॥ श्रीभगवतीस्तोत्रम् पुरश्चरण साधना विधि ॥
(श्री आदि शंकराचार्य रचित स्तोत्र – “नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पे…”)
यह स्तोत्र मातृतत्त्व की करुणामयी, ज्ञानस्वरूपा और रक्षास्वरूपा भगवती की स्तुति है। इसे “श्रीभगवतीस्तोत्रम्” या “नमस्ते शरण्ये स्तोत्र” भी कहते हैं। इसका पुरश्चरण करने से भीति विनाश, चित्तशुद्धि, आत्मरक्षा, देवीकृपा, और ज्ञानप्राप्ति होती है।
🔱 1. श्रीभगवतीस्तोत्रम् का स्वरूप व महत्त्व
तत्त्व | विवरण |
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✍🏻 रचयिता | श्री आदि शंकराचार्य |
🌺 देवी रूप | करुणामयी, शरणागतवत्सला, रक्षारूपिणी |
📜 श्लोक | 12 (कुछ पाण्डुलिपियों में 9) |
🪔 प्रयोजन | भय निवारण, रक्षाकवच, भक्तिरक्षा, स्त्रीशक्ति आराधना |
🧠 स्वरूप | करुणा, अद्वैत-भावना से पूर्ण |
📅 2. कब करें? (उत्तम समय)
समय | कारण |
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नवरात्रि (चैत्र या आश्विन) | देवी सिद्धि का श्रेष्ठ काल |
अमावस्या / पूर्णिमा | देवीपूजन हेतु उपयुक्त |
शिवरात्रि, शुक्रवार, चतुर्दशी | भगवती (शिवशक्ति) तत्त्व प्रबल |
ब्रह्ममुहूर्त (4:00–6:00 am) | मन की निर्मलता हेतु श्रेष्ठ |
🛕 3. कहाँ करें? (स्थान)
- एकांत व शुद्ध पूजाघर
- भगवती की मूर्ति/चित्र/श्रीचक्र के सामने
- दीप व अगरबत्ती से देवी का आह्वान
📿 4. कितना करें? (संख्या निर्धारण)
स्तर | पाठ संख्या | अवधि |
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प्रारंभिक | 11 पाठ × 9 दिन | 99 पाठ |
मध्यम | 21 पाठ × 9 दिन | 189 पाठ |
पूर्ण पुरश्चरण | 108 पाठ × 9 दिन = 972 पाठ + हवन, तर्पण, ब्राह्मण भोजन |
✅ हवन का दशांश (97+), तर्पण-मार्जन आदि अनिवार्य होते हैं
🙏 5. क्यों करें? (उद्देश्य व लाभ)
उद्देश्य | प्राप्ति |
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भय से मुक्ति | रक्षणं करोतु भगवती |
मानसिक अस्थिरता निवारण | चित्तशुद्धि |
आत्मरक्षा व आत्मबल | तेज, स्थैर्य |
देवी कृपा व भक्ति | माँ की कृपा से जीवन संयमित |
स्त्री शक्ति के जागरण हेतु | आंतरिक शक्ति सक्रिय होती है |
🧘♀️ 6. कैसे करें? (विधि विस्तार)
(1) संकल्प:
“मम समस्त भय विनाशार्थं, आत्मरक्षा-सिद्ध्यर्थं, भगवतीकृपा प्राप्त्यर्थं श्रीभगवतीस्तोत्रस्य पुरश्चरणं करिष्ये।”
(2) पूजन विधि:
- दीप-धूप, पुष्प, नैवेद्य से देवी पूजन
- गायत्री/श्रीविद्या/ललिता के मंत्रों से ध्यान
- बीज मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
या ॐ श्री मातृनमः
(3) पाठ विधि:
- एकाग्रता से 12 श्लोकों का पाठ
- प्रत्येक श्लोक के अंत में “नमस्ते नमस्ते नमो नमः” का जप
- अंत में “ॐ भगवत्यै नमः” × 108 बार जप
(4) हवन:
- दशांश हवन
- सामग्री: गाय का घी, गुड़, तिल, चंदन, कमलपत्र, शतपत्री
- प्रत्येक श्लोक पर स्वाहा सहित आहुति दें
(5) तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण सेवा:
- देवी तत्त्व को तर्पण — “ॐ भगवत्यै स्वाहा तर्पयामि”
- स्नान या जल से मार्जन
- ब्राह्मण स्त्री या कन्या भोजन, वस्त्रदान
📌 7. नियम:
अनुशासन | आवश्यकताएँ |
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सात्त्विक आहार | लहसुन-प्याज वर्जित |
ब्रह्मचर्य | विशेष रूप से नवरात्र में |
मौन / वाणी संयम | पाठ पश्चात |
नित्य नियमबद्ध पाठ | स्थान-काल समान रखें |
मानसिक शुद्धता | रज-तम गुण त्याग |
🔚 निष्कर्ष:
“श्रीभगवतीस्तोत्रम्” शरणागत भक्त का कवच है।
यह स्तोत्र आपके मन, शरीर और आत्मा को माँ की गोद जैसा संरक्षण देता है।
करुणा, चेतना और शक्ति का संपूर्ण संगम इसी स्तोत्र में है।
श्रीभगवतीस्तोत्रम्
जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥१॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे, जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे, जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥२॥
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे, जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते, जय भास्करशक्रशिरोऽवनते॥३॥
जय षण्मुखसायुधईशनुते, जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे, जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥४॥
जय देवि समस्तशरीरधरे, जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे, जय वाच्छितदायिनि सिद्धिवरे॥५॥
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियतः शुचिः।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥६॥
इति व्यासकृतं श्रीभगवतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्