क्यों करते हैं उत्पन्ना एकादशी व्रत
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
सत्ययुग में एक बार मुर नामक दैत्य ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र को अपदस्थ कर दिया। देवता भगवान शंकर की शरण में पहुॅचे। भगवान शंकर ने देवताओं को विष्णु जी के पास भेज दिया। विष्णु जी ने दानवों को तो परास्त कर दिया परंतु मूर भाग गया। विष्णु ने देखा कि मूर दैत्य डरकर भाग गया है तो वे बद्रिकाश्रम की गुफा में आराम करने लगे। मूर ने ऐसा जानकर विष्णु को मारना चाहा। विष्णुजी आराम की मुद्रा में थे तत्काल उनके शरीर से एक कन्या का अवतरण हुआ और उसने मूर को मार डाला। विष्णुजी ने कन्या से परिचय जानना चाहा तब कन्या ने कहा कि मैं आपके शरीर से उत्पन्न शक्ति हूॅ। विष्णुजी ने प्रसन्न होकर कन्या का नाम एकादषी रखा था आर्षीवाद दिया कि तुम संसार में मायाजाल में उलझे तथा मोह के कारण मुझसे विमुख प्राणियों को मुझ तक लाने में सक्षम होंगी। तुम्हारी आराधना करने वाले प्राणी आजीवन सुखी रहेंगे। यही कन्या के नाम पर एकादषी का व्रत किया जाता है। सभी एकादषियों में उत्पन्ना एकादषी का महत्व अपूर्व है क्योंकि विष्णुजी के शरीर से उत्पन्न यही एकादषी मानी जाती है। इसलिए इसका नाम भी उत्पन्ना एकादषी कहा जाता है।
कब करें एकादशी उपवास की शुरुआत
उत्पन्ना एकादशी व्रत व पूजा विधि
एकादशी व्रत विधि एवम महत्व
- एकादशी का व्रत दशमी की रात्रि से प्रारंभ हो जाता हैं, जो द्वादशी के सूर्योदय तक चलता हैं. कुछ लोग दशमी के दिन ये व्रत प्राम्भ कर देते है, और दशमी के दिन सात्विक भोजन ग्रहण कर व्रत रहते है.
- इस दिन चावल, दाल किसी भी तरह का अन्न ग्रहण नहीं किया जाता .
- कथा सुनने एवम पढने का महत्व अधिक होता हैं .
- इस व्रत से अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य मिलता हैं .
- प्रातः जल्दी स्नान करके ब्रह्म मुहूर्त में भगवान कृष्ण का पूजन किया जाता हैं.
- इसके बाद विष्णु जी एवं एकादशी माता की आराधना करते है. उन्हें स्पेशल भोग चढ़ाया जाता है.
- दीप दान एवम अन्न दान का महत्व होता हैं. ब्राह्मणों, गरीबों और जरुरतमंद को दान देना अच्छा मानते है. लोग अपनी श्रद्धा अनुसार भोजन, पैसे, कपड़े या अन्य जरूरत का समान दान में देते है.
- इस दिन कई लोग निर्जला उपवास करते हैं .
- रात्रि में भजन गायन के साथ रतजगा किया जाता हैं .
- इस व्रत का फल कई यज्ञों के फल, एवम कई ब्राह्मण भोज के फल से भी अधिक माना जाता हैं .