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हल षष्ठी कब है , जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

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हल षष्ठी कब है , जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है हल षष्ठी व्रत। भगवान कृष्ण के बड़े भाई हिंदू भगवान बलराम को समर्पित है। हल षष्ठी 2024 की तिथि 24 अगस्त है। यह भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष या चंद्रमा के अंधेरे चरण के दौरान छठे दिन मनाया जाता है, जैसा कि पारंपरिक कैलेंडर में माना जाता है।उत्तर भारतहल या हल बलराम का हथियार है और लोकप्रिय मान्यता है कि इसी दिन वे पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। इस दिन भगवान बलराम की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन आंशिक उपवास भी रखा जाता है।

हिन्दूओं के लिए यह दिन बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। भाद्रपद की कृष्णा की षष्ठी को श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ। बलराम जी को बलदेव, बलभद्र, हलधारा, हलायुध और संस्कार के रूप में भी जाना जाता है। बलरामजी को शेषनाग का अवतार माना जाता है। कुछ लोग माता सीता का जन्म दिवस इसी तिथि को मानते हैं। बलरामजी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है। इसलिए उन्हें हलधर भी कहते हैं। उन्हीे के नाम पर इस पर्व का नाम हल षष्ठी कहा जाता है। हमारे देश के पूर्वी जिलों में इसे ललई छट भी कहते हैं। इस दिन महुए की दातुन करने का विधान है। इस व्रत में हल द्वारा जुला हुआ फल तथा अन्न का प्रयोग वर्जित होता है। इस दिन गाय का दूध दही का प्रयोग भी वर्जित है। भैंस का दूध व दही प्रयोग किया जाता है।

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हलषष्ठी व्रत कब व क्यों किया जाता है ?

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष का छठवां दिन अर्थात् षष्ठी तिथि को हलषष्ठी का व्रत किया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। यह व्रत संतान प्राप्ति, संतान की लम्बी आयु (दीर्घायु) के लिए व सुख-समृद्धि के लिए माताओं द्वारा रखा जाता है। हलषष्ठी व्रत करने से संतान सुरक्षित रहती है

षष्ठी तिथि आरंभ- 24 अगस्त 2024 सुबह 07:51 बजे
षष्ठी तिथि समाप्त – 25 अगस्त 2024 सुबह 05:30 बजे

हलषष्ठी व्रत विधि
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान व ध्यान से निवृत होकर गोबर लाएं और उसे जमीन पर लेपकर छोटा सा तालाब बना लें। इसमें झरबेरी, ताश, गूलर, पलाश की एक एक शाखा बांधकर बनाई हरछठ को गाड़ दें और तालाब में जल भर दें। इसके बाद तालाब में वरुण देव की पूजा अर्चना करें। साथ ही इस दिन भगवान गणेश, माता पार्वती के साथ छठ माता की भी पूजा की जाती है। पूजा में सतनाजा यानी सात तरह के अनाज (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का और मूंग) चढ़ाने के बाद हरी कजरिया, होली की राख, धूल, भुने हुए चने के होरहा तथा जौ की बालें चढ़ाएं। पूजा स्थल पर बच्चों के खिलौना रखें और जल से भरा कलश भी रखें। हरछठ के पास ही श्रृंगार का सामान, हल्दी से रंगा कपड़ा और आभूषण भी रखें। पूजन में भैंस का दूध और दही का ही उपयोग करें। इसके बाद सभी की पूजा अर्चना करें और कथा सुनें।

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हलषष्ठी व्रत का महत्व 
देश के अलग-अलग हिस्सों में हलषष्ठी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे ललही छठ, हर छठ, हल छठ, पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहा जाता है। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन बलरामजी पूजा और खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले उपकरणों की पूजा होती है। महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती है।

हल षष्ठी कथा

एक गर्भवती ग्वालिन  के प्रसव का समय समीप था। उसे प्रसव पीड़ा होने लगी थी। उसका दही-मक्खन बेचने के लिए रखा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो दही-मक्खन बिक नहीं पायेगा। यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया। उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।

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इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया। कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।

ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपने दूध-दही के बारे में बताया और उसके फलस्वरूप मिले दंड का के बारे भी बताया। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर, उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।