Other Articlesग्रह विशेष

ग्रहों का स्वरूप एवं प्रभाव

246views

ग्रहों का स्वरूप एवं प्रभाव

पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी प्राणी आकाशचारी ग्रहों से पूर्णरूपेण प्रभावित होते है। आज से हजारों वर्षं पूर्व भारतीय मनीषियों ने ‘यत्पिण्डे तत्ब्रह्मांडे‘ के आधार पर अपनी सूक्ष्म प्रज्ञा द्वारा शरीरस्थ सौरमंडल का भाली-भांति पर्यवेक्षण करके तदनुरूप आकाशीय सौरमंडल की व्यवस्था की थी। साथ ही आकाशीय ग्रहों द्वारा मानव-शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अन्वेषण किया था। बाद में देश-काल की सीमाओं को लांघती हुई भारतीय ज्योतिष-विद्या संपूर्ण विश्व में प्रचलित एवं प्रसारित हुई। तत्पश्चात् अनेक विदेशी विद्वानों ने भी इस शास्त्र के विभिन्न अंगो को विकसित करने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान किया।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनेक अंग है, किन्तु उनमें ‘गणित‘ और ‘फलित‘ का स्थान ही सर्वप्रमुख है। फलित ज्योतिष द्वारा मानव-जीवन पर पड़ने वाले विभिन्न ग्रहों के शुभाशुभ प्रभाव का विचार किया जाता है। मनुष्य जिस समय में जन्म लेता है, उस समय आकाशमंडल में विभिन्न ग्रहों की जो स्थिति होती है, उसका प्रभाव उसके पूरे जीवन पर पड़ता रहता है। फलित ज्योतिष का सबसे बड़ा लाभ यही है कि जिस प्रकार दीपक अंधेरे में रखी हुई वस्तुओं को प्रदर्शित करता है, उसी प्रकार जन्मकुंडली द्वारा जीवन में घटने वाली घटनाओं के ज्ञान का उद्घाटन होता है। ब्रह्मांड में अनेक ग्रह हैं, जिनमें से प्रमुख हैं – सूर्य,चंद्र,मंगल,बुध,बृहस्पति,शुक्र,राहु,एवं केतु। अब हम प्रत्येक ग्रह और उसकी विशेषताओं के बारे में समुचित प्रकाश डालेंगे।

सूर्य –

सूर्य बराबर लंबाई-चैड़ाई वाला,थोड़े बालों वाला, बहादुर,चुप-चुप-सा रहने वाला, अपने फन का माहिर,खूबसूरत शक्लोसूरत वाला,सांवला भी ऐसा,जिससे लाली टपकती दिखे, शहद की तरह आंखों वाला,पित्त-दोष वाला एवं नाटे कद का लड़ाकू होता है। अगर अकेला सूर्य जन्मकुंडली में हो और उस पर किसी दूसरे ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक अपने बलबूते पर आगे बढ़कर दौलतमंद बनता है।

सूर्य सिंह राशि का स्वामी (मालिक) है। यह अपनी मुसीबत में केतु पर मंदा असर डालता है। हर वर्ष बैसाखी के दिन प्रायः एक बैसाख या 13 अप्रैल को मेष राशि में सूर्य प्रवेश करता है। किसी भी ग्रह की शक्ति प्राप्त करने या किसी भी ग्रह के दुष्प्रभाव का नाश करने के लिए सूर्य की किरणों का या सूर्य का समय दिन में उचित माना गया है। जन्मकुंडली के जिस घर में सूर्य होगा,उस घर से संबंध रखने वाली वस्तुओं पर यह मंदा प्रभाव करेगा।

सूर्य के शत्रु शत्रु शुक्र, शनि और राहु-केतु हैं। बृहस्पत्ति, चंद्र और मंगल इसके मित्र हैं। मित्रों के साथ मिलाप होने पर सूर्य की शक्ति बढ़ती है। तब यह उत्तम फल देता है। वैसे शत्रुओं के मिलाप या टकराव से सूर्य के शरीर में बुध की बुद्धि का होना शरीर की महत्ता को बढ़ाता है। सूर्य के शरीर के साथ बुध की लड़की का मिलाप होने पर गृहस्थ रूपी जीवन की शुरूआत होती है। और आदमी में नई ताकत आ जाती है।
बुध का साथ होने पर एक ओर जहां सूर्य को महानता और ताकत मिलती है, वहीं दूसरी ओर बुध का दोष भी सूर्य के मिलने पर दूर हो जाता है। सभी ग्रहों में सूर्य ही एक ऐसा ग्रह है,जिसे वक्त का पाबंद कहा जा सकता है।

चंद्र

चंद्र बहुत उम्दा बोलने वाला,कोई वकील,शांत दिमाग वाला, बदन से खूबसूरत,ज्यादा खून की तादाद वाला, काले घुंघराले बालों वाला,कफ-वायु प्रकृति का,कमल की पंखुड़ियों जैसी आंखों वाला तथा गरिमा से भरा-पूरा होता है।

अगर जन्मकुंडली में अकेला चंद्र हो और उस पर किसी दूसरे ग्रह की नजर (दृष्टि) न हो तो जातक हर हालत में अपने कुल की हिफाजत करता है।उसका बर्ताव दया और नम्रतापूर्ण रहता है। जातक में अपने ऊपर आने वाले किसी भी आघात,दोष, यहां तक कि फांसी की सजा भी खारिज करवाने की बेमिसाल ताकत होती है।

चंद्र कर्क राशि का स्वामी है। यह अपने मित्र ग्रह बृहस्पति,मंगल एवं सूर्य पर अपना कुछ प्रभाव डालकर स्वयं बुरी स्थिति से बच जाता है। चंद्र चैथे घर का हर तरह से मालिक (स्वामी ) है। यह शनि के शत्रु सूर्य से मित्रता निभाने के लिए शनि के समय रात को भी सूर्य की तरह प्रकाश फैलाता है और शनि के अंधेरे को नष्ट करने का प्रयास करता है।

मन की शांति और दिल में चैन पैदा करने वाला, गंगा की तरह सबकी गंदगी को अपने अंदर समेटकर साफ-सुथरा रूप् देने वाला तथा गर्मी को ठंडक में बदल देने वाला ग्रह चंद्र है। इसे माता का प्रतीक माना गया है, इसलिए सभी ग्रह इसके कदमों में सिर झुकाकर बुराई खुद-ब-खुद खत्म हो जाती है।

मंगल

मंगल बड़ा दयालु,खतरनाक,हिंसक स्वभाव वाला, अस्थि में बल वाला, लाल रंगत वाला,चतुर,शूर,पित्त प्रकृति का, तामसी, भयंकर-पीली आंखों वाला, जवान, बहुत ज्यादा घमंड करने वाला और अग्नि के समान कांति वाला होता है।

मंगल मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी है। अशुभ मंगल अपने लिए केतु को बलि का बकरा बनाता है। ग्रहों की बनावट के अनुसार अशुभ मंगल के बनावटी अंश सूर्य और शनि हैं। जब अशुभ मंगल खराब होकर बुरे असर करेगा, तो अपनी कुर्बानी के लिए वह बेटे पर असर डाल देगा। इसका कारण यह है कि मंगल के बनावटी अंश सूर्य और शनि आपस में बाप-बेटे हैं। इसका प्रभाव शनि पर ज्यादा पडे़गा जो बेटे का कारक है।

दुसरे ग्रहों के अलावा मंगल में एक बहुत ही खास बात भी है। अपना अच्छा असर दिखाते-दिखाते जब कभी यह बुरा असर करता है, तो उसकी चाल में एकाएक बहुत तेजी आ जाती है। फिर तेज चाल से यह बुरा असर डालना शुरू कर देता है। जब तक मंगल के मंदे असर को रोकने के लिए कोई उपाय किया जाए, तब तक यह इतना भारी नुकसान कर देगा, जिसकी भरपाई करने में बहुत ज्यादा वक्त गुजर जाएगा। कई बार तो मंगल के बुरे असर को रोकना ही नामुमकिन हो जाता है।मंगल के मंदे असर को चंद्र की मदद से दूर किया जा सकता है या रोका जा सकता है। बृहस्पति,सूर्य और चंद्र-मंगल के मित्र ग्रह हैं। बुध और केतु की गिनती इसके शत्रुओं में होती है।