मनुष्य का चरित्र निर्माण और ज्योतिष:
मनुष्य का चरित्र निर्माण और ज्योतिष:
मनुष्य स्वयं अपना स्वामी है। अपना चरित्र वह स्वयं बनाता है। चरित्र-निर्माण के लिए उसे परिस्थितियों को अनुकूल या सबल बनाने की नहीं बल्कि आत्मनिर्णय की शक्ति को प्रयोग में लाने की आवश्यकता है। हर व्यक्ति का कुछ निश्चित क्षेत्र होता है जहाॅ उसे आत्म-गौरव का स्थायी भाव आता है; उस क्षेत्र से सम्बन्धित वस्तुएँ उसके ‘स्व’ के क्षेत्र में आती है और यहीं पर यदि यह ‘स्व’ अनुकूल हो तो चरित्र उत्तम और प्रतिकूल दिषा में संचालित हो तो चरित्र का निर्माण विघवंसक हो जाती है। अतः किसी भी व्यक्ति के चरित्र निर्माण में सहायक उसके इस स्व क्षेत्र को ज्योतिष में लग्न, तीसरे एवं एकादष स्थान से देखा जाता है। अगर ये स्थान उच्च, अनुकूल तथा सौम्य ग्रहों के साथ हों तो चरित्र का आकार अनुकूल दिषा में बढता है वहीं पर यदि इन क्षेत्रों पर कू्रर ग्रहों एवं प्रतिकूल स्थिति में हो जाए तो उसका चरित्र दुषित हो सकता है। अतः चरित्र के निर्माण के समय इन ग्रहों तथा इन ग्रहों की दषाओं को ज्ञात कर उचित ज्योतिषीय उपाय द्वारा चरित्र को सुधारा जा सकता है।