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जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा 2023, कहानी , Jagannath Puri Rath Yatra Story In Hindi

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जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा कब निकाली जाती है (जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2023 की तारीख और समय) –

जगन्नाथ जी की रथ यात्रा हर साल अषाढ़ माह (जुलाई महीने) के शुक्त पक्ष के दुसरे दिन निकाली जाती है। इस साल ये 20 जुलाई 2023, दिन रविवार को निकाली जाएगी। रथ यात्रा का उत्सव 10 दिन का होता है, जो शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन समाप्त होता है। इस दौरान दुनिया में लाखों की संख्या में लोग पूरी तरह से पहुंच जाते हैं और इसका एक बड़ा हिस्सा बन जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण, उनके भाई बलराम व बहन सुभद्रा को रथों में स्थायी गुंडीचा मंदिर ले गए। तीनों रथों को भव्य रूप में देखा जाता है, जिसकी तैयारी महीनों पहले से शुरू हो जाती है।

जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा की कहानी ( जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की कहानी)–

इस रथ यात्रा से जुड़ी कई कहानियां हैं, जिसके कारण इस महोत्सव का आयोजन होता है। कुछ कथाएं मैं आपको शेयर करता हूं –

  • कुछ लोगों का मानना ​​है कि कि कृष्ण की बहन सुभद्रा अपने मायके आती है, और अपने भाइयों से नगर घूमने की इच्छा व्यक्त करती है, तब कृष्ण बलराम, सुभद्रा के साथ रथ में चढ़ते नगर जाते हैं, इसी के बाद से रथ यात्रा का पर्व शुरू हो गया है।
  • इसके अलावा, गुंडीचा मंदिर में स्थित देवी कृष्ण की मासी है, जो टिकड़ी को आपके घर आने का निमंत्रण देती है। श्रीकृष्ण, बलराम सुभद्रा के साथ अपनी मासी के घर में 10 दिन के लिए रहते हैं।
  • श्रीकृष्ण के मामा कंस उन्हें मूरत बुलाते हैं, इसके लिए कंस गोकुल में सारथि के साथ रथ भिजवाता है। कृष्ण अपने भाई बहन के साथ रथ में सवार होकर जाते हैं, जिसके बाद रथ यात्रा पर्व की शुरुआत हुई।
  • कुछ लोगों का मानना ​​है कि इस दिन श्री कृष्ण कंस का वध करके बलराम के साथ अपनी प्रजा को दर्शन देने के लिए बलराम के साथ रथ यात्रा करते हैं।
  • कृष्ण की माताएँ रोहिणी से उनकी रासलीला सुनती हैं। माता रोहिणी को लगता है कि कृष्ण की गोपीयों के साथ रासलीला के बारे में सुभद्रा को नहीं देना चाहिए, इसलिए वो उन्हें कृष्ण, बलराम के साथ रथ यात्रा के लिए लेने जा रहे हैं। तभी वहां नारदजी प्रकट होते हैं, तीनों को एक साथ देख वेचित्त हो जाते हैं, और प्रार्थना करते हैं कि इन तीनों के ऐसे ही दर्शन हर साल होते रहते हैं। इसकी यह प्रार्थना सूर्य ली जाती है और रथ यात्रा के इन तीनों दर्शनों में कर्मठता बनी रहती है।

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास (जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा इतिहास)-

कहते हैं, श्रीकृष्ण की मृत्यु के संबंध जब उनके पार्थिव शरीर को द्वारिका लाए जाते हैं, तब बलराम अपने भाई की मृत्यु से अत्यधिक दुखित होते हैं। कृष्ण के शरीर को लेकर समुद्र में कूद जाता है, उनके पीछे-पीछे सुभद्रा भी कूद जाती है। इसी समय भारत के पूर्व में स्थित पूरे के राजा इंद्रद्विमुना को स्वप्न दिखाई देता है कि भगवान का शरीर समुद्र में तैर रहा है, इसलिए यहां उन्हें कृष्ण की एक विशाल प्रतिमा बनवानी चाहिए और मंदिर का निर्माण करवाना चाहिए। उन्हें स्वप्न में देवदूत कहते हैं कि बलराम के साथ बलराम, सुभद्रा की लकड़ी की प्रतिमा बनाई जाए। और श्रीकृष्ण के अस्थियों को उनकी प्रतिमा के पीछे छेद करके रख दिया जाए।

राजा कृष्ण का सपना सच हुआ, उन्हें आस्तियां मिल गईं। लेकिन अब वह सोच रहा था कि इस मूर्ति का निर्माण कौन करेगा। माना जाता है कि शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा तेजी से एक रूप में प्रकट होते हैं, और सूक्ष्मता का कार्य शुरू करते हैं। काम शुरू करने से पहले वे सभी कहते हैं कि काम करते-करते उन्हें परेशानी नहीं होगी, नहीं तो वे बीच में ही काम छोड़ कर चले जाएँगे। कुछ महीने हो जाने के बाद कोई रहस्य नहीं बनता है, तब उतावली के कारण राजा इंद्रद्विमुना बड़ा एक कमरे का दरवाजा खोल देता है, ऐसा ही होता है भगवान विश्वकर्मा गायव हो जाता है। उस समय पूरी तरह से निष्कर्ष नहीं निकला, लेकिन राजा ऐसे ही निर्णय को स्थापित कर देता है, वो सबसे पहले करण के पीछे भगवान कृष्ण के अस्थियां रखता है, और फिर मंदिर में विराजमान देता है। विस्वकर्मा जयंती पूजा विधि अवाम आरती   विश्वकर्मा जयंती पूजा को पढ़ने के लिए क्लिक करें।

  • जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) का रथ –  यह 45 फीट ऊंचा होता है, इसमें 16 प्रतिबिंब होते हैं, जिसका व्यास 7 फीट का होता है, पुरे रथ को लाल व पीले रंग के कपड़े दिखते हैं। इस रथ की रक्षा गरुड़ करता है। इस रथ को दारूका चालू करता है। रथ में जो ध्वजाता है, उसे त्रैलोक्यमोहिनी कहते हैं। इसमें चार घोड़े होते हैं। इस रथ में वर्षा, गोबर्धन, कृष्णा, नरसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम हनुमान, वरुद्र विराजमान रहते हैं। इसे जिस रस्सी से जोड़ा जाता है, उसे शंखचूड़ा नागनी कहते हैं।
  • बलराम का रथ –  यह 43 फीट ऊँचा होता है, इसमें 14 प्रमाण होते हैं। इसे लाल, नीला, हरे रंग के कपड़े से देखा जाता है। इसके बचाव वासुदेव करते हैं। इसे मताली नाम की सहयोगी कम्पनियाँ। इसमें गणेश, कार्तिक, सर्वमंगला, प्रलंबी, हटायुध्य, मृत्युंजय, नाताम्वारा, मुक्तेश्वर, शेषदेव विराजमान रहते हैं। इसमें जो ध्वजाता है, उसे यूनानी कहते हैं। इसे जिस रस्सी से जोड़ा जाता है, उसे बासुकी नागा कहते हैं।
  • सुभद्रा का रथ –  इसमें 12 दृश्य होते हैं, जो 42 फीट ऊंचा होता है। इसे लाल काले रंग के कपड़े से पहचाना जाता है। इस रथ की रक्षा जयदुर्गा करता है, इसमें सारथि अर्जुन होता है। इसमें नंदबिक ध्वजता है। इसमें चंडी, चामुंडा, उग्रतारा होती, वनदुर्गा, शुलिदुर्गा, वाराही, श्यामकली, मंगला, विमला विराजमान है। इसे जिस रस्सी से जोड़ा जाता है, उसे नील चूड़ा नागनी कहते हैं।

इन रथों को हजारों लोग आपस में जुड़े हुए हैं, सभी लोग एक बार इस रथ को खींचना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका हर मनोकामना पूरी है। यही वो समय होता है जब जगन्नाथ जी को करीब से देखा जा सकता है।

रथ यात्रा सेलिब्रेशन (जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा उत्सव)–

रथ यात्रा गुंडीचा मंदिर पहुंचती है, अगले दिन तीनों मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया जाता है। फिर एकादशी थे ये वही रहते हैं। इस दौरान पूरी तरह से मेल भरता है, एक तरह से पोस्टिंग होती है। महाप्रसाद की बितरी होती है। एकादशी के दिन जब इन्हें वापस लाया जाता है, उस दिन वैसे ही भीड़ उमड़ती है, उस दिन को बहुडा कहते हैं। जगन्नाथ की प्रतिमा अपने मंदिर के गर्भ में स्थापित कर दी जाती है। साल में एक बार ही उनकी जगह एक मूर्ति को खड़ा किया जाता है।

रथ यात्रा की जानकारी देश विदेश के कई हिस्सों में होती है। भारत देश के कई मंदिरों में कृष्ण जी की प्रतिमा को नगर भ्रमण के लिए बहिष्कार किया जाता है। विदेश में इस्कॉन मंदिर द्वारा रथ यात्रा का आयोजन होता है। 100 से भी अधिक विदेशी शहरों में स्थित है, जिनमें से मुख्य डबलिन, लंदन, मेलबर्न, पेरिस, न्यूयॉर्क, सिंगापुर, टोरेंटो, मलेशिया, कैलिफ़ोर्निया है। इसके अलावा बांग्लादेश में रथ यात्रा की बहुत बड़ी घटना होती है, जिसे एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

 

 

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