॥ भज गोविन्दम् (मोह मुद्गरः) पुरश्चरण साधना विधि ॥
(रचयिता: श्री आदि शङ्कराचार्य)
“भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते…”
— यह स्तोत्र केवल भक्ति नहीं, अपितु ज्ञान, वैराग्य और मोक्षबोध का दिव्य संगम है। ‘मोहमुद्गरः’ नाम से विख्यात, यह मोह के भ्रम को तोड़ने वाली वाणी है। इसका पुरश्चरण जीवन की दिशा और दृष्टि दोनों बदल सकता है।
📘 1. भज गोविन्दम् का स्वरूप व महत्त्व
तत्व | विवरण |
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✍🏻 रचयिता | श्री आदि शङ्कराचार्य |
🕉️ विषय | वैराग्य, मोहमुक्ति, गोविन्द भक्ति |
📜 श्लोक | कुल ~33 श्लोक (12 प्रमुख + शिष्यकृत 14–21) |
💡 शैली | पद्यबद्ध, संकीर्तन योगयुक्त |
📿 प्रयोजन | विवेक जागरण, भक्ति-ज्ञान-संयम, मोह क्षय, वैराग्य सिद्धि |
🗓️ 2. कब करें? (उत्तम समय)
समय | कारण |
---|---|
🪔 कार्तिक मास, बसंत पंचमी, गीता जयंती | आत्मज्ञान हेतु श्रेष्ठ काल |
🕐 ब्रह्ममुहूर्त (4–6am) | चित्त निर्मलता |
🧘 रोज सुबह अथवा सायंकाल | नियमित अभ्यास के लिए उत्तम |
🛕 3. कहाँ करें? (स्थान)
- शांत, पवित्र और सात्त्विक स्थान
- ध्यान हेतु उपयुक्त – घर का पूजागृह, गीता कक्ष या अध्ययन स्थान
- यदि संभव हो, भगवान विष्णु, गोविन्द या श्रीकृष्ण प्रतिमा के समक्ष
📿 4. कितनी बार करें? (संख्या निर्धारण)
साधना स्तर | पाठ संख्या | अवधि |
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प्रारंभिक | 11 पाठ × 11 दिन | 121 पाठ |
मध्यम | 21 × 21 दिन | 441 पाठ |
परिपूर्ण | 108 × 11 दिन = 1188 पाठ + हवन + तर्पण + भोजन |
🙏 5. क्यों करें? (उद्देश्य और लाभ)
उद्देश्य | फल |
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मोह और भ्रम का क्षय | विवेक जागरण |
वैराग्य और आत्मज्ञान | शांत, स्थिर चित्त |
गोविन्द-भक्ति | प्रभु के प्रति समर्पण |
गीता भाव के बोध हेतु | ज्ञान+भक्ति+संयम का संतुलन |
साधना में चित्त स्थिरता | भावनात्मक शुद्धि |
🧘♂️ 6. कैसे करें? (विधि विस्तार)
(1) संकल्प:
“मम मोहमुक्त्यर्थं, ज्ञानवैराग्यप्राप्त्यर्थं, श्रीशङ्कराचार्यविरचितं ‘भज गोविन्दं’ स्तोत्रस्य पुरश्चरणं करिष्ये।”
(2) पूजन विधि:
- भगवान गोविन्द/कृष्ण की प्रतिमा/तस्वीर
- पंचोपचार पूजन: दीप, धूप, पुष्प, नैवेद्य, जल
- मंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
(3) स्तोत्रपाठ विधि:
- शुद्ध उच्चारण व भावपूर्ण पाठ
- प्रति पाठ में 33 श्लोक (मुख्य + शिष्यकृत)
- यदि संभव हो, धीमी धुन में गायन शैली में करें
- पाठ के अंत में “भज गोविन्दं” का 12 बार जप करें
(4) हवन:
- पाठ संख्या का दशांश (1/10) हवन
- सामग्री: गाय का घी, तिल, गुड़, तुलसीदल
- हर श्लोक पर ‘स्वाहा’ उच्चारण
(5) तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण सेवा:
- जल से तर्पण – “श्रीशङ्कराचार्याय नमः तर्पयामि”
- मंत्रस्नान या मार्जन
- ब्राह्मण या ज्ञानी साधक को भोजन/दान
📌 7. साधना के नियम (अनुशासन)
नियम | पालन |
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सात्त्विकता | आहार, व्यवहार, वाणी सभी में |
ब्रह्मचर्य | अनुशंसा की जाती है |
मौन या वाणी संयम | विशेष रूप से पाठ उपरान्त |
नियमित समय व स्थान | चित्त स्थिरता हेतु अनिवार्य |
अध्ययन भावना | केवल पाठ नहीं, मनन आवश्यक |
🧠 विशेष सुझाव:
- भज गोविन्दम् स्तोत्र का मनन करें, केवल जप नहीं।
- हर दिन एक श्लोक को समझकर, उसका जीवन में अर्थ उतारें।
- यह स्तोत्र ज्ञान-भक्ति का मधुर सेतु है – केवल भाव से नहीं, विवेक से जियें।
🔚 निष्कर्ष:
भज गोविन्दम् केवल स्तुति नहीं — यह शंकराचार्य का जीवन दृष्टिकोण है, जो हमें मोह, माया, असारता से निकालकर गोविन्द स्मरण और विवेक की ओर ले जाता है।
भज गोविन्दम् (मोह मुद्गरम्)
भज गोविन्दं भज गोविन्दं
गोविन्दं भज मूढमते ।
सम्प्राप्ते सन्निहिते काले
नहि नहि रक्षति डुकृङ्करणे ॥ 1 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
मूढ जहीहि धनागमतृष्णां
कुरु सद्बुद्धिं मनसि वितृष्णाम् ।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तं
वित्तं तेन विनोदय चित्तम् ॥ 2 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
नारीस्तनभर-नाभीदेशं
दृष्ट्वा मा गा मोहावेशम् ।
एतन्मांसवसादिविकारं
मनसि विचिन्तय वारं वारम् ॥ 3 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
नलिनीदल-गतजलमतितरलं
तद्वज्जीवितमतिशय-चपलम् ।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं
लोकं शोकहतं च समस्तम् ॥ 4 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
यावद्वित्तोपार्जनसक्तः
तावन्निजपरिवारो रक्तः ।
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे
वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे ॥ 5 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
यावत्पवनो निवसति देहे
तावत्पृच्छति कुशलं गेहे ।
गतवति वायौ देहापाये
भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ॥ 6 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
बालस्तावत्क्रीडासक्तः
तरुणस्तावत्तरुणीसक्तः ।
वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः
परमे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः ॥ 7 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
का ते कान्ता कस्ते पुत्रः
संसारोऽयमतीव विचित्रः ।
कस्य त्वं कः कुत आयातः
तत्त्वं चिन्तय तदिह भ्रातः ॥ 8 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
सत्सङ्गत्वे निस्सङ्गत्वं
निस्सङ्गत्वे निर्मोहत्वम् ।
निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं
निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः ॥ 9 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
वयसि गते कः कामविकारः
शुष्के नीरे कः कासारः ।
क्षीणे वित्ते कः परिवारः
ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः ॥ 10 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
मा कुरु धन-जन-यौवन-गर्वं
हरति निमेषात्कालः सर्वम् ।
मायामयमिदमखिलं हित्वा
ब्रह्मपदं त्वं प्रविश विदित्वा ॥ 11 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
दिनयामिन्यौ सायं प्रातः
शिशिरवसन्तौ पुनरायातः ।
कालः क्रीडति गच्छत्यायुः
तदपि न मुञ्चत्याशावायुः ॥ 12 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
का ते कान्ता धनगतचिन्ता
वातुल किं तव नास्ति नियन्ता ।
त्रिजगति सज्जनसङ्गतिरेका
भवति भवार्णवतरणे नौका ॥ 13 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
द्वादश-मञ्जरिकाभिरशेषः
कथितो वैयाकरणस्यैषः ।
उपदेशोऽभूद्विद्या-निपुणैः
श्रीमच्छङ्कर-भगवच्छरणैः ॥ 14 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
जटिलो मुण्डी लुञ्छितकेशः
काषायाम्बर-बहुकृतवेषः ।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः
उदरनिमित्तं बहुकृतवेषः ॥ 15 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं
दशनविहीनं जातं तुण्डम् ।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं
तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम् ॥ 16 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
अग्रे वह्निः पृष्ठे भानुः
रात्रौ चुबुक-समर्पित-जानुः ।
करतल-भिक्षस्तरुतलवासः
तदपि न मुञ्चत्याशापाशः ॥ 17 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
कुरुते गङ्गासागरगमनं
व्रत-परिपालनमथवा दानम् ।
ज्ञानविहीनः सर्वमतेन
भजति न मुक्तिं जन्मशतेन ॥ 18 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
सुरमन्दिर-तरु-मूल-निवासः
शय्या भूतलमजिनं वासः ।
सर्व-परिग्रह-भोगत्यागः
कस्य सुखं न करोति विरागः ॥ 19 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
योगरतो वा भोगरतो वा
सङ्गरतो वा सङ्गविहीनः ।
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं
नन्दति नन्दति नन्दत्येव ॥ 20 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
भगवद्गीता किञ्चिदधीता
गङ्गाजल-लवकणिका पीता ।
सकृदपि येन मुरारिसमर्चा
क्रियते तस्य यमेन न चर्चा ॥ 21 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं
पुनरपि जननीजठरे शयनम् ।
इह संसारे बहुदुस्तारे
कृपयाऽपारे पाहि मुरारे ॥ 22 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
रथ्याचर्पट-विरचित-कन्थः
पुण्यापुण्य-विवर्जित-पन्थः ।
योगी योगनियोजित-चित्तः
रमते बालोन्मत्तवदेव ॥ 23 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः
का मे जननी को मे तातः ।
इति परिभावय सर्वमसारं
विश्वं त्यक्त्वा स्वप्नविचारम् ॥ 24 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णुः
व्यर्थं कुप्यसि मय्यसहिष्णुः ।
भव समचित्तः सर्वत्र त्वं
वाञ्छस्यचिराद्यदि विष्णुत्वम् ॥ 25 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ
मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ ।
सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं
सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम् ॥ 26 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
कामं क्रोधं लोभं मोहं
त्यक्त्वाऽऽत्मानं पश्यति सोऽहम् ।
आत्मज्ञानविहीना मूढाः
ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः ॥ 27 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
गेयं गीता-नामसहस्रं
ध्येयं श्रीपति-रूपमजस्रम् ।
नेयं सज्जन-सङ्गे चित्तं
देयं दीनजनाय च वित्तम् ॥ 28 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
सुखतः क्रियते कामाभोगः
पश्चादन्त शरीरे रोगः ।
यद्यपि लोके मरणं शरणं
तदपि न मुञ्चति पापाचरणम् ॥ 29 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
अर्थमनर्थं भावय नित्यं
नास्तिततः सुखलेशः सत्यम् ।
पुत्रादपि धनभाजां भीतिः
सर्वत्रैषा विहिता रीतिः ॥ 30 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
प्राणायामं प्रत्याहारं
नित्यानित्य विवेकविचारम् ।
जाप्यसमेतसमाधिविधानं
कुर्ववधानं महदवधानम् ॥ 31 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
गुरुचरणाम्बुज-निर्भरभक्तः
संसारादचिराद्भव मुक्तः ।
सेन्द्रियमानस-नियमादेवं
द्रक्ष्यसि निजहृदयस्थं देवम् ॥ 32 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
मूढः कश्चन वैयाकरणो
डुःकृङ्करणाध्ययनधुरीणः ।
श्रीमच्छङ्कर-भगवच्छिष्यैः
बोधित आसीच्छोधित-करणः ॥ 33 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …
भज गोविन्दं भज गोविन्दं
गोविन्दं भज मूढमते ।
नामस्मरणादन्यमुपायं
नहि पश्यामो भवतरणे ॥ 34 ॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं …