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नवरात्रि पर कलश स्थापना और पूजा के शुभ मुहूर्त

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शारदीय नवरात्रि परिर्वतन वाली नवरात्रि –

26 सितम्बर (सोमवार) से शारदीय नवरात्रि शुरू हो रहे हैं। इस बार नौ दिन के नवरात्रि में मां भगवती हाथी पर सवार होकर पधारेंगी। देवी के आगमन का वाहन तय होता है। भागवत पुराण अनुसार इस श्लोक से जानें कि माता कि सवारी कैसे निश्चित होती है।शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।

गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥

अर्थात : यदि नवरात्रि सोमवार या रविवार से प्रारंभ हो तो माता हाथी पर सवार होकर आती
हैं। यदि वह दिन शनिवार या मंगलवार हो तो माता की सवारी घोड़ा होता है और शुक्रवार या
गुरुवार को नवरात्रि शुरु होती है तो मातारानी डोली में विराजमान होकर आती हैं। यदि
बुधवार दिन हो तो माता का आगमन नौका में होता है।

हाथी की सवारी का फल : 

कहते हैं कि जब माता हाथी पर सवार होकर आती है तो वर्षा अधिक होने का संकेत है। जिससे चारों ओर हरियाली छा जाएगी। फसलें भी अच्‍छी होंगी। देश में अन्न के भंडार भरेंगे, संपन्नता,धन और धान्य में वृद्धि होगी। माता का आगमन हाथी और नौका पर होता तो वह साधक के लिए कल्याणकारी होता है।26 सितम्बर को प्रतिपदा पर घट स्थापना के साथ नवरात्र प्रारंभ होगा जो 04 अक्टूबर को नवमी तिथि के हवन और कन्या पूजन के साथ संपन्न

होगा। इन नौ दिनों में अनेक शुभ योग-संयोग बन रहे हैं जो देवी की कृपा पाने के सर्वश्रेष्ठ दिन रहेंगे।
प्रतिपदा तिथि 26 सितम्बर को रात्रि 3.23 बजे से प्रारंभ होकर 27 सितम्बर को रात्रि 03.08 बजे तक रहेगी। इस दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र प्रात:काल 05.55 बजे तक रहेगा। इसी दिन घट स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र का प्रारंभ होगा।

नवरात्रि पर कलश स्थापना और पूजा के शुभ मुहूर्त

घटस्थापना तिथि:  26 सितंबर 2022, सोमवार
घटस्थापना मुहूर्त: 26 सितंबर, 2022 प्रातः 05:53 मिनट से प्रातः 07: 27 मिनट तक
घटस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
● सप्त धान्य (7 तरह के अनाज)
● मिट्टी का एक बर्तन जिसका मुँह चौड़ा हो
● पवित्र स्थान से लायी गयी मिट्टी
● कलश, गंगाजल (उपलब्ध न हो तो सादा जल)
● पत्ते (आम या अशोक के)
● सुपारी
● जटा वाला नारियल
● अक्षत (साबुत चावल)
● लाल वस्त्र
● पुष्प (फ़ूल)

नवरात्रि घट स्थापना –

घटस्थापना की विधि में देवी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। घटस्थापना की विधि के
साथ कुछ विशेष उपचार भी किए जाते हैं। पूजाविधि के आरंभ में आचमन, प्राणायाम, देशकाल
कथन करते हैं। तदुपरांत व्रत का संकल्प करते हैं। संकल्प के उपरांत श्री महागणपति पू्जन करते
हैं। इस पूजन में महागणपति के प्रतीक स्वरूप नारियल रखते हैं। व्रत विधान में कोई बाधा न
आए एवं पूजा स्थल पर सात्विक भाव आकृष्ट हो सकें इसलिए यह पूजन किया जाता है। श्री
महागणपति पूजन के उपरांत आसन शुद्धि करते समय भूमि पर जल से त्रिकोण बनाते हैं।
तदउपरांत उसपर पीढा रखते हैं। आसन शुद्धि के उपरांत शरीर शुद्धि के लिए षडन्यास किया
जाता है। तत्पश्चात पूजा सामग्री की शुद्धि करते हैं।

घट स्थापना विधि

पूजा स्थल पर खेत की मिट्टी लाकर चैकोर स्थान बनाते हैं। उसे वेदी कहते हैं।

वेदी पर गेहूं डालकर उसपर कलश रखते हैं।
कलश में पवित्र नदियों का आवाहन कर जल भरते हैं।
चंदन, दूर्वा, अक्षत, सुपारी एवं स्वर्णमुद्रा अथवा सिक्के इत्यादि वस्तुएं कलश में डालते हैं।
इनके साथ ही हीरा, नीलमणि, पन्ना, माणिक एवं मोती ये पंचरत्न भी कलश में रखते हैं।
पल, बरगद, आम, जामुन तथा औदुंबर ऐसे पांच पवित्र वृक्षों के पत्ते भी कलश में रखते हैं।
कलश पर पूर्ण पात्र अर्थात चावल से भरा ताम्रपात्र रखते हैं।
वरुण पूजन के उपरांत वेदी पर कलश के चारों ओर मिट्टी फैलाते हैं।
इसके उपरांत मिट्टी पर विविध प्रकार के अनाज डालते हैं।
उसपर पर्जन्य के प्रतीक स्वरूप जल का छिडकाव करते हैं। अनाज से प्रार्थना करते हैं।
तदुपरांत देवी आवाहन के लिए कुंभ अर्थात कलश से प्रार्थना करते हैं, देव-दानवों द्वारा किए
समुद्र मंथन से उत्पन्न हे कुंभ, आपके जल में स्वयं श्रीविष्णु, शंकर, सर्व देवता, पितरों सहित
विश्वेदेव सर्व वास करते हैं। श्री देवी मां के आवाहन के लिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूं।
घट स्थापना करने के पश्चात नवरात्रि व्रत का और एक महत्त्वपूर्ण अंग है अखंडदीप स्थापना।
अखंडदीप स्थापना की विधि
जिस स्थान पर दीप की स्थापना करनी है, उस भूमि पर वास्तु पुरुष का आवाहन करते हैं।
जिस स्थान पर दीप की स्थापना करनी है, उस भूमि पर जल का त्रिकोण बनाते हैं। उस त्रिकोण
पर चंदन, फूल एवं अक्षत अर्पण करते हैं।
दीप के लिए आधार यंत्र बनाते हैं।
तदुपरांत उसपर दीप की स्थापना करते हैं।
दीप प्रज्वलित करते हैं।
इस प्रज्वलित दीप का पंचोपचार पूजन करते हैं।
नवरात्रि व्रत निर्विघ्न रूप से संपन्न होने के लिए दीप से प्रार्थना करते हैं।
कुल की परंपरा के अनुसार इस दीप में घी अथवा तेल का उपयोग करते हैं। कुछ परिवारों में घी
के एवं तेल के दोनों ही प्रकार के दीप जलाए रखने की परंपरा है।

देवताओं की स्थापना विधि

कलश से प्रार्थना करने के उपरांत पूर्णपात्र में सर्व देवताओं का आवाहन कर उनका पूजन करते
हैं। तदुपरांत आवाहन में कोई त्रुटि रह गई हो, तो क्षमा मांगते हैं। क्षमायाचना करने से पूजक
का अहं घटता है तथा देवताओं की कृपा भी अधिक होती है।

श्री दुर्गादेवी आवाहन विधि

कलश पर रखे पूर्णपात्र पर पीला वस्त्र बिछाते हैं।
उस पर कुमकुम से नवार्णव यंत्र की आकृति बनाते हैं।
मूर्ति, यंत्र और मंत्र ये किसी भी देवता के तीन स्वरूप होते हैं। ये अनुक्रमानुसार अधिक सूक्ष्म
होते हैं। नवरात्रि में किए जाने वाले देवीपूजन की यही विशेषता है कि, इसमें मूर्ति, यंत्र और

मंत्र इन तीनों का उपयोग किया जाता है।

सर्वप्रथम पूर्णपात्र में बनाए नवार्णव यंत्र की आकृति के मध्य में देवी की मूर्ति रखते हैं।
मूर्ति की दाईं ओर श्री महाकाली के तथा बाईं ओर श्री महासरस्वती के प्रतीक स्वरूप एक-एक
सुपारी रखते हैं।
मूर्ति के चारों ओर देवी के नौ रूपों के प्रतीक स्वरूप नौ सुपारियां रखते हैं।
अब देवी की मूर्ति में श्री महालक्ष्मी का आवाहन करने के लिए मंत्रोच्चारण के साथ अक्षत अर्पित
करते हैं।
मूर्ति की दाईं और बाईं ओर रखी सुपारियों पर अक्षत अर्पण कर क्रम के अनुसार श्री महाकाली
और श्री महासरस्वती का आवाहन करते हैं।
मूर्ति की दाईं ओर रखी सुपारी पर अक्षत अर्पण कर श्री महाकाली और बाईं ओर रखी सुपारी
पर श्री महासरस्वती का आवाहन करते हैं।
तत्पश्चात नौ सुपारियों पर अक्षत अर्पण कर नवदुर्गा के नौ रूपों का आवाहन करते हैं तथा
इनका वंदन करते हैं।

श्री दुर्गादेवी का षोडशोपचार पूजन –

अब देवी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। इसमें सर्वप्रथम देवी को अध्र्य, पाद्य, आचमन आदि उपचार अर्पण करते हैं। इसके उपरांत देवी को पंचामृत स्नान कराते हैं। तदुपरांत शुद्ध जल, चंदन मिश्रित जल, सुगंधित द्रव्य मिश्रित जल से स्नान कराते हैं और अंत में श्री देवीमां को शुद्ध जल से महाभिषेक कराते हैं। उसके उपरांत देवी को कपास के वस्त्र, चंदन, सुहाग द्रव्य अर्थात हलदी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध अर्पण करते हैं। काजल लगाते हैं। मंगलसूत्र, हरी चूडियां इत्यादि सुहाग के अलंकार, फूल, दूर्वा, बिल्वपत्र एवं फूलों की माला अर्पण करते हैं।

श्री दुर्गादेवी की अंगपूजा

श्री दुर्गादेवी के शरीर का प्रत्येक अंग शक्ति का स्रोत है, इसीलिए श्री दुर्गादेवी के प्रत्येक अंगपर अक्षत अर्पित कर अंगपूजा की जाती है।
श्री दुर्गादेवी की पूजा चरणों की ओर से आरंभ की जाती है। घुटने की अर्थात् श्री देवीमंगला की। कमर की अर्थात् श्री देवी भद्रकाली की, दाएं बाहू की अर्थात् श्री महागौरी की पूजा। बाएं बाहू की अर्थात् श्री वैष्णवी की पूजा। कंठ की अर्थात् श्री स्कंधमाता की, मुख की अर्थात् श्री

सिंहवाहिनी की पूजा।

दिशा, राशि, ऋतु जैसे आवरण यद्यपि शक्ति का पूर्ण अथवा सत्य स्वरूप नहीं हैं परंतु शक्ति के कार्य में मानवी जीवन से संबंधित इन सबका एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्ही आवरणों की पूजा की जाती है। और एक एक रूप की पूजा से एक एक कष्ट की निवृत्ति होती है।
देवी को महानैवेद्य निवेदित करते हैं।देवी की आरती करते हैं। प्रार्थना करते हैं।कलश पर प्रतिदिन एक अथवा कुल परंपरा के अनुसार प्रथम दिन एक, दूसरे दिन दो इस प्रकार माला बांधते हैं। माला इस प्रकार बांधें, कि वह कलश में पहुंच सके। नई माला चढाते समय पहले दिन की माला नहीं उतारी जाती।

ज्वारे

नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही देवी के समक्ष जौ बोने का विधान है। दुर्गा पूजा में जौ को बेहद शुभ माना गया है। जौ समृद्धि, शांति, उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जौ उगने की गुणवत्ता से भविष्य में होने वाली घटनाओं का
पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। माना जाता है कि अगर जौ तेज़ी से बढ़ते हैं तो घर में सुख-समृद्धि आती है वहीं अगर ये बढ़ते नहीं और मुरझाए हुए रहते हैं तो भविष्य में किसी तरह के अमंगल का संकेत देते हैं।

कलश

धर्म शास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश में सभी ग्रह, नक्षत्रों एवं तीर्थों का वास होता है इसलिए नवरात्रि पूजा में घट स्थापनाका सर्वाधिक महत्व है। कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, सभी नदियां, सागरों, सरोवरों एवं 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओंका पूजन हो जाता है।

बंदनवार
प्राचीन काल से ही पूजा-अनुष्ठान के दौरान मुख्य द्धार पर आम या अशोक के पत्तों की बंदनवार लगाईं जाती है। ऐसा करने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करतीं। मान्यता है कि देवी पूजा के प्रथम दिन देवी के साथ तामसिक शक्तियां भी होती हैं। देवी घर में प्रवेश करती हैं, पर बंदनवार लगी होने से तामसिक शक्तियां घर के बाहर ही रहती हैं।

दीपक

नवरात्रि के समय घर में शुद्ध देसी घी का अखंडदीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का
संचार होता है, नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट होती हैं एवं इससे आस-पास का वातावरण शुद्ध हो
जाता है। दीपक, साधना में सहायक तृतीय नेत्र और हृदय ज्योति का प्रतीक है। इससे हमें जीवन
के उर्ध्वगामी होने, ऊंचा उठने और अन्धकार को मिटा डालने की प्रेरणा मिलती है।

गुड़हल का पुष्प

पौराणिक मान्यता है कि गुड़हल का लाल पुष्प अर्पित करने से देवी प्रसन्न होकर भक्तों की हर
मनोकामना को पूर्ण करती हैं। सुर्ख लाल रंग का यह पुष्प अति कोमल होने के साथ ही असीम
शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है, इसलिए लाल गुड़हल देवी माँ को अत्यंत प्रिय है।

नारियल
नवरात्रि पूजा में कलश के ऊपर नारियल पर लाल कपडा और मोली लपेटकर रखने का विधान है। माना जाता है कि इससे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। नारियल के बाहरी आवरण को अहंकार का प्रतीक और आंतरिक भाग को पवित्रता और शांति का प्रतीक माना जाता है। माँ दुर्गा के समक्ष नारियल को तोड़ने का तात्पर्य अहंकार को तोडना है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है।

असल में नवरात्रि का पर्व तप, त्याग, अनुशासन और शक्ति की उपासना का पर्व है। नवरात्रि का
पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। नवरात्रि का पहला पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है। जबकि दूसरी बार नवरात्रि अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक मनाई जाती है।नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री- मां शैलपुत्री शैल-पुत्री मतलब पर्वत की पुत्री। पर्वत भू-तत्वात्मक है। अर्थात स्थूल से उत्पन्न होने वाली गति। स्थूल शरीर रूपा, शक्ति के साथ धैर्यवती तथा परम सहनशील हैं।

पवर्तराज की पुत्री के नाम से उनका नाम शैलपुत्री हुआ। नवरात्र के प्रथम दिवस पूजी जाने वाली माता की शक्तिया अनन्त हैं वृषभ स्थिता दाहिने हाथ में त्रिषूल और बायें हाथ में कमल पुष्प सुषोभित है, यहीं रूप नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा का है।
सबसे पहले नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें।

अब नारियल को कलश पर रखें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। ‘हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इस में पधारें।’अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को

इत्र समर्पित करें।

कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है। नवरात्री के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद माँ
भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें।

माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें ‘हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।’ उसके
बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल,मिठाई अर्पित करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए।

ऐसा करने से सभी पाप एवं श्राप से मुक्ति मिलती है।हिंदू मान्यता के अनुसार इन 9 दिनों में माता को प्रसन्न करके कई सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं। ऐसे में आप नवरात्रि में अपनी राशि के अनुसार कुछ आसान उपाय करके अपनी किस्मत चमका सकते हैं। आइए जानते हैं किस राशि के व्यक्ति को क्या उपाय करने से मिलेगा कौन सा फल।