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श्रृंगी महाकाव्य – १९ श्लोकों में वर्णित दिव्य जीवनकथा

१.श्रृंगी महाकाव्य – १९ श्लोकों में वर्णित दिव्य जीवनकथा मङ्गलाचरणम् श्रीशम्भवे त्रिपुरनाशनहेतवे, ज्योतिःस्वरूपसदनाय नमो नमः। येन श्रृङ्गिककण्ठदिशि क्रिपया, वेदाः स्वयं कथित एव सतां गतिः॥१॥ श्लोक २-६: बाल्यकाल और निर्धनता अमलेशग्रामणि शुद्धजातकः ब्राह्मणः स हरिपालनामकः तस्य सूनुरभवच्च सौम्यधीः सत्यव्रतः शिवभक्तिशालिनः॥२॥ भोजनार्थमपि दीनजीवनं, पुरोहित्यकृते तदेकतः। पुत्र एव तु विलोक्य दीनता, शम्भुभक्तिरतिमात्रगामिनी॥३॥ नित्यशम्भुनिकटे सपूजनं, सन्ध्यया सह जपश्च बालतः। द्वारमध्ये शयनं च तन्द्रया, स्वप्नमध्यमहिशम्भुशासनम्॥४॥ श्रृङ्गिकं शिवकरे कृताङ्गुली, दत्तमूर्धनि नवेन्दुशेखरः। श्रवणान्तिकपथे च ध्वन्यते, वेदवाणी सुधया समार्चिता॥५॥ प्रातरेव स विसृष्टबोधनः, वाक्पटुत्वमथ दर्शितं बहु। ब्रह्मसूत्रकथा पितुर्गृहे, वर्धते स तु महान् विचक्षणः॥६॥   श्लोक ७-१२: न्याय और विद्या...
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श्री महाकाल अमलेश्वर प्राकट्य कथा

श्री महाकाल अमलेश्वर प्राकट्य कथा    प्रस्तावना छत्तीसगढ़ की भूमि — जहाँ खारून की धाराएँ शिवमंत्रों सी बहती हैं, वहाँ  अमलेश्वर के तट पर  महाकाल हर 131 वर्षों में प्रकट होते हैं। उनका लिंग न केवल पृथ्वी पर प्रतिष्ठित है, बल्कि वह आग्नेय ज्योति का स्वयंभू स्वरूप है — जिसे किसी ने स्थापित नहीं किया, जिसे किसी ने गढ़ा नहीं — वह *स्वयं अग्नि में प्रकट हुए शिव हैं। १. अघोर ऋषि और प्राचीन भविष्यवाणी बहुत पुरानी बात है — जब न खारून का पुल था, न रायपुर नगर, न...
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2135 केवल एक तिथि नहीं — एक चेतावनी है, श्री महाकाल अमलेश्वर फिर होंगे भूमिशायी

2135 में हो सकता है कि: विश्व एक बार फिर आध्यात्मिक भूलभुलैया में फँसा होगा भारत के प्राचीन तीर्थों को भुलाया जा रहा होगा और तब खारून तट पर मौन वटवृक्षों के बीच, महाकाल पुनः अंतर्धान हो जाएंगे यह असंवत्सरकाल कहलाएगा — जब साधकों को केवल भीतर जाकर शिव को खोजना पड़ेगा, बाहर नहीं।  क्या 2135 में जागरण भी होगा? हाँ – यदि किसी सत्यव्रती साधक, योगिनी कन्या, निष्कलंक बालक, या किसी तपस्वी कुल के वंशज का जन्म उस युग में हो, जो सच्चे भाव से श्री महाकाल का आह्वान...
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हर 131 वर्षों में जब धरती के पाताल में छिपे पाप प्रबल होंगे, तब मैं भूमिशयन कर कुछ काल तक लुप्त रहूंगा

श्री महाकाल अमलेश्वर के भूमिशयन का गूढ़ रहस्य (विशेषतः 2004 की श्रावण प्रतिपदा पर जागृति की ऐतिहासिक घटना के संदर्भ में)  प्राकट्य की महागाथा: पुराकाल में खारून तट पर तप कर रहे एक महान अघोर ऋषि — सप्तऋषियों के परंपरा-वंशज — ने इस क्षेत्र को महाकाल की स्थली घोषित किया था। कहा जाता है कि महाकाल स्वयं उनके आह्वान पर तीव्र अग्निकुण्ड से प्रकट हुए थे। यह प्रकट्य अद्भुत था — ना शिवलिंग भूमिपृष्ठ पर था, ना कोई प्रतिमा — बल्कि अग्नि में स्वयं प्रकट हुए ज्वालामय महाकाल। तब स्वयं...
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सम्राट लक्ष्मिकार्ण का जीवन महाकालधाम अमलेश्वर से अभिन्न था

  वीर लोकमणि: कलचुरी सम्राट लक्ष्मिकार्ण की कथा संवत् 1098 (ई. सन् 1041) — मध्य भारत की कलचुरी वंशीय धरा पर एक नूतन नक्षत्र उदित हुआ, जिसका नाम था लक्ष्मिकार्ण। महाकाल की नगरी उज्जैन से लेकर गोदावरी तट तक फैले उनके साम्राज्य में वीरता, संस्कृति और धर्म की ज्योति उज्ज्वल हो उठी। बाल्य से पराक्रम तक लखनऊपुरी (आज का खड़गपुर, छत्तीसगढ़) में जन्मे लक्ष्मिकार्ण बचपन से ही मेष राशि के गुणों से युक्त थे—दृढ़निश्चयी, साहसी और न्यायप्रिय। केवल 15 वर्ष की अवस्था में माता-पिता का सान्निध्य खोकर सिंहासन संभाला। प्रथम...
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पितृमोक्ष महायात्रा: श्री महाकाल धाम अमलेश्वर

पितृमोक्ष महायात्रा: श्री महाकाल धाम अमलेश्वर संवत् 1278 — जब वंश धमनियों में थम रहा था* अमलेश्वर का क्षेत्र कलकत्ते नगर के समीप स्वतंत्र राज्य हुआ करता था। वहाँ के राजवंश की मध्यमा पीढ़ी में अचानक संतानहीनता ने घर-घर को शोकविहीन कर दिया। पीढ़ियों से चलती परम्परा अचानक टूटने लगी—राजा, राजकुमार और राज्याभिषेक की आशाएँ सब मलिन हो चलीं। श्राद्धहीनि पूर्णिमा और अपूर्ण चंद्र हर पूर्णिमा को मंदिर के प्रधान पुरोहित श्लोकमालाएँ जपता, पर पिण्डदान के बिना श्राद्ध अपूर्ण रह जाता। अमावस्या पर चंद्रमा छिपने लगता, और महाकाल मंदिर के...
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पितृदोष और उसकी शांति का विधान का शास्त्र प्रमाण

  1. पितृदोष और उसकी शांति का विधान गरुड़ पुराण (पूर्व खंड, अध्याय 40-42): पितृदोष का कारण, संकेत, और उसके निवारण के लिए श्राद्ध, नारायण बली, पिंडदान आदि विधियों का वर्णन है। इसमें वर्णन है कि पितरों के रुष्ट होने से संतानहीनता, गर्भपात, वंश रुकावट जैसे कष्ट होते हैं। 2. सर्पशाप का प्रभाव और शमन महाभारत (आदि पर्व, सर्पसत्र प्रसंग) राजा जनमेजय द्वारा तक्षक नाग को नष्ट करने हेतु किया गया सर्पसत्र यज्ञ, जो उनके पिता परीक्षित की मृत्यु के प्रतिशोध में था। इससे संकेत मिलता है कि सर्प द्वारा...
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“श्री महाकाल धाम: जहाँ खारुन विभाजन नहीं, जीवन का प्रवाह है”

  “श्री महाकाल धाम: जहाँ खारुन विभाजन नहीं, जीवन का प्रवाह है” 📜 इतिहास में दर्ज़ एक कथा (संवत् 1124 - वर्तमान) आज से लगभग हज़ार वर्ष पूर्व, जब छत्तीसगढ़ "दक्षिण कोसल" कहलाता था और रतनपुर की गद्दी पर कलचुरी वंश के प्रतापी राजा भोजदेव का शासन था, तब उनके प्रधान पुजारी और तांत्रिक विद्वान ऋषि वेदारण्य ने एक भविष्यवाणी की थी: > "जत्र स्थिता खारुणा, तत्र स्थिरं प्राणशक्तिः। यत्र तिष्ठति महाकालः, तत्र न भूखण्डभेदः।"   (जहाँ खारुन बहती है, वहाँ प्राणशक्ति स्थिर रहती है। जहाँ महाकाल विराजते हैं, वहाँ...
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