Other Articles

पापांकुषा एकादषी

207views

पापांकुषा एकादषी –

आष्विन मास की शुक्लपक्ष की एकादषी को पापांकुषा एकादषी के रूप में मनाया जाता है। पद्यपुराण के अनुसार पाप रूपि हाथी को महावत रूपी अंकुष से बेधने के कारण इसका नाम पापांकुषा एकादषी पड़ा। चराचर प्राणियों सहित त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है, जो कष्ट से संबंधित दुखों को हर सके। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पष्चात् श्री का ध्यान करना चाहिए। सबसे पहले धूप-दीप आदि से भगवान की अर्चना की जाती है। इसके बाद फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामथ्र्य अनुसार भगवान को अर्पित करते हैं। पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनकर विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने के पष्चात् फलाहार किया जाता है। इस दिन दीप दान करने का महत्व है। जैसा के इसके नाम से ज्ञात होता है कि जिन व्यक्तियों को किसी भी प्रकार का कष्ट हो अथवा जो व्यक्ति सुख प्राप्ति की कामना करते हों, उनके लिए पापांकुषा एकादषी का व्रत बहुत ही शुभ फलदायक होता है। यदि कोई कष्ट जैसे स्वास्थ्य, षिक्षा या अन्य सुखों को प्राप्त करने का अभिलाषी हो, उसे इस व्रत के करने से सुख तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in