प्राचीन काल से आज आधुनिक जीवनषैली की आवष्यकता को देखते हुए कर्ज लेना मजबूरी है किंतु कई बार यहीं लिया गया कर्ज तनाव तथा रोग का कारण होता है तो वहीं पर सामाजिक प्रतिष्ठा तथा विष्वसनीयता पर भी प्रष्नचिन्ह लग जाता है। इस प्रकार यदि कोई व्यक्ति प्रायः कर्ज लेकर उससे मुक्ति हेतु परेषान हो तथा कर्ज चुकने का ही नाम ना लें, कर्ज से अपनी प्रतिष्ठा, सुखषांति समाप्त होने लगे तो कर्ज मुक्ति हेतु ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए। जिसमें अपनी ग्रह स्थिति तथा दषाओं के अनुकूल होने की जानकारी प्राप्त कर शुभ मूहुर्त में किसी भी रविपुष्य या गुरूपुष्य के दिन ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण मंगलयंत्र की प्राणप्रतिष्ठा करके यंत्र पूजा स्थान पर पीला वस्त्र बिछाकर स्थापित कर दें। नित्य पूजन करें तथा मंत्र -‘उॅ ऐं हीं क्लीं मम वांछित देहि मे स्वाहा’ का जाप कर हवन करना चाहिए। पूजन में एक सफेद फूल वाला आक का पौधा लें, उसे जिस शुभ मूर्हूत में पूजन करना है, उसके एक दिन पूर्व जैसे रविपुष्य नक्षत्र को करना हो तो शनिवार को अर्क पौधे को जल से धो कर धूप-दीप से पूजन कर ‘मम कार्य सिद्धि कुरू कुरू स्वाहा’ जाप करते हुए पौधे को नियंत्रण दें। रविवार को सूर्य उदय से पहले स्नान करके पौधे की पूजन अर्जन आरती आदि कर मंत्र ‘उॅ आं हीं क्रौं श्रीं श्रियै नमः ममालक्ष्मी नाषय नाषय मामृणोत्ती्रर्णे कुरू कुरू संपदं वर्धय वर्धय स्वाहा का जाप करें तथा उसके उपरांत दान करने के बाद मुक्ति की कामना से कर्ज की किस्त देना प्रारंभ करें तो इससे आप को कर्ज की समस्या से निजात मिलकर समृद्धि बढ़ेगी।
भौम प्रदोष व्रत कथा
एक नगर में एक वृद्धा निवास करती थी । उसके मंगलिया नामक एक पुत्र था । वृद्धा की हनुमान जी पर गहरी आस्था थी । वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमान जी की आराधना करती थी । उस दिन वह न तो घर लीपती थी और न ही मिट्टी खोदती थी । वृद्धा को व्रत करते हुए अनेक दिन बीत गए ।
एक बार हनुमान जी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची । हनुमान जी साधु का वेश धारण कर वहां गए और पुकारने लगे -“है कोई हनुमान भक्त जो हमारी इच्छा पूर्ण करे?’ पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- ‘आज्ञा महाराज?’ साधु वेशधारी हनुमान बोले- ‘मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा । तू थोड़ी जमीन लीप दे।’ वृद्धा दुविधा में पड़ गई । अंततः हाथ जोड़ बोली- “महाराज! लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी ।” साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- ‘तू अपने बेटे को बुला । मै उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाउंगा ।’ वृद्धा के पैरों तले धरती खिसक गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी । उसने मंगलिया को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया । मगर साधु रूपी हनुमान जी ऐसे ही मानने वाले न थे। उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई । आग जलाकर, दुखी मन से वृद्धा अपने घर के अन्दर चली गई ।
इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- ‘मंगलिया को पुकारो, ताकि वह भी आकर भोग लगा ले।’ इस पर वृद्धा बहते आंसुओं को पौंछकर बोली -‘उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ।’ लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने मंगलिया को आवाज लगाई । पुकारने की देर थी कि मंगलिया दौड़ा-दौड़ा आ पहुंचा । मंगलिया को जीवित देख वृद्धा को सुखद आश्चर्य हुआ । वह साधु के चरणों मे गिर पड़ी । साधु अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए । हनुमान जी को अपने घर में देख वृद्धा का जीवन सफल हो गया । सूत जी बोले- “मंगल प्रदोष व्रत से शंकर (हनुमान भी रुद्र हैं) और पार्वती जी इसी तरह भक्तों को साक्षात् दर्शन दे कृतार्थ करते हैं ।”
भौम प्रदोष व्रत महत्व |
शास्त्रों के अनुसार भौम प्रदोष व्रत को रखने से गोदान देने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है. भौम प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि जो व्यक्ति भौम प्रदोष का व्रत रख, शिव आराधना करता है उसे शिव कृपा प्राप्त होती है. इस व्रत को रखने से मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है. मंगलवार के दिन भौम प्रदोष व्रत होता है. इस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है. साधक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है.
प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है. सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिये व संतान प्राप्ति की कामना हेतु भी यह व्रत शुभ फलदायक होता है. उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृद्धि होती है.
भौम प्रदोष पूजन |
प्रदोष व्रत करने के लिये उपवसक को इस दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए. नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें. इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है. पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किये जाते हैं.
ईशान कोण की दिशा में एकान्त स्थल को पूजा करने के लिये प्रयोग करना विशेष शुभ रहता है. पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, मंडप तैयार किया जाता है. इस मंडप में पद्म पुष्प की आकृति पांच रंगों का उपयोग करते हुए बनाई जाती है.
प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिये कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार पूजन क्रिया की तैयारियां कर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए. पूजन में भगवान शिव के मंत्र का जाप करते हुए शिव को जल का अर्ध्य देना चाहिए. हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है. और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है.
भगवान शिव की पूजा एवं उपवास- व्रत के विशेष काल और दिन रुप में जाना जाने वाला यह प्रदोष काल बहुत ही उत्तम समय होता है. इस समय कि गई भगवान शिव की पूजा से अमोघ फल की प्राप्ति होती है. प्रदोष काल में की गई पूजा एवं व्रत सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला माना गया है.