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भौतिक जगत की तरह मानव ने अध्यात्म और दर्शन में भी कई महत्वपूर्ण अनुसंधान किये हैं। अध्यात्म और दर्शन से ही जुड़ा हुआ विषय है ज्योतिष। मानव के अनुसंधानात्मक प्रवृति से ज्योतिष भी अछूता नहीं रहा है। ज्योतिषशास्त्रियों ने अपने ज्ञान और अनुसंधान से इसमें कई नई चीजों को शामिल किया है।
भारतीय ज्योतिष परम्परा में वैदिक ज्योतिष को सबसे प्रमाणिक माना जाता है परंतु, वैदिक ज्योतिष को गहराई से समझ पाना कठिन है अत: ज्योतिष को सरल बनाने हेतु कुछ ज्योतिषशास्त्रियों ने ज्योतिष की अलग विधा को भी जन्म देने का प्रयास किया। ज्योतिष की ऐसी विधाओं मे से एक है कृष्णमूर्ति पद्धति। इस पद्धति की खोज 20वीं सदी में दक्षिण भारत में हुई, इस पद्धति के जन्मदाता महान ज्योतिषशास्त्री कृष्णमूर्ति महोदय थे।
कृष्णमूर्ति पद्धति का प्रयोग प्रश्न कुण्डली (Methods of Krishnamurthy on prashna kundli) के अन्तर्गत किया जाता है। इस पद्धति से फलादेश (Prediction) करते समय लग्न का निर्धारण अंकों से किया जाता है । कृष्णमूर्ति महोदय की इस पद्धति में 1से लेकर 249 अंकों को शामिल किया गया है जिनसे लग्न तैयार किया जाता है। कृष्णमूर्ति महोदय के इस ज्योतिष पद्धति में सभी बारह राशियों (Twelve signs) को पहले उप विभाग फिर उसके भी उप अर्थात उप-उप (Sub-Sub) भागों में विभाजित किया गया है। इन उपविभागों को 1 से लेकर 249 तक के अंक प्रदान किये गये हैं।
इस पद्धति के अन्तर्गत जब आप ज्योतिषी महोदय के पास अपना प्रश्न लेकर उपस्थित होते हैं तब वे आपसे 1 से 249 तक के अंकों में से अपनी पसंद के अनुसार कोई अंक चुनने के लिए कहते हैं। आप जो अंक चुनते हैं या बताते हैं उस अंक से आपकी कुण्डली में लग्न का निर्धारित किया जाता (Numbers detremine the ascendant) है। अन्य ग्रहों को इस पद्धति में भी उसी प्रकार स्थापित किया जाता है जैसे कि वैदिक ज्योतिष में किया जाता है।
वैदिक जन्म कुण्डली से यहां हम कृष्णमूर्ति पद्धति की विवेचना करें तो पाते हैं कि कृष्णमूर्ति पद्धति में जहां लग्न निर्धारण का आधार अंक हैं वहीं वैदिक जन्म कुण्डली में जन्म समय को आधार माना जाता है, जन्म समय से ही ज्ञात किया जाता है कि आपके जन्म के समय आकाश में कौन से लग्न उदित था और वह कितने अंशों पर था।
वैदिक ज्योतिष एवं कृष्णमूर्ति पद्धति में एक अंतर यह भी हैं कि कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्रों को प्रमुखता (Krishnamurthy’s importance on nakshatra) दी गई है। कृष्णमूर्ति पद्धति में नक्षत्रों को आधार मानकर फलादेश (Prediction on the basis of nakshatra) किया जाता है, जबकि वैदिक ज्योतिष में इन 27 नक्षत्रों (27 nakshatras in vedic astrology) को गौण स्थान दिया गया है।
वैदिक ज्योतिष में जिन नवग्रहों को प्रमुखता (Importance on nine planets in vedic astrology) प्राप्त है उन नवग्रहों को कृष्णमूर्ति महोदय गौण स्थान देते हैं। कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार एक राशि को उप-उप स्तर तक विभाजित करके जो नक्षत्र भागेश (Lord of destiny) आता है उसी से प्रश्न कुण्डली का फलादेश (prediction of prashna kundli) आता है।
ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है कि कृष्णमूर्ति महोदय ने ये विभाजन विंशोत्तरी दशा पद्धति के (Vinshottari dasha method) आधार पर किया है। विंशोत्तरी दशा (Vinshottari dasha) में जिस तरह महादशा-अन्तर्दशा एवं प्रत्यन्तरदशा (Mahadasha-antardasha and pratyantar dasha) आता है उसी प्रकार कृष्णमूर्ति ने राशिपति-नक्षत्रपति (Lord of sign and Lord of nakshatra) एवं नक्षत्र भागेश (Lord of destiny) के क्रम को लिया है।
ज्योतिष मर्मज्ञ बताते हैं कि जो लोग नई नई खोज में लगे रहते हैं तथा जिनका नए नए तथ्यों पर अनुसंधान करने का स्वभाव है उनके लिए कृष्णमूर्ति पद्धति पर कार्य करना सन्तोषप्रद रहता है। इससे ज्योतिष की प्रगति में सहायता मिलती है।