हम बहुत सी परम्पराओं, अंधविश्वासों को बिना कुछ विचार किये ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेते हैं. यह भी नहीं देखते कि आज के परिपेक्ष्य में इसकी कोई प्रासंगिकता है भी या नहीं इसके पीछे कोई तर्क संगत आधार है कि नहीं. कहीं अंधविश्वास का तो हम अनुपालन नहीं कर रहे हैं. हमारी बहुत सी मान्यताएं विज्ञान/आधुनिक ज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं.यह हमारी बेडय़िाँ बन जाती हैं. समाज के विकास और प्रगति के लिए इन बेडिय़ों को तोड़ देना ही बेहतर होगा. एक गतिशील समाज को अपनी मान्यताओं / परम्पराओं की सार्थकता पर निरंतर विचार करते रहना चाहिए. जो मान्यताएं समय के अनुरूप हों, समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती हों, उन्हें ही स्वीकृति मिलनी चाहिए आधारहीन परम्पराएं किस प्रकार अंधविश्वास का रूप ले लेती हैं।
रायसेन मुख्यालय के समीपस्थ ग्राम बनगंवा में कई पीढिय़ों से एक अनूठी परंपरा चली आ रही है। जिसमें 25 फीट ऊपर खंबे पर बकरे को बांधकर 144 बार गोल घुमाया जाता है। इसके बाद ग्रामीण ही दोनों ओर निकली रस्सी पर दाएं-बाएं झूला झूलते हैं। फिर इन व्यक्तियों पर कोड़ा बरसाया जाता है। यह अनूठी परंपरा वर्षों से चली आ रही है।
धुलेंड़ी (होली) की शाम पांच बजे से बाबा वीर बम्मोल की विशेष पूजा-अर्चना प्रत्येक वर्ष धुलेंड़ी के दिन ही की जाती है। इस पूजा-अर्चना में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण तो पहुंचते ही है और साथ-साथ अन्य जगहों से भी सैकड़ों लोग इस अनूठी परंपरा को देखने के लिए आते है। इसी दिन बच्चों का मुंडन भी किया जाता है। इस विशेष पूजा में महिलाएं भी सैकड़ों की संख्या में उपस्थित होती है। गांव के सरपंच मुन्नुलाल गौर ने बताया कि गांव में यह परंपरा हमारे पूर्वजों से चली आ रही है।
इसी परंपरा के अनुसार प्रति वर्ष पड़वा पर ही यहां पर मेला भरता है और बाबा वीर बम्मोल की पूजा अर्चना की जाती है। वहीं गांव के निवासी शंकर ने बताया कि यह परंपरा हजारों साल से चल रही है। उसने बताया कि यह देवता है जिनकी वे पूजा-अर्चना करते हैं।