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क्या नया सबेरा प्रदेश में परिवर्तन लायेगा….?????

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समय की कचहरी का बेरहम न्याय- क्या नया सबेरा प्रदेश में परिवर्तन लायेगा….?????
जब किसी भी व्यवस्था में चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामाजिक हो, राष्ट्रीय हो या वैश्विक हो, मूल्य यानि वैल्यू और वैलिडिटी यानि समयगत वैधता,की कसौटी पर कसी हुई परिक्षित मर्यादा रेखा का अतिक्रमण होता है,यानि कानून की किसी धारा या प्रावधान का उल्लंघन होता है तब ही गलतियॉ होती हैं,अब जब ये गलतियाँ साशय हो तो ये गंभीरतम अपराधत होता है….नसबंदी प्रकरण में दवाओ का इस्तेमाल,चुनाव, खरीदी,ऑपरेशन का स्थान,समय,दक्षता, सहायकों की उपलब्धता ऐसे बहुत से बिन्दुओ में घोर असावधानी बरती गयी….शायद इस तरह के हर दुर्घटनाओ में कमोबेश ये गलतियाँ दुहरायिगायी….मतलब व्यवस्था ने एक गलती के बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी गलतियाँ की जिसका मतलब साफ़ है की सत्ता और प्रशासन में बैठे लोगों का सामाजिक सरोकार समाप्त हो गया है संवेदनाए समाप्त हो गयी है और इन लोगो ने षड्यंत्रपूर्वक इस और इन जैसे प्रकरणों को अंजाम दिया है तो इनकी जवाब देहि तय कर इनके विरूद्ध हत्या और हत्या की साजिश ,देशद्रोह,की कोटि में आता है,क्यु कि आपने देश की संरक्षित जाती के ,जो संविधान के तहत विशेष आरक्षित वर्ग के जाती में आते हुए भी, बिना किसी वैध अनुमति के नसबंदी करवाई,इसमें प्रत्येक सम्बंधित की जिम्मेदारी तय कर उसे सजा दिलानी चाहिए ..याद रहे की राजनेता भी इस प्रकरण में सीधे तौर पर जिम्मेदार है यदि नसबंदी का रिकॉर्ड बना कर मंत्री इनाम लेने का हक रखते है तो नसबंदी प्रकरण में हुई त्रुटी के परिणाम से वे बच नहीं सकते…असल में इस अव्यवस्था को दूर करने का तरीका… सिर्फ जवाबदेही तय करने और कानून का दृढ़ता से पालन कराने मात्र ही है …..असल में हम जिन्हें गलतियाँ कहते है वे सारी मर्यादा यानि कानून के अतिक्रमण से उपजी विकृति है… यदि इन्हें गलतियाँ मानकर माफ़ किया जाने लगेगा तो ये गलतियाँ निरंतर होति रहेंगी…जिसका कोई अंत नहीं है….कानून के निर्माण की आवश्यकता… समाज को सुचारू रूप से चलाने और न्याय पूर्ण समाज की स्थापना होता है यानि कमजोर हो या ताक़तवर सभी समाज में सुरक्षित और आनदित रहे मगर आज भारत में कुछ लोग गलतियों की आड़ में अपराध कर रहे है जिसे समझना होगा ….क्यों की छोटी गलतियों के बीच में बड़ी गलतियॉ होती हैं, जो पूरे परिदृश्य को बदलने में सक्षम होती हैं, वर्तमान नसबंदी प्रकरण उनमे से एक है ,यानि बहुत सारी ग़लतियो के बीच ,एक बड़ी गलती, मतलब साफ है की इस बड़ी गलती के बीच में ग़लतियो का समूह होगा. असल में यह सब कुछ घोर प्रशासनिक अव्यवस्था का परिणाम है और यह अव्यवस्था एक या दो दिनों में नहीं आई ,असल में यह निरंतर व्यवस्था का हिस्सा हो गयी है, नई सडको का हॉल देखे या शहर में कूड़ेऔर गंदगी का मंजर किसी भी बात के लिए कोई जिम्मेदार नज़र नही आता, असल में सभी जिम्मेदार होते है और व्यवस्था ऐसी कायम करते है की ….अव्यवस्था के लिए कोई भी दण्डित न हो …।याद रहे की मर्यादा का पालन नैसर्गिक रूप से सब को करना होता है और खासकर उन्हें जिनके ऊपर मर्यादा के पालन कराने की जिम्मेदारी हो ….यदि वे ऐसा न करे तो समय यानि काल सबसे बड़ा दंड उस जिम्मेदार को देता है ….बीते चुनाव में कांग्रेस का सफाया हो या राज्यों के चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों का राजनैतिक सिकुडऩ हों, ये सभी इसी नियम के आधार पर हुआ है। जब भी किसी जिम्मेदार व्यक्ति या… व्यवस्था में जिम्मेदार पद द्वारा उक्त मर्यादा रेखा की मर्यादाओं का कठोरता पूर्वक अनुशासन ना किया गया हो, तो समय यानि काल उस व्यक्ति या उस व्यवस्था के महत्वपूर्ण पद की महत्ता खत्म कर देता है। इसे इसकी छोटी सी झलक टूजी मामले की जॉच कर रहे सीबीआई निदेशक रंजित सिन्हा के संबंध में सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश में दिखाई पड़ती है। असल में यह किसी एक के द्वारा लिया गया निर्णय नहीं है वरन यह समय की परिणति है। बात किसी एक पार्टी या एक व्यक्ति से संबद्ध नहीं है अपितु यह सार्वभौमिक और सार्वकालिक नियम है।आपने महाभारत में भीष्म और द्रोंण महारथियों का हश्र देखा जो परम धार्मिक थे पर वे व्यवस्था के अत्यंत जिम्मेदार पदों पर थे … यानि किसी भी परिस्थिति में चाहे गलती किसी की भी तो सजा जिम्मेदार को ही मिलती है। यदि यह नियम स्थापित नियम है तो हर राजा को अपनी जिम्मेदारी का कठोरता पूर्वक निर्वाह करना होगा वरना सिर्फ राजा और राजतंत्र के तात्कालीन सत्ताशीन ही इसमें दंडित होंगे। यदि वे ऐसा ना चाहें तो उन्हें कठोरतापूर्वक लाभहानि का मोह त्याग कर व्यवस्था में मर्यादाओं का पुर्नस्थापन करना ही होगा। वरना परिवर्तन तय है। दूसरा बड़ा प्रश्र क्या दुर्घटनाओं के बाद व्यवस्था में कोई नियंत्रण आ सकता है्? जवाब है नहीं क्योंकि व्यवस्था को अनुशासित करने के लिए दो ही साधन हैं पहला प्रशासनिक और दूसरा न्यायिक। दोनों ही व्यवस्था में समय की पाबंदी है यानि समय बीते प्रशासन से अनुशासन संभव नहीं और समय बीते न्याय से अनुशासन की पुर्नप्रतिष्ठा संभव नहीं। समय से अनुबंधित प्रशासन जहॉ पर विफल हो जाता है वहीं पर संपूर्ण व्यवस्था न्यायालयीन अनुशासन में पहुॅच जाती है। दुर्भाग्य से यदि न्याय भी समय पर ना हो पायें तो बहुत संभव है कि व्यवस्था में भगदड कायम हो जाये यानि व्यवस्था को लकवा मार जायें। यदि हम व्यवस्था पर नजर डाले तो प्रशासनिक अनुशासन शून्य से भी कम तर है और ऐसी स्थिति में प्रदेश में कुछ और भयानक दुर्घटनाओं की उम्मीद की जा सकती है। समाधान उच्चस्थ शनि के वृश्चिक राशिगत होने तथा उच्स्थ बृहस्पति के बाद बहुत आवश्यक है कि प्रशासन में जवाबदेही और कठोर अनुशासन के ऊचें मापदंड तत्काल स्थापित किए जाएॅ और बड़ी निर्ममता के साथ प्रशासनिक दुरूस्तीकरण होना चाहिए। अन्यथा यहॉ भी न्यायिक अनुशासन प्रारंभ हो जायेगा। याद रहे कि समय की कचहरी में फिर किसी के साथ दया का बर्ताव नहीं होता। मैं लगातार अपने संपादकीय में इस बात पर टिप्पणी कर रहा हॅू और बड़ी जिम्मेदारी से कर रहा हॅू कि व्यवस्था में रीति और नीति का परिवर्तन आवश्यक है वरना ….. ???? वरना परिवर्तन तय है….मेरी गणना के हिसाब से प्रदेश में परिवर्तन अगली सुबह ही संभव !!!!!!!आप बताए????????????