Other Articles

चमत्कारी बटुक भैरव मंत्र को सिद्ध करें

4views

ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय बं ह्रीं ॐ स्वाहा”

यह मंत्र भगवान बटुक भैरव का अत्यंत प्रभावशाली आपदुद्धारण (आपत्ति नाशक) मंत्र है। यह मंत्र विशेष रूप से संकट, भय, बाधा, दुष्ट शक्तियों, अकारण मुकदमे, शत्रु बाधा, और भूत-प्रेत दोष से रक्षा हेतु जपा जाता है।

🌒 मंत्र का संक्षिप्त अर्थ:

ॐ ह्रीं बं — बीज मंत्र हैं जो चेतना को जाग्रत करते हैं और शक्ति का आह्वान करते हैं।

बटुकाय — बाल रूप वाले भैरव को नमन।

आपदुद्धारणाय — आपदाओं (संकटों) से उबारने वाले।

कुरु कुरु — शीघ्र कार्यान्वयन हेतु आदेश।

स्वाहा — समर्पण और आह्वान की पूर्णता।

🧘‍♂️ जाप विधि (Japa Vidhi)

कब करें?

रात्रि काल सर्वोत्तम माना गया है, विशेषतः रात 9 से 12 बजे के बीच।

लेकिन यदि रात्रि में करना संभव न हो तो ब्राह्म मुहूर्त (प्रातः 4 से 6 बजे) भी उपयुक्त है।

कैसे करें?

स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें।

अपने सामने बटुक भैरव जी का चित्र या मूर्ति रखें।

ALSO READ  महाराज विक्रमादित्य और अमलेश्वर की मौन आराधना

दीपक (घी या तिल तेल) जलाएं।

कुछ पुष्प, कपूर, चन्दन आदि अर्पित करें।

आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से जाप करें।

पूर्व दिशा या दक्षिण दिशा की ओर मुख रखें।

📿 जाप की संख्या:

उद्देश्य जाप की संख्या अवधि

सामान्य शांति हेतु 108 बार प्रतिदिन

विशेष संकट से मुक्ति 1008 बार 11 दिन

तांत्रिक बाधा/कालसर्प दोष 5 माला (540 बार) 21 दिन

📅 कितने दिन करें?

सामान्य सुरक्षा व शांति हेतु: प्रतिदिन 108 बार 21 दिन या 40 दिन तक करें।

विशेष अनुष्ठान: मंगलवार या शनिवार से आरंभ कर 11, 21 या 40 दिन तक नियमित करें।

🚫 सावधानियाँ:

जाप के दौरान मौन रखें या एकांत में जाप करें।

माला का उपयोग करते समय मध्यमा और अंगूठा से माला घुमाएँ, तर्जनी अंगुली का उपयोग न करें।

जाप के पश्चात कृपया भोजन आदि न करें, पहले कुछ समय ध्यान करें या ‘जय बटुक भैरव’ बोलें।

🔱 अतिरिक्त उपाय:

ALSO READ  पवमान सूक्तम 

जाप के साथ प्रतिदिन “भैरव चालीसा” या “बटुक भैरव कवच” का पाठ करें।

शनिवार को सरसों के तेल का दीपक भैरव जी को अर्पित करें।

यदि आप “ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय बं ह्रीं ॐ स्वाहा।”

— इस अत्यंत प्रभावशाली बटुक भैरव मंत्र का पौरश्चरण (पुरश्चरण) करना चाहते हैं, तो यह मंत्र सिद्धि के लिए वैदिक एवं तांत्रिक दोनों परंपराओं में मान्य है।

🔱 पुरश्चरण क्या है?

पुरश्चरण का अर्थ होता है किसी मंत्र को पूर्ण श्रद्धा, विधिपूर्वक, निश्चित संकल्प व संख्या के अनुसार सिद्ध करने का अनुष्ठान। इसके पाँच अंग होते हैं:

जप (मंत्र संख्या)

होम (जप का 10%)

तर्पण (होम का 10%)

मार्जन (तर्पण का 10%)

ब्रह्मभोज (अंत में एक यज्ञ, पूजा या अन्नदान)

🔢 इस मंत्र का पुरश्चरण — मंत्र संख्या:

मंत्र का वर्ण संख्या पर आधारित सिद्धानुसार:

🌟 इस मंत्र में कुल अक्षर = 21 बीजाक्षर (लगभग)

उदाहरण:

ॐ (1) ह्रीं (1) बं (1) बटुकाय (3) आपदुद्धारणाय (6) कुरु कुरु (4) बटुकाय (3) बं (1) ह्रीं (1) ॐ स्वाहा (2) ≈ 21

ALSO READ  पाप, ग्रहबाधा, पितृदोष शमन का अचूक उपाय

👉 तो नियम है:

मंत्र के प्रत्येक अक्षर × 1 लाख = पुरश्चरण संख्या

📿 21 × 1,00,000 = 21,00,000 जाप

📜 संक्षेप में:

पुरश्चरण तत्व संख्या

जप संख्या 21,00,000 मंत्र

होम (10%) 2,10,000 आहुति

तर्पण (10% of होम) 21,000 तर्पण

मार्जन (10% of तर्पण) 2,100 मार्जन

ब्रह्मभोज/पुष्टिकरण 5 ब्राह्मण भोज या 11 पवित्र जनों का सत्कार

समय निर्धारण (वैकल्पिक योजना):

अवधि प्रतिदिन मंत्र

40 दिन 52,500

84 दिन 25,000

108 दिन 19,444

210 दिन 10,000

👉 नियमितता और संकल्प आवश्यक — एक दिन भी चूके तो पुनः संकल्प लेकर पुनरारंभ करें।

📌 विशेष सुझाव:

केवल जप भी करें तो संकट नाश व रक्षण हेतु महान फल देता है।

होम यदि न हो सके तो एक छोटी अग्निकुंड में तिल/घी/गुग्गुल से करें।

तर्पण के लिए जल + तिल + कुश से पितरों को तर्पण दें।

मार्जन में वही जल शरीर पर छिड़कें।