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विवाह में विलंभ होने का कारण और निवारण

हमारे हिन्दू संस्कारों में विवाह को जीवन का आवश्यक संस्कार बताया गया है. विवाह के योग प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होते हैं लेकिन कुछ ऐसे कारक हैं जो उसमें विलंब कराते हैं. ज्योतिषशास्त्र में मंगल, शनि, सूर्य, राहु और केतु को विलंब का कारक बताया गया है.जन्मकुंडली के सप्तम भाव में अशुभ या क्रूर ग्रह के स्थित होने अथवा सप्तमेश व उसके कारक ग्रह बृहस्पति व शुक्र के कमजोर होने से विवाह में बाधा आती है.
आम बोलचाल के शब्दों में कहें तो अगर आपके जीवन में विवाह का योग पैदा करने वाले ग्रहों के मुकाबले वे ग्रह ज्यादा हावी हैं जो विवाह योग को रोकते हैं, तो विवाह में बाधा आती है.आज लगभग लोग वैवाहिक समस्या से ग्रस्त है । किसी को विवाह होने में रूकावट का सामना करना पङता है तो कुछ विवाह बाद के वैचारिक मतभेदों से पीङित है । सबसे पहले हम देखते है कि कौनसे योग है जो विवाह होने में बाधा देते है और कौनसे योग वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते है।
विवाह वह समय है ,जब दो अपरिचित युगल दाम्पत्य सूत्र में बंधकर एक नए जीवन का प्रारंभ करते है ,,ज्योतिष में योग ,दशा और गोचरीय ग्रह स्थिति के आधार पर विवाह समय का निर्धारण होता है ,परन्तु कभी-कभी विवाह के योग ,दशा और अनुकूल गोचरीय परिभ्रमण के द्वारा विवाह काल का निश्चय करने पर भी विवाह नहीं होता क्योकि जातक की कुंडली में विवाह में बाधक या विलम्ब कारक योग होते है |विवाह के लिए पंचम ,सप्तम ,द्वितीय और द्वादश भावों का विचार किया जाता है ,द्वितीय भाव सप्तम से अष्टम होने के कारण विवाह के आरम्भ व् अंत का ज्ञान कराता है ,साथ ही कुटुंब कभी भाव होता है ,द्वादश भाव शैया सुख के लिए विचारणीय होता है |स्त्रियों के संदर्भ में सौभाग्य ज्ञान अष्टम से देखा जाता है अतः यह भी विचारणीय है |शुक्र को पुरुष के लिए और स्त्री के लिए गुरु को विवाह का कारक माना जाता है |प्रश्न मार्ग में स्त्रियों के विवाह का कारक ग्रह शनि होता है |सप्तमेश की स्थिति भी महत्वपूर्ण होती है
मंगल यदि आठवें, बारहवें भाव में स्थित हो तो निश्चित रूप से दोनों काम करते है , बारहवें भाव के मंगल तलाक अथवा पति या पत्नि की मृत्यु का कारण भी बन सकते है । मंगल की किसी भी रूप में सप्तम भाव पर दृष्टि वैवाहिक समस्याओं का कारण बनती है । शनि यदि सप्तम भाव को देखते हो या सप्तम भाव में स्थित हो तो परेशान करते है । सूर्य और राहु की लग्न या सप्तम में स्थिति भी वैवाहिक समस्याओ से दो चार करवा सकती है ।
इनमें जानने वाली बात ये है कि सिर्फ मंगल और शनि ही जीवन भर के लिए परेशानी का सबब बनते है बाकि सूर्य और राहु सिर्फ उसी समय परेशानी देते है जब कि वो गोचर अथवा अन्तर्दशा , महादशा से गुजर रहे हो । पति पत्नि दोनों की कुंडली के सप्तम भाव में अकेला शुक्र हो तो भी परेशानी देता है हालांकि यदि शुक्र सप्तमेश भी हो तो कम परेशानी देता है लेकिन देता अवश्य है । सप्तमेश यदि नीच राशि अस्त या दुःस्थान में बैठा हो तो भी कष्टकारी है । सप्तम भाव का संबंध किसी भी रूप में शनि से बनते ही समस्याऒं की शुरूआत मानिये ।
आजकल के अतिविद्वान लोग व्यर्थ की वैज्ञानिकता के चक्कर में बिना कुंडली दिखाये संतान का विवाह कर देते है और उनको कष्टपूर्ण जीवन की ओर धकेल देते है । सभी ज्योतिष प्रेमियों हेतु मजेदार बात है कि व्यक्ति प्रेम विवाह का कदम तभी उठायेगा , जब ऊपरोक्त ग्रह स्थिति हो अब बाकि बात आप समझ गए होंगे । दूसरी चीज हमारी प्रार्थना है कि यदि उपरोक्त स्थिति हो तो 90% मामलों में संबंधित ग्रह का रत्न पहनने से बचना चाहिए ।
यदि आप भी किसी ऎसी ही वैवाहिक समस्या अर्थात् विवाह न होना अथवा विवाह के बाद कष्टों से पीङित है तो संपर्क करें , हम पूरे आत्मविश्वास के साथ कहते है कि इन समस्याओं से छुटकारा दिलाने में हम समर्थ है और हाँ , ये भी कहने में हमें संकोच नही है कि खर्चा आपका लगेगा वो चाहे आप अपने यहाँ करें या हमारे साथ , निश्चित रूप से यदि आप वैवाहिक या आर्थिक समस्या से जूझ रहे हो तो इसका निदान संभव है हम करके दिखा सकते है सिर्फ वे लोग संपर्क न करें जो प्रेम विवाह में रूचि रखते हो। आप ज्योतिष से लगाव बनाये रखिये , अगर ज्योतिष आपकी समस्या का सटीक संकेत कर सकता है तो उसका पूर्णतः निदान भी ॥
इस समस्या के निवारणार्थ अच्छा होगा की किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी जन्म कुंडली दिखाकर विवाह में बाधक ग्रह या दोष को ज्ञात कर उसका निवारण करें। ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं, तब विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है। वे विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते हैं।
सातवें भाव का अर्थ—-
जन्म कुन्डली का सातंवा भाव विवाह पत्नी ससुराल प्रेम भागीदारी और गुप्त व्यापार के लिये माना जाता है। सातवां भाव अगर पापग्रहों द्वारा देखा जाता है,उसमें अशुभ राशि या योग होता है,तो स्त्री का पति चरित्रहीन होता है,स्त्री जातक की कुंडली के सातवें भाव में पापग्रह विराजमान है,और कोई शुभ ग्रह उसे नही देख रहा है,तो ऐसी स्त्री पति की मृत्यु का कारण बनती है,परंतु ऐसी कुंडली के द्वितीय भाव में शुभ बैठे हों तो पहले स्त्री की मौत होती है,सूर्य और चन्द्रमा की आपस की द्रिष्टि अगर शुभ होती है तो पति पत्नी की आपस की सामजस्य अच्छी बनती है,और अगर सूर्य चन्द्रमा की आपस की १५० डिग्री,१८० डिग्री या ७२ डिग्री के आसपास की युति होती है तो कभी भी किसी भी समय तलाक या अलगाव हो सकता है।केतु और मंगल का सम्बन्ध किसी प्रकार से आपसी युति बना ले तो वैवाहिक जीवन आदर्शहीन होगा,ऐसा जातक कभी भी बलात्कार का शिकार हो सकता है,स्त्री की कुंडली में सूर्य सातवें स्थान पर पाया जाना ठीक नही होता है,ऐसा योग वैवाहिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है,केवल गुण मिला देने से या मंगलीक वाली बातों को बताने से इन बातों का फ़ल सही नही मिलता है,इसके लिये कुंडली के सातंवे भाव का योगायोग देखना भी जरूरी होता है।

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सातवां भाव और पति पत्नी—-
सातवें भाव को लेकर पुरुष जातक के योगायोग अलग बनते है,स्त्री जातक के योगायोग अलग बनते है,विवाह करने के लिये सबसे पहले शुक्र पुरुष कुंडली के लिए और मंगल स्त्री की कुन्डली के लिये देखना जरूरी होता है,लेकिन इन सबके बाद चन्द्रमा को देखना भी जरूरी होता है,मनस्य जायते चन्द्रमा,के अनुसार चन्द्रमा की स्थिति के बिना मन की स्थिति नही बन पाता है। पुरुष कुंडली में शुक्र के अनुसार पत्नी और स्त्री कुंडली में मंगल के अनुसार पति का स्वभाव सामने आ जाता है।