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॥ श्री शिव ताण्डव स्तोत्रम् – पुरश्चरण साधना विधि ॥
(रचयिता: रावणेश्वर रावण)
“जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले…”
— यह स्तोत्र शिव के रौद्र, नटराज, अघोर और ताण्डव स्वरूप का गहन स्तवन है। इसे साधना पूर्वक पढ़ने से शिवानुभूति, बल, वाणीशक्ति, दुःख विनाश, तामस-शुद्धि और भक्ति-वीर्य की प्राप्ति होती है।
🔱 1. शिवताण्डव स्तोत्र का स्वरूप व महत्त्व:
तत्व | विवरण |
---|---|
✍🏻 रचयिता | रावण – परम शिवभक्त |
🔥 शैली | वीरोदात्त छन्द, ताण्डव लय में |
🕉️ स्तोत्र | 16 श्लोक + फलश्रुति |
📿 प्रयोजन | वाणी सिद्धि, तामस शुद्धि, शिव कृपा, शक्ति जागरण |
🪔 बीज मंत्र | “ॐ नमः शिवाय”, “ॐ हौं जूं सः” आदि |
📅 2. कब करें? (उत्तम समय)
समय | कारण |
---|---|
🌕 श्रावण मास | शिव आराधना का श्रेष्ठ काल |
🔱 प्रदोषकाल, शिवरात्रि, सोमवार | विशेष फलदायक |
🕐 ब्रह्ममुहूर्त (4-6am) | ताण्डव ऊर्जा से सन्नद्ध समय |
🌑 अमावस्या या त्रयोदशी रात्रि | शिव-तामस रूप से जुड़ाव |
🛕 3. कहाँ करें? (स्थान)
- घर में एकांत साधना स्थान (उत्तर-पूर्व दिशा श्रेष्ठ)
- शिवलिंग, नटराज मूर्ति या शिवयंत्र के सामने
- शुद्ध व सात्त्विक वातावरण
📿 4. कितनी बार करें? (संख्या निर्धारण)
साधना स्तर | पाठ संख्या | अवधि |
---|---|---|
सामान्य | 11 बार × 11 दिन | 121 पाठ |
मध्यम | 21 बार × 21 दिन | 441 पाठ |
पूर्ण पुरश्चरण | 108 पाठ × 11 दिन = 1188 पाठ + हवन + तर्पण + भोजन |
ध्यान दें: एक पाठ में 16 श्लोक पढ़े जाते हैं।
🙏 5. क्यों करें? (सिद्धि एवं लाभ)
उद्देश्य | प्राप्त फल |
---|---|
शिवतत्त्व जागरण | चित्त शुद्धि |
वाणी, स्मरण शक्ति, तेज | वाक्सिद्धि |
भय, तामस, नकारात्मकता निवारण | मानसिक संतुलन |
विपत्ति, रोग, शत्रु बाधा नाश | शिव रक्षा |
वीर रस, ऊर्जा, संकल्प शक्ति | जीवन में सफलता |
🧘♂️ 6. कैसे करें? (विधि विस्तार)
(1) संकल्प:
“ॐ नमः शिवाय। मम वाक्सिद्ध्यर्थं, आत्मबलवृद्ध्यर्थं, श्रीशिवताण्डवस्तोत्रस्य पुरश्चरणं करिष्ये।”
(2) शिव पूजन:
- अभिषेक (जल, बिल्वपत्र, चन्दन, धूप)
- दीपाराधन
- मंत्र: “ॐ नमः शिवाय”, “ॐ हौं नमः शिवाय”
(3) स्तोत्र पाठ विधि:
- उच्च स्वर में, लयबद्ध ताण्डव छन्द में पाठ करें
- हर श्लोक के अंत में “नमः शिवाय” मंत्र का जप करें
- यदि संभव हो, ढोलक/डमरू/मृदंग से लय का सहारा लें
(4) हवन:
- पाठ संख्या का 1/10 भाग हवन
- हवन सामग्री: गुड़, तिल, कपूर, बेलपत्र, गोकर्ण पुष्प
- प्रत्येक श्लोक का उच्चारण कर “स्वाहा” करें
(5) तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण भोजन:
- शिवतत्त्व को जल से तर्पण
- पवित्र जल से स्नान/मार्जन
- ब्राह्मण को भोजन या वस्त्र दान
🧾 7. नियम (अनुशासन):
नियम | पालन |
---|---|
🌱 सात्त्विक आहार | अनिवार्य |
🧘 ब्रह्मचर्य | अत्यन्त लाभकारी |
🕯️ नियमित समय व स्थान | अनुशासन आवश्यक |
📚 शुद्ध पाठ | वाणी पर नियंत्रण |
📿 शिव ध्यान व मौन व्रत | अधिक प्रभावशाली |
🔚 निष्कर्ष:
शिव ताण्डव स्तोत्रम् – न केवल एक काव्य, बल्कि शिव-चैतन्य का नादात्मक स्तम्भ है।
इसका पुरश्चरण वाणी, तेज, स्मृति, बल, भयविनाश और आत्मबल का स्रोत है।
शिव ताण्डव स्तोत्र
- जटाटवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्।
- डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥
- जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
- धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥
- धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
- कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
- जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
- मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदमद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
- सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
- भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
- ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्।
- सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
- करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
- धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
- नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
- निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
- प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा वलंबि कंठकंध लीरुचि प्रबंधकंधरम्।
- स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
- अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
- स्मरांतकं पुरातकं भवांतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
- जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
- धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
- दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकस्रजो गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
- तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः सम प्रवर्तयन् मन: कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
- कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुंज-कोटरे वसन् विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मंजलिं वहन्।
- विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
- निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
- तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥
- प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
- विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
- इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
- हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥
- पूजाऽवसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
- तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मिं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
- ॥ इति श्रीरावणकृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥