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अध्यात्म ज्योतिष और वास्तु

कुतः सर्वमिदं जातं कस्मिश्च लयमेफ्यति। नियंता कश्च सर्वेषां वदस्व पुरूषोत्तम।। यह जगत किससे उत्पन्न हुआ है और किसमें जा कर विलीन हो जाता है? इस संसार का नियंता कौन है? हे पुरुषोत्तम ! यह बताने की कृपा करें। महेश्वरः परोऽव्यक्तः चर्तुव्यूह सनातनः। अननंता प्रमेयश्च नियंता सर्वतोमुखः।। सनातन अनंत अप्रमेय सर्वशक्तिमान महेश्वर सबके नियंता हैं। तत्व चिंतको ने उन्हें ही अव्यक्त कारण, नित्य, सत, असत्य रूप, प्रधान तथा प्रकृति कहा है। वह (परमात्मा) गंध, वर्ण तथा रस से हीन, शब्द और स्पर्श से वंचित, अजर, ध्रुव, अविनाशी, नित्य और अपनी आत्मा...
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कारकांश लग्न और आपका जीवन

(1) कारकांश लग्न में सूर्य व राहु की युति हो व शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति विषवैद्य अर्थात चिकित्सक होता है। (हमने इसे एम.सी. डाॅक्टरों में उचित पाया है) (2) कारकांश लग्न में सूर्य व शुक्र दोनों की दृष्टि हो तो व्यक्ति राजा अथवा सरकार का विश्वसनीय होता है। (3) कारकांश लग्न व केतु दोनों पर शुक्र की दृष्टि हो तो व्यक्ति दीक्षा ग्रहण करता है कर्मकाण्डी, यज्ञ, हवन करने वाला होता है। (4) कारकांश लग्न में केतु हो उस पर बुध शनि की दृष्टि हो तो जातक...
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कुंडली में चार्टेड अकाउंटेंट बनने के ग्रह योग

भारतीय ज्योतिष के अंतर्गत होराशास्त्रों में जातक की आजीविका संबंधी कार्यक्षेत्रों और व्यवसायों का विचार भी किया गया है। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ये फल आज के परिप्रेक्ष्य में लागू नहीं होते हैं, क्योंकि पिछले 50-60 वर्षों में कार्य और व्यावसायिक क्षेत्र में व्यापक बदलाव आया है। ज्योतिष विषय के मूल आधार को परिवर्तित नहीं करते हुए, आज के परिप्रेक्ष्यानुसार आजीविका निर्णय करना ज्योतिषियों के लिए बहुत आवश्यक है। यह निर्णय तब ही संभव है, जब आज के कार्यक्षेत्र और व्यवसायों को जानकर ज्योतिष विषय में उनके योगों की व्याख्या...
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शनि और करियर

शनि को ब्रह्माण्ड का बैलेंस व्हील माना जाता है अर्थात् शनि सृष्टि के संतुलन चक्र का नियामक है। क्योंकि बैलेंस शनि का मुख्य गुण है इसलिए यह बैलेंस की कारक राशि तुला में अतिप्रसन्न अर्थात् उच्चराशिस्थ होते हैं तथा व्यावसायिक जीवन में अधिक संतुलन, सुरक्षा व स्थिरता अर्थात् जाॅब सैक्यूरिटी आदि देने में समर्थ होते हैं। इसे न्याय का कारक इसलिए माना जाता है क्योंकि यह मनुष्य को उसकी गलतियों और पाप कर्मों के लिए दण्डित करके मानवता की रक्षा करता है और सृष्टि में संतुलन स्थापित करने की प्रक्रिया...
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जन्म दशा से जुड़ा पंचम, नवम व द्वादश भावों का संबंध

हिंदू ज्योतिष कर्म तथा पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है। यह तथ्य प्रायः सभी ज्योतिषी तथा ज्ञानीजन अच्छी तरह से जानते हैं। मनुष्य जन्म लेते ही पूर्व जन्म के परिणामों को भोगने लगता है। जैसे फल फूल बिना किसी प्रेरणा के अपने आप बढ़ते हैं उसी तरह पूर्वजन्म के हमारे कर्मफल हमें मिलते रहते हैं। हर मनुष्य का जीवन पूर्वजन्म के कर्मों के भोग की कहानी है, इनसे कोई भी बच नहीं सकता। जन्म लेते ही हमारे कर्म हमें उसी तरह से ढूंढने लगते हैं, जैसे बछड़ा झुंड में अपनी...
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गत्यात्मक दशा पद्धति

इसमें प्रत्येक ग्रह के प्रभाव को अलग-अलग 12 वर्षाें के लिए निर्धारित किया गया है। साथ ही ग्रहों की शक्ति निर्धारण के लिए स्थान बल, दिक् बल, काल बल, नैसर्गिक बल, दृक बल, अष्टक वर्ग बल से भिन्न ग्रहों की गतिज और स्थैतिज ऊर्जा को स्थान दिया गया हैं। भचक्र के 30 प्रतिशत तक के विभाजन को यथेष्ट समझा गया है तथा उससे अधिक विभाजन की आवश्यकता नहीं समझी गयी है। लग्न को सबसे महत्वपूर्ण राशि समझते हुए इसे सभी प्रकार की भविष्यवाणियों का आधार माना गया है। चंद्रमा मन...
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ज्योतिष के आधार पर इच्हित संतान कैसे ????

ज्योतिष सिद्धांत से जन्मपत्रिका में उपलब्ध ग्रहों, नक्षत्रों एवं गोचर ग्रह व दशांतर का गहन अध्ययन कर निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है। ज्योतिष सिद्धांत के कुछ नियम जिनसे इच्छित संतान प्राप्ति में मदद मिल सकती है। संसार के प्रत्येक पति-पत्नी की यही भावना होती है कि मेरी संतान ऐसे समय पर जन्म लेवे जो संस्कारित हो, उच्च शिक्षित हो, निरोगी काया हो, वैभवशाली बने, परिवार, समाज व घर का कुलदीपक बने, राजनैतिक व सामाजिक क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका रहे, जैसे गुणों से परिपूर्ण हो। साथ ही इच्छित संतान...
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गंड अरिष्टादि

आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका ये छह नक्षत्र ‘मूल संज्ञक’ नक्षत्र कहलाते हैं। 27 नक्षत्र को तीन भागों में बांटने पर 9 नक्षत्रों का एक भाग प्राप्त होता है जिनमें प्रत्येक नक्षत्र 9 ग्रहों से प्रत्येक का अधिपत्य रखता है। मेष, सिंह, धनु राशि का प्रारंभ केतु के नक्षत्रों से होता है। कर्क, वृश्चिक, मीन का अंत बुध के नक्षत्रों में होता है। कर्क का समाप्ति, सिंह का प्रारंभ काल, वृश्चिक का समाप्ति काल, धनु का प्रारंभ काल तथा मीन का अंत, मेष का प्रारंभ काल का जोड़ गंड...
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पर्व-त्योहारों की तारीखों में मतांतर क्यों?

भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की गरिमा के प्रतीक पर्व-त्यौहारों के संबंध में कई बार मतांतर हो जाने से पर्व-त्यौहारों की तिथियों एवं तारीखों के बारे में भ्रांतियां उत्पन्न हो जाती हैं। फलस्वरूप, धर्म परायण लोगों के मन में कई प्रकार की शंकाएं पैदा होने लगती हैं, जिससे उनकी श्रद्धा एवं आस्था को भी ठेस पहुंचती है। अधिसंख्य लोगों को पर्व-त्योहारों एवं छुट्टियां संबंधी जानकारी अलग-अलग प्रांतों से छपने वाले जंत्री/पंचांगों, समाचारपत्र, पत्रिका, कैलेंडर, डायरियां, तिथिपत्र, रेडियो, टेलीविजन आदि संचार साधनों द्वारा प्राप्त होती है। केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों द्वारा उद्घोषित...
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अष्टकवर्ग दशा और शनि का गोचर

जहां एक ओर साधारण जन-मानस शनि की साढ़े-साती व ढैय्या (कंटक शनि) को लेकर भयभीत रहता है, वहीं एक विद्वान व अनुभवी ज्योतिषी यह जानता है कि गोचर फल अध्ययन के लिए जातक की कुंडली को अनेक कसौटियों पर परखना पड़ता है। मात्र शनि के जन्मकालीन चंद्रमा, उससे 2 या 12 भावों पर 4 अथवा 8वें भाव पर गोचरस्थ होने से भयभीत होने का कोई कारण नहीं। गोचर का सूक्ष्मता से अध्ययन करने हेतु महर्षि पराशर द्वारा बताई अष्टकवर्ग की विधि का प्रयोग एक अनुभवी ज्योतिषी करना कभी नहीं भूलता।...
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स्कीन एलर्जी का ज्योतिष्य कारण

स्कीन एलर्जी और ज्योतिषीय कारण खुजली या एलर्जी दरअसल यह त्वचा की दर्द तंत्रिकाओं की उत्तेजना है। जब हमारी तंत्रिकाएं उत्तेजित होती हैं, तो हमें खुजलाहट का अनुभव होता है, इसमें दर्द का अहसास नहीं होता। त्वचा में एलर्जी अथवा खुजली की समस्या से कमोबेश सभी को कभी न कभी सामना करना पड़ता है, जो कि स्कैबीज, जुआ, दाद, पायोडरमा, तेज गर्मी, कीड़े के काटने, एलर्जी या त्वचा के सूख जाने इत्यादि से हो सकती है। किंतु कई लोगों की यह आम समस्या होती है जो उन्हें अकसर होती रहती...
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मन नहीं लगता किसी भी कार्य में…क्यों??

मन नहीं लगता - मन नहीं लगता या नहीं लग रहा ये अकसर सुनने में आता है। मन अति चंचल है। कहा जाता है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। अतः मन किसी व्यक्ति में इतना मायने रखता है। और कई बार मन कुछ भी करने को नहीं करता है। मन की भटकन को रोकने के लिए ज्योतिष कारगर साबित होता है। मन को हम कुंडली के तीसरे स्थान से देखते है। अगर किसी का तीसरा स्थान विपरीत स्थिति में या कू्रर ग्रहों के साथ...
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जीवन यापन के लिए आप किसका चयन करें नौकरी या व्यवसाय

सधारणतया हम आजीविका के लिए जन्मकुंडली में दशम भाव देखते हैं। छठा भाव नौकरी एवं सेवा का है। उसका कारक ग्रह शनि है। दशम भाव का छठे भाव से संबंध होनानौकरी दर्शाता है। नौकरी में जातक किसी दूसरे के अधीन कार्यरत होता है। लग्न में, अथवा दशम भाव में शनि का होना भी नौकरी दर्शाता है। शनि ग्रह को ‘दास’ एवं शूद्र ग्रह की पदवी दी गयी है। भचक्र में शनि दशम भाव का कारक ग्रह है। शनि ग्रह के बलवान होने की स्थिति में जातक स्वयं मेहनत करके जीविकोपार्जन...
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कैसे आपके परिस्थितयों को ग्रह ख़राब करते है……..

ललाट पहे लिखिता विधाता, षष्ठी दिने याऽक्षर मालिका च। ताम् जन्मत्री प्रकटीं विधत्ते, दीपो यथा वस्तु धनान्धकारे। (मान सागरी) अर्थात् ईश्वर ने भाग्य में जो लिख दिया, उसे भोगना ही पड़ता है। जन्मपत्री के अध्ययन से इस बात का आसानी से पता चल जाता है कि उसने पूर्व जन्म में कैसे-कैसे कर्म किये है और इस जन्म में उसे कैसा क्या सुख भोग मिलेगा। मातुलो यस्य गोविन्दः पिता यस्य धनंजयः। सोऽपित कालवशं प्राप्तः कालो हि बुरतिक्रमः।। अर्थात् अभिमन्यु युवा था, सुंदर था, स्वस्थ था, वीर था, नवविवाहित था। भला क्या...
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शनि की शुभता और अशुभता

ज्योतिष में शनि की बहुत बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है। मनुष्य जीवन को संचालित करने वाले अनेकों घटक शनि के अंतर्गत आते हैं और हमारे जीवन में आने वाले बड़े परिवर्तन शनि की गतिविधियों पर ही निर्भर करते हैं। जैसा कि हम जानते हैं शनि, सूर्य के पुत्र हैं और नव ग्रहों में उन्हें दण्डाधिकारी का पद भगवान शिव के द्वारा दिया गया है। भचक्र में मकर और कुम्भ राशि पर शनि का स्वामित्व है तथा तुला राशि में शनि को उच्च व मेष राशि में नीचस्थ माना जाता है। सूर्य,...
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जुड़वां बच्चों का ज्योतिष्य अवधारणा

यदि दो जुड़वां भाई/बहन हं और दोनों का जन्म समय, तिथि व स्थान एक ही है तो निश्चित ही जन्मपत्री एक सी ही बनेगी तथा शक्ल, सूरत, विचार, इच्छाएं, रोग, जीवन की घटनाएं भी एक समान हो सकती हैं। परंतु फिर भी जुड़वां बच्चों के व्यक्तित्व, कर्म व जीवनधारा में काफी अंतर हो सकता है यद्यपि कि जन्मपत्री में ग्रह स्थिति एक सी ही हो। उसके कुछ कारण निम्नवत हैं: गर्भ कुंडली: वास्तविक जन्म गर्भ में भ्रूण प्रवेश/निषेचन के समय हो जाता है तथा यह भी तय हो जाता है...
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मंगल और शुक्र की भूमिका

चंद्र मन का प्रतिनिधित्व करता है और मन काम शक्ति का कारक है। सभी प्रकार के संबेधों का कारण भी चंद्र होता है। जब चंद्र की दृष्टि, युति आदि सूर्य से हो, तो संबंध में आश्रय पाने के विचार होते हैं। मंगल कारण कर्मठ व्यक्तियों से, बुध के कारण व्यापारी वर्ग से, गुरु के कारण आध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों से, शुक्र के कारण विपरीत लिंग से और शनि के कारण आलोचना करने वालों से संबंध होते हैं। राहु-केतु के कारण उनके स्वामी के अनुरूप ही संबंध होते हैं। मंगल...
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जीवन में कष्ट और क्लेश हो करें कुछ उपाय……..

आप भी जानते हैं, कि संसार का हर एक जीव अपने परिवार तथा आस पास के लोगों से बहुत प्यार करता है और हर किसी के मन में प्यार और सम्मान पाने की बहुत चाह होती है। लेकिन आज-कल परिवार में छोटी-छोटी बातों को लेकर क्लेश होना और फिर उसके कारण उस क्लेश का विकराल रूप होने में देर नहीं लगती है। हम भी सोचने पर मजबूर हो जाते हैं, कि ये उसी कारण ऐसा हुआ है, अगर वो ऐसा नहीं करता तो आज ये हालात नहीं होते। ऐसा सोचना...
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