शीतला अष्टमी
चैत्र कृष्ण अष्टमी को शीतला अष्टमी कहते हैं। इस तिथि पर स्त्रियाँ शीतला देवी की पूजा करती हैं। पूजा करने में बस इतना ध्यान रखना होता है कि पूजा के बाद नैवेद्य में सभी पदार्थ ठंडे होने चाहिएँ। इस दिन जिस भी पकवान का भोग लगाया जाता है, वह सप्तमी को बना होता है। पूजा के बाद पूरा परिवार इन्हीं पकवानों को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करता है।
इस दिन घर की स्त्री सिर्फ एक ही बार भोजन करती हैै। इसकी प्रचलित कथा इस प्रकार है- एक बार राज के बेटे को शीतला (चेचक) निकली। उसी नगर में एक गरीब ब्राम्हण के बेटे को भी शीतला निकली थी। ब्राम्हण ने अपने बेटे की नियमपूर्वक सेवा की। उसके यहाँ ना घर में सब्जी को छौंक लगाया गया, ना रसोई में कड़ाही चढ़ाई गई और ना ही उसने अपने बेटे को गरम खिलाया ।
इस कारण से उसका बेटा शीघ्र ठीक हो गया । राजा को यह बात चली, तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतनी देखभाल के बाद भी उसका बेटा ठीक क्यों नहीं हो रहा । उसने मन ही मन सोचा कि आखिर शीतला माता उसके बेटे को इतना कष्ट क्यों दे रही हैं।
उसी रात राजा को सपने में शीतला माता आईं और उन्होंने बताया कि वह राजकुमार को तेल मसाले युक्त भोजन ना दे। राजा ने माता की आज्ञा का पालन किया और धीरे धीरे वह ठीक हो गया । तब छोटी या बड़ी चेचक निकले, तो शीतला अष्टमी का व्रत किया जाता है और बच्चे को गरम या मसाले वाला खाना नहीं दिया ।