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जानें भगवान शिव जी की तीसरी आंख का रहस्यमयी राज ?

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जानें भगवान शिव जी की तीसरी आंख का रहस्यमयी राज ?

भगवान शिव:  हर भगवान का महत्व और सबकी अपनी महिमा है. इनकी महिमा को समझ पाना जितना कठिन है, तो वहीं इनकी भक्ति में लीन हो जाना उतना ही सरल. हर भगवान की प्रकृति और स्वभाव भी अलग-अलग होता है. कुछ अति दुर्लभ तो कुछ अत्यंत सौम्य स्वभाव के बताए गए हैं. आने वाली 1 मार्च को भगवान शिव का दिन है अर्थात महाशिवरात्रि है. वैसे तो हर माह की चतुर्दशी को शिवरात्रि होती है परंतु फाल्गुन में होने वाली महाशिवरात्रि का कुछ अलग ही महत्व है. भगवान शिव से जुड़ी कई रोचक कहानियां हममें से सभी ने पढ़ी और सुनी होगी. आज हम आपको भगवान शिव की तीसरी आंख के बारे में विस्तृत रूप से बताएंगे और साथ इससे जुड़ी कथा से भी आपको अवगत कराएंगें.
भगवान शिव भक्तों के लिए पूजनीय होने के साथ-साथ अचरज का विषय भी है. शिव की वेशभूषा, वाहन आदि के बारे में अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं. इसी प्रकार उनकी तीसरी आंख की विशेषता भी है. इसी वजह से उनका नाम त्रयंबकं भी है. उनकी कुल तीन आंखों में से दांयी आंख को सूर्य तथा बांयी आंख को चंद्र कहा जाता है. जबकि मस्तक पर बनी तीसरी आंख अग्नि का स्वरूप मानी जाती है. दो आँखें भौतिक जगत में उनकी सक्रियता का परिचायक है और तीसरी आंख सामान्य से परे का सूचक है. यह आध्यात्मिक ज्ञान और शक्ति का सूचक है. अग्नि की तरह ही भगवान शिव की तीसरी आंख पापियों को कहीं से भी खोज सकती है और उन्हें पूरी तरह नष्ट कर सकती है.  दुष्टात्माएं उनकी तीसरी आंख से भयभीत रहती है, उनकी आधी खुली यह आंख बताती है कि संपूर्ण जगत की प्रक्रिया चल रही है. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शिव की तीसरी आंख खुलती है तो एक नए युग का सूत्रपात होता है. यह आंख इस बात का भी संकेत देती है कि सारे जगत का न तो आदि है न ही अंत. कहा जा सकता है कि भगवान शिव अपनी तीसरी आंख अधिक क्रोधित होने पर ही खोलते हैं.

Shiv Ji Ki tisri Aankh: भगवान शिव की तीसरी आंख का पुराणों में वर्णन मिलता है। उनके सभी चित्र और मूर्तियों में उनके माथे पर एक तीसरी आंख का चित्रण भी किया जाता रहा है। इसीलिए उन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। त्रिलोचन का अर्थ होता है तीन आंखों वाला क्योंकि एक मात्र भगवान शंकर ही ऐसे हैं जिनकी तीन आंखें हैं। उस आंख से वे वह सबकुछ देख सकते हैं जो आम आंखों से नहीं देखा जा सकता। आओ जानते हैं उनकी तीसरे नेत्र का रहस्य।

भगवान शिव के तीसरे नेत्र उत्पत्ती की रहस्य

महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व में यह जानकारी दी गई है कि भगवान भोलेनाथ को तीसरी आंख कैसे मिली थी. पौराणिक कथा में उल्लेख है कि एक बार भगवान शिव और माता पार्वती के बीच हुई बातचीत के बारे में नारद जी बताते हैं. इसी बातचीत में तीन आंखों का रहस्य छिपा है.

इस कहानी के बारे में नारद जी बताते हैं कि एक बार की बात है भगवान शिव हिमालय पर्वत पर एक सभा कर रहे थे, जिसमें सभी देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानीजन उपस्थित थे. तभी उस सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए खुद के दोनों हाथों को भगवान शिव की दोनों आंखों पर रख दिये.

जैसे ही माता पार्वती ने भगवान शिव की आंखों को ढका, सृष्टि में अंधेरा हो गया. ऐसा लगा मानो सूर्य देव की कोई अहमियत ही नहीं है. इसके बाद धरती पर मौजूद सभी प्राणियों में खलबली मच गई. संसार की ये हालत देख कर भगवान शिव व्याकुल हो उठे और उसी समय उन्होंने अपने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया, जो भगवान शिव की तीसरी आंख बन कर सामने आई. बाद में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें बताया कि अगर वो ऐसा नहीं करते तो संसार का नाश हो जाता, क्योंकि उनकी आंखें ही जगत की पालनहार हैं.