इस सृष्टि में सब कुछ नियमित और अनुशासित ढंग से चल रहा है। स्वच्छन्दता और उच्छृंखलता यदा-कदा दीखती तो है पर थोड़ी गहराई में उतरते ही उसके पीछे भी कोई न कोई अनुबन्ध काम करता दिखाई देता है। साइबेरिया के पक्षी वहाँ मौसम अनुकूल न रहने पर हजारों मील की यात्रा करके भारत आ जाते हैं और परिस्थिति बदलते ही वे उसी क्रम से वापस लौट जाते हैं। कुछ जाति की मछलियाँ प्रजनन की उमंग आते ही हजारों मील की लम्बी यात्रा पर निकल पड़ती हैं और जहाँ उनके लिए अनुकूलता है वहाँ पहुँच कर अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति करती हैं। यह सब इस प्रकार होता है कि मानो उसके लिए किसी ने पहले से ही प्रशिक्षित किया हो अथवा समय पर किसी सशक्त ने हण्टर लेकर वह कष्ट साध्य काम उनसे कराया हो।
सूर्य चन्द्रमा अपनी गतिविधियों में समय चक्र का बिना रंच मात्र व्यवधान किये पालन करते हैं। इतना ही नहीं वे अपने परिभ्रमण मार्ग पर चलते रहने में भी राई रत्ती चूक नहीं करते हैं। ऋतुएं अपने समय पर आती हैं और अवधि पूरी होते ही चली जाती हैं। सृजन, अभिवर्धन और परिवर्तन का क्रम ऐसा है, मानो नियति ने इस सुनिश्चित व्यवस्था को बहुत समझ-बूझकर बनाया हो। अणु परमाणुओं से लेकर प्रकृति के हर क्रम में जो चक्र चलता है उसमें सौर मण्डल का नियम अनुशासन और विधि-विधान भली प्रकार लागू होता है।
मनुष्य को बाह्य जीवन में इच्छानुसार काम करने की एक सीमा तक छूट मिली हुई है। उसमें व्यतिरेक बरतने पर राजदण्ड, समाज दण्ड, प्रकृति दण्ड के हण्टर बरसने लगते हैं। फिर आन्तरिक क्रिया-कलापों में तो कहीं कोई अव्यवस्था है ही नहीं। रक्त प्रवाह, धड़कन, पाचन, शयन, जागरण, ग्रहण, विसर्जन की प्रक्रिया सुनियोजित रीति से चलती रहने तक ही जीवन स्थिर रहता है।
समय के अनुशासन में मनुष्य का भीतरी ढांचा मजबूती के साथ कसा हुआ है। मांसपेशियों का आकुंचन-प्रकुंचन, श्वास-प्रश्वास, निमेष-उन्मेष आदि में यदि तालबद्धता रहती है तो मनुष्य प्रसन्न भी रहता है और निरोगी भी। पर जब भी अस्त-व्यस्तता चढ़ती और मनुष्य स्वच्छन्दता बरतकर निर्धारित क्रम बिगाड़ता है तो क्रमबद्धता लडख़ड़ाने के कारण उसे अनेकानेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। प्रकृति के अन्य जीव-जन्तु प्रकृति प्रेरणा के सहारे उस समय सारिणी का बहुत कुछ परिपालन करते हैं। एक मनुष्य ही है जो दिनचर्या में अनियमितता बरतता है और अनेकों परोक्ष कठिनाईयां बटोर लेता है।
जीवन को शक्तिशाली बनाने के तीन सूत्र हैं- आत्म-ज्ञान, आत्म-संयम और आत्म-सम्मान:
अनुशासन ही एक ऐसा गुण है, जिसकी मानव जीवन में पग-पग पर आवश्यकता पड़ती है। अत: इसका आरंभ जीवन में बचपन से ही होना चाहिए। इसी से ही चरित्र का निर्माण हो सकता है। अनुशासन ही मनुष्य को एक अच्छा व्यक्ति व एक आदर्श नागरिक बनाता है। अनुशासित नागरिक ही एक अनुशासित आदर्श समाज का निर्माण करते हैं। और एक अनुशासित समाज पीढियों तक चलने वाली संस्कृृति की ओर पहला कदम है। अनुशासन का पाठ वास्तव में प्रेम का पाठ होता है, कठोरता का नहीं। अत: इसे प्रेम के साथ सीखना चाहिए। बालक को अनुशासन का पाठ पढ़ाते समय कुछ कठोर कदम उठाने आवश्यक हैं, परंतु अनुशासन रहित रखकर हम बालक को अवश्य ही अवन्नति की ओर धकेल देंगे। जो जीवन में अनुशासित जीना और रहना सीख लेते हैं, वे लोग अपने जीवन में कठिनाइयों और बाधाओं को हंसते-हंसते पार कर जाते हैं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का महत्व है। अनुशासन से धैर्य और समझदारी का विकास होता है। समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। इससे कार्य क्षमता का विकास होता है तथा व्यक्ति में नेतृत्व की शक्ति जाग्रत होने लगती है। इसलिए हमे हमेशा अनुशासनपूर्वक आगे बढने का प्रयत्न करना चाहिए।
अनुशासन सामाजिक सन्तुलन को बनाये रखने के लिए अत्यावश्यक कारक है। अनुशासन के बिना श्रेष्ठ समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती, वर्तमान की बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धात्मक जीवन शैली में अनुशासित व्यक्ति सफलता को शीघ्रता से प्राप्त कर सकता है। अनुशासन विकासपथ है, जिस पर चलकर सम्भावित उद्देश्यों को पूर्ण किया जा सकता है। अनुशासन हमारे द्वारा निर्धारित लक्ष्यों व उसकी उपलब्धि के बीच में सेतु का कार्य करता है। यह अनुशासन रूपी सेतु जितना दृढ़ होगा उतनी ही शीघ्रता से हम अपने लक्ष्यों को पा सकते हैं। अनुशासन को व्यक्ति, परिवार, समाज व राष्ट्र की नींव कहा जा सकता है। अनुशासन संस्कृति का मेरुदण्ड है। किसी भी देश की सांस्कृतिक व सांस्कारिक परम्परा को वहां के युवाओं द्वारा किये जा रहे व्यवहारों व क्रियाकलापों से जाना जा सकता है। फूलों का खिलना, फलों का पकना, वर्षा का आना भी प्राकृतिक अनुशासन के ही दायरे में आता है। अगर मनुष्य इस प्रकृति का अनुगामी बनकर अनुशासन का पालन करता है तो वास्तव में वह ईश्वर की श्रेष्ठ कृति कहलाने का हकदार है। सृष्टि क्रम नियमबद्ध अनुशासन का परिपालन करते हुए चल रहा है। मनुष्य के लिए भी मर्यादा पालन और नियम निर्धारण आवश्यक है। स्वच्छन्दता का उदत्त उपयोग करने वाले अहंकारी देर तक मनमर्जी नहीं चला सकते और उन्हें अंकुश अनुशासन के परिपालन में बाधित होना ही पड़ता है। अच्छा हो, वस्तुस्थिति को समझें और अनुशासित नियमित जीवन जीने की आदत डालें।
ज्योतिष के अनुसार जीवन में अनुशासन किसी भी जातक के कुंडली में लग्रेश, तृतीयेश, पंचमेश एवं भाग्येश तथा एकादशेश, उसकी जीवन शैली को प्रदर्शित करते हैं। अगर किसी व्यक्ति का लग्रेश शुभ ग्रह हो एवं शुभ स्थिति के हो तो व्यक्ति में आत्मनियंत्रण होता है जिससे उसका जीवन अपने बनाए अनुशासन एवं नियमों पर चलता है। इसी प्रकार कुंडली का तीसरा घर मनोबल का होता है अगर तीसरा घर उच्च तथा स्वग्रही एवं शुभ ग्रहों से युत तथा दृष्ट हो तो जीवन में व्यक्ति अनुशासित होता है। किसी की कुंडली का पंचम भाव उसकी मनोदशा तथा एकाग्रता को दर्शाता है। अगर किसी की कुंडली में उसका पंचम भाव एवं पंचमेश उच्च का हो तो ऐसे व्यक्ति के जीवन मेें एकाग्रता तथा कर्म की समझ उसे अनुशासित रखती है। इसी प्रकार किसी जातक के एकादशेश से उस व्यक्ति की नियमित दिनचर्या देखी जाती है। अगर एकादशेश या एकादश भाव अच्छी स्थिति मेें हो या उसके ग्रह स्वग्रही, उच्च तथा सौम्य ग्रह हों तो ऐसे व्यक्ति की दिनचर्या नियमित तथा अनुशासित होती है।
इन ग्रहों के अनुकूल न होने पर इन ग्रहों की शांति कराने से जीवन में अनुशासन का स्तर बढ़ाया जा सकता है। जिससे जीवन में सफलता तथ समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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