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स्त्री का सम्मान और आदर:खुशियाँ और लक्ष्मी का वास

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जब किसी घर में शादी के बाद पहली बार दुल्हन आती है तब उसे लक्ष्मी स्वरुप माना जाता है। वास्तव में लक्ष्मी होती भी है। प्रायः सुनने में आता है कि बहू के पैर बहुत ही भाग्यशाली हैं, जब से पड़े है, घर में लक्ष्मी बरसने लगी है। इसके विपरीत ऐसे पैर भी सुनने को मिलते हैं जिनके घर में प्रवेश करते ही सुख-सम्पदा का पलायन प्रारम्भ हो जाता है। परन्तु मैं प्रत्येक स्त्री के पर घर में शुभ मानता हॅ। मेरी पूर्ण आस्था स्त्री का लक्ष्मी स्वरुप मानने में है। इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि जिस घर से स्त्री का मान-सम्मान उठा है, वहा सर्वनाष ही हुआ है। इस उपाय को उस घर में कदापि न किया जाए जहा स्त्रीयों के प्रति सोहार्दपूर्ण व्यवहार नहीं होता।
स्त्री को घर में प्रवेष करने के प्रथम दिन से ही आदर दें। विवाह के बाद उसके घर आने के समय अपनी-अपनी धर्म जाति के अनुसार जो भी पारम्परिक प्रथाएं हैं, पहले वह पूरी कर लें। उसके बाद दुल्हन से यह उपाय करवाएं। इससे प्रत्येक स्त्री के घर में आने वाले पैर शुभ सिद्ध होंगे।
घर के मुख्य द्वार में प्रवेष से पूर्व स्त्री से द्वार की चैखट पर दाएं अथवा बायीं ओर गंगा जल से थोड़ी सी जगह धुलवाएं उसके ऊपर दही तथा केसर मिश्रित घोल से (इसमें नागकेसर तथा लाल चंदन का चूर्ण भी डाल लें तो और भी शुभ है) स्वास्तिक का पवित्र चिन्ह दांए हाथ की अनामिका उंगली से बनवाएं। इसके ऊपर मध्य में थोड़ा सा गुड़ रखवा कर एक बूंद शहद टपकवा दें। स्वास्तिक की चार बत्ती वाले दिए, धूप-दीप, पुष्प आदि से यथाषक्ति पूजा करवाएं। घर की उपस्थित समस्त स्त्रियाॅ कल्पना करें कि हमारे घर में लक्ष्मी जी के चरण पड़ रहे हैं। बहू को ससम्मान घर के अंदर ले आएं। घर में सर्वप्रथम उसे मीठी खीर, दही आदि जो कुछ भी उपलब्ध हो सप्रेम खिलाएं। स्वास्तिक बनें स्थान को भूल जाएं। उस पर किसी का पैर पड़े, कोई
उसे बिगाड़ दे, अब कोई शंका न करें। तदंतर में प्रत्येक गुरुवार को, गुरु की ही होरा में उक्त प्रकार से वह स्त्री स्वास्तिक बनाती रहे। पहले यह घर के बाहर से अंदर आने पर बनाया गया था। बाद में वह घर के अंदर से बनाया जाएगा। यदि किसी गुरुवार को वह स्त्री पवित्र नहीं है तो उसके स्थान पर घर की अन्य कोई नहाई-धोई स्वच्छ महिला यह उपाय दोहरा दे और अगले गुरुवार से वह स्त्री पुनः ये उपाय जारी रखे। किन्हीं अन्य कारणों से कोई गुरुवार ये उपाय होना छूट भी जाए तो अगले गुरुवार से ये पुनः प्रारम्भ कर दें। चार बत्ती वाला दिया एक बार ही घर में प्रवेष करते समय जलाना है। बाद में जलाना अथवा न जलाना उस स्त्री की सुविधा तथा इच्छा पर निर्भर है परन्तु गंगा जल से लीपने से लेकर शहद की बूंद टपकाने तक संपूर्ण प्रक्रिया आवष्यक रुप से करनी ही है।

इस सरल उपाय से उस नवविवाहिता स्त्री के पैर सर्वदा भाग्यषाली बनें रहेंगे। घर में श्री का सदा वास होगा। ये एक ऐसा उपाय है जिसे प्रत्येक हिन्दू परिवार में मैं आवष्यक समझता हॅ। नवविवाहिता के विपरीत घर की किसी अन्य कुआरी अथवा विवाहित स्त्री द्वारा भी यह उपाय सर्वप्रथम प्रारंभ करवाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में उपाय प्रारम्भ करने वाली स्त्री नहा-धोकर घर के बाहर किसी मंदिर में जाए और घर लौटते समय उपरोक्त विधि से ही यह उपाय आरम्भ कर देवें ।