विजयादसमी –
विजय दसमी का व्रत या दषहरा का पर्व आष्विन मास की शुक्लपक्ष की दषमी को मनाया जाता है। इस पर्व को भगवती के ‘‘विजया’’ नाम पर विजय दषमी कहते हैं। इस दिन रामचंद्रजी ने लंका पर विजय प्राप्त की थी, इस लिए भी इस दिन को विजयदषमी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि आष्विन शुक्ल पक्ष की दषमी को तारा उदय होने के समय ‘‘विजय’’ नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धि दायक होता है। इसलिए सायंकाल में पूजन का विधान है, जिससे जीवन में कार्यसिद्धि लाभ प्राप्त हो। विजय-प्रमाण, शमीपूजन, नवरात्र पारणा, दुर्गा विसर्जन इस पर्व के महान कर्म हैं। इस पर्व को दुखों को हराकर सुखविजय अर्थात् सुख तथा समृद्धि प्राप्ति होती है।
कथा – पावर्ती ने भगवान षिव से दषहरे तथा दुर्गा उपासना के परणा का फल जानना चाहा तो भगवान षिव ने कहा कि ‘‘आष्विन मास की शुक्लपक्ष की दषमी को मनाया जाता है। इस पर्व को भगवती के ‘‘विजया’’ नाम पर विजय दषमी कहते हैं। आष्विन शुक्ल पक्ष की दषमी को तारा उदय होने के समय ‘‘विजय’’ नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धि दायक होता है। इसलिए इस मूहुर्त में भगवान रामचंद्र जी ने रावण पर विजय हेतु लंकाविजय का काल निर्धारित किया था। अतः इस काल एवं तिथि में किए गए प्रयास में सफलता प्राप्ति का योग बनता है। अतः विजय दषमी का पर्व इच्छित फल की सफलता हेतु किया जाता है।