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भय, रोग, दुर्भाग्य, तंत्र-बाधा, दुर्घटना, दरिद्रता दूर करने वाला अचूक मंत्र साधना

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॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् पुरश्चरण विधि ॥
— यह एक अत्यंत शक्तिशाली तंत्रोपनिषद् स्तोत्र है, जिसकी रचना बुद्ध कौशिक ऋषि द्वारा की गई है। श्रीरामरक्षास्तोत्र का पुरश्चरण भय, रोग, दुर्भाग्य, तंत्र-बाधा, दुर्घटना, दरिद्रता तथा समस्त कष्टों से रक्षा करता है, और भक्ति, शक्ति, शांति तथा समृद्धि प्रदान करता है।


🕉️ 1. श्रीरामरक्षास्तोत्र का स्वरूप

  • कुल श्लोक: ~38 (मुख्य स्तोत्र), कुल पंक्तियाँ ~220

  • देवी/देवता: श्रीरामचन्द्र जी, लक्ष्मण, सीता, हनुमान सहित

  • रचयिता: महर्षि बुद्ध कौशिक

  • स्रोत: श्रीरामरक्षास्तोत्र (तन्त्र उपनिषद् संहिताओं में वर्णित)


🎯 2. पुरश्चरण का उद्देश्य और लाभ

उद्देश्य लाभ
मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक रक्षा भय, रोग, भयभीत स्वप्न, दुर्घटना से रक्षा
तांत्रिक/नजर बाधा निवारण मंत्र, तंत्र, जादू टोने से मुक्ति
घर/परिवार की रक्षा संतान रक्षा, सुख-शांति
कार्यों की सफलता नौकरी, विवाह, परीक्षा आदि में सफलता
भक्ति जागरण व आत्मबल श्रीराम भक्ति, संयम, धैर्य, निष्ठा

🔢 3. पुरश्चरण संख्या निर्धारण

  • 1 पाठ = श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का एक सम्पूर्ण पाठ (~220 पंक्तियाँ)

  • वैदिक सिद्धान्तानुसार, 1 पुरश्चरण = 1 लाख मन्त्र/श्लोक

👉 सामान्यतः:

  • लघु पुरश्चरण = 108 / 1008 पाठ

  • मध्यम = 5000 पाठ

  • पूर्ण = 11,000 पाठ (अत्यंत फलदायक)

  • विशेष तांत्रिक साधना हेतु = 24,000 या 1,25,000 पाठ


📍 4. कब, कहाँ, कैसे करें?

तत्त्व विधि
समय प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त श्रेष्ठ; संध्या भी शुभ
दिशा पूर्व या उत्तराभिमुख बैठें
स्थान घर का पूजाघर, एकांत साधना-कक्ष, या श्रीराम मंदिर
वार मंगलवार या रविवार से प्रारंभ करना उत्तम
तिथि शुक्ल पक्ष, राम नवमी, पुनर्वसु नक्षत्र में आरंभ करें

🌸 5. आवश्यक सामग्री

  • श्रीराम दरबार की मूर्ति/चित्र/यंत्र

  • दीपक (घी या तिल का), अगरबत्ती

  • तुलसीदल, पीले पुष्प, अक्षत

  • नैवेद्य (केला, गुड़, मिश्री, फल)

  • जलपात्र, घंटी, आसन

  • रुद्राक्ष/तुलसी की माला (108 मनकों की)

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🧘‍♂️ 6. साधना नियम

नियम अनिवार्यता
ब्रह्मचर्य व्रत ✔️
सात्त्विक भोजन ✔️
मौन या कम बोलना ✔️
प्रतिदिन एक ही स्थान पर बैठना ✔️
असत्य, क्रोध, मांस-त्याग ✔️

📜 7. संकल्प विधि (साधना प्रारंभ में):

sanskrit
ॐ श्रीरामचन्द्रप्रसादसिद्ध्यर्थं, भय-रोग-दुःख-दारिद्र्य-निवारणार्थं,
मम नाम ................... गोत्र ................... इदं श्रीरामरक्षास्तोत्रस्य
(11,000) पाठानां पुरश्चरणं करिष्ये॥

🙏 जल, पुष्प, अक्षत लेकर संकल्प करें।


📖 8. दैनिक साधना क्रम

🔰 पूर्वकर्म:

  • स्नान, वस्त्र, आसन

  • श्रीराम ध्यान (एक बार):

“ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्।
वामांकारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम्॥”


🕉️ मुख्य पाठ:

  • श्रीरामरक्षास्तोत्रम् 1 बार (PDF मैं दे सकता हूँ)

  • उच्चारण स्पष्ट, भावपूर्ण हो

  • माला से गिनती करें

  • उदाहरण:

ॐ अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुद्ध कौशिक ऋषिः । श्रीसीतारामचन्द्रो देवता ।
अनुष्टुप् छन्दः । सीता शक्तिः । श्रीमद्हनुमान कीलकम् ।

श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ॥

रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ॥


🙏 उत्तरकर्म:

  • श्रीराम नाम जप (108 बार):

“ॐ श्रीरामाय नमः”

  • तुलसीदल व पुष्प से अर्चना

  • आरती: “श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन”

  • नैवेद्य अर्पण करें


🔥 9. पूर्णाहुति (अंतिम दिन):

अनुष्ठान विधि
हवन श्रीरामरक्षास्तोत्र के श्लोकों से 108 आहुति दें
तर्पण जल+तिल+पुष्प से श्रीराम, ऋषि, देवताओं को अर्पण
मार्जन वही जल शरीर पर छिड़कें
ब्रह्मभोज 5 ब्राह्मणों या संतों को भोजन व वस्त्र/दक्षिणा दें

📊 10. पाठ योजना (तालिका):

अवधि प्रति दिन पाठ कुल पाठ औसत समय (दैनिक)
21 दिन 525 11,025 ~2.5 घंटे
40 दिन 275 11,000 ~1.5 घंटे
84 दिन 132 11,088 ~50 मिनट

श्रीगणेशायनम: ।

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अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।

बुधकौशिक ऋषि: ।

श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।

अनुष्टुप् छन्द: ।

सीता शक्ति: ।

श्रीमद्‌हनुमान् कीलकम् ।

श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥

॥ अथ ध्यानम् ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्‌मासनस्थं । पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥

वामाङ्‌कारूढ-सीता-मुखकमल-मिलल्लोचनं नीरदाभं । नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥

॥ इति ध्यानम् ॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् । स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् । शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती । घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥

जिव्हां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: । स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥

करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: । पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् । स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: । न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् । नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् । य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥१३॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् । अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: । तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् । अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् । रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङि‌गनौ । रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥

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संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्‌ मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम: ॥२३॥

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: । अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥

रामं दूर्वादलश्यामं पद्‌माक्षं पीतवाससम् । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥

रामं लक्ष्मण-पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् । वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।

श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।

श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र: ।

सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥

लोकाभिरामं रणरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् । कारुण्यरूपं करुणाकरन्तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

कूजन्तं राम-रामेति मधुरं मधुराक्षरम् । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् । रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥