रदान करने वाला, सेवाकार्य में स्थित देवियों को कार्य कुद्गालता का प्रतीक, वृद्धों को मनः स्थिति में संयम को देने वाला एवं जगत् के मानरूप में जन्मे प्रत्येक जीव को विवेक से संपन्न बनाने वाला है। मनुष्य के पास सबकुछ है,...
मौन व्रत भारतीय संस्कृति में सत्य व्रत, सदाचार व्रत, संयम व्रत, अस्तेय व्रत, एकादशी व्रत व प्रदोष व्रत आदि बहुत से व्रत हैं, परंतु मौनव्रत अपने आप में एक अनूठा व्रत है। इस व्रत का प्रभाव दीर्घगामी होता है। इस व्रत का पालन समयानुसार किसी भी दिन, तिथि व क्षण से किया जा सकता है। अपनी इच्छाओं व समय की मर्यादाओं के अंदर व उनसे बंधकर किया जा सकता है। यह कष्टसाध्य अवश्य है, क्योंकि आज के इस युग में मनुष्य इतना वाचाल हो गया है कि बिना बोले रह...
ईश्वर यानी भगवान ने अपने अंश में से पांच तत्व-भूमि, गगन, वायु, अग्नि और जल का समावेश कर मानव देह की रचना की और उसे सम्पूर्ण योग्यताएं और शक्तियां देकर इस संसार में जीवन बिताने के लिये भेजा है। मनुष्य, ईश्वर की अनुपम कृति है, इसलिए उसमें ईश्वरीय गुण आनन्द व शांति आदि तो होने ही चाहिये जिससे वह ईश्वर (भगवान) को हमेशा याद रखे। मनुष्य को यदि इन पंचतत्वों के बारे में समझाया जाता तो शायद उसे समझने में अधिक समय लगता, इसलिये हमारे मनीषियों ने इन पंचतत्वों को...
इसे 'अधिमास' और 'मलमास' भी कहते हैं। मलमास की दृष्टि से शुभ कर्मों के वर्जित होने के कारण यह मास निंदित है। परंतु पुरुषोत्तमेति मासस्य नामाप्यस्ति सहेतुकम्। तस्य स्वामी कृपासिन्धुः पुरुषोत्तम उच्यते॥ अहमेवास्य संजातः स्वामी च मधुसूदनः। एतन्नाम्ना जगत्सर्वं पवित्रं च भविष्यति॥ मत्सादृश्यमुपागम्य मासानामधिपो भवेत्। जगत्पूज्यो जगद्वन्द्यो मासोऽयं तु भविष्यति॥ पूजकानां च सर्वेषां दुःखदारिद्र्यखण्डनः॥ भगवान् पुरुषोत्तम इसको अपना नाम देकर इसके स्वामी बन गए हैं। अतः इसकी महिमा बहुत बढ़ गई है। इस पुरुषोत्तम मास में साधना करने से कोई व्यक्ति पापमुक्त होकर भगवान को प्राप्त हो सकता है। यह...
दुर्गासप्तशती का पाठ दो प्रकार से होता है- एक साधारण व दूसरा सम्पुट। सप्तशती में कुल सात सौ मंत्र हैं। प्रत्येक मंत्र के आरंभ और अंत में इच्छित फल प्राप्ति के उद्देश्य से विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है। इस प्रकार से सप्तशती के सात सौ मंत्र सम्पुटित करके जपे जाते हैं। ऐसे पाठ को सम्पुट पाठ कहते हैं जिसे काम्य प्रयोगों में विशेष प्रभावशाली समझा जाता है। विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों की प्राप्ती हेतु संपुट पाठ में विभिन्न मंत्रों का प्रयोग होता है। इस आलेख में प्रस्तुत है...
भारत की सनातन धार्मिक और पूजन परंपरा में देवताओं का मुख्य स्थान है। इनकी संख्या भी हमारे यहां 33 करोड़ बतायी गई है। महादेव शंकर भगवान हों या शक्ति और बल के देवता बजरंग बली हों या फिर मर्यादा पुरुषोम राम हों या नटखट माखन चोर भगवान कृष्ण हों सभी की अपार महिमा का वर्णन हमारे शास्त्रों में किया गया है। पुरुषों की शक्ति और महिमा की अभिव्यक्ति करने वाले इन देवताओं के बाद महिलाओं के शक्ति पुंज की भी व्याख्या हमारे यहां दुर्गा और काली तथा चामुण्डा के रूप...