केरल का प्रसिद्ध मंदिर जहाँ, दूध चढ़ाने पर यहां होता है कुछ ऐसा जानकर हैरत में पड़ जाएंगे आप
यूं तो विश्वभर में बहुत से मंदिर व धार्मिक स्थल हैं परंतु जब बात भारत की आती है तो कहा जाता है ये देश अपनी प्राचीन सभ्यता व पौराणिक इतिहास से जाना जाता है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपनी प्राचनीता तथा भव्यता के साथ-साथ अपने साथ जुड़े एक ऐसे चमत्कार से जाना जाता है जिसे पहली बार में सुनने वाला हर व्यक्ति हैरत में आ जाएगा। जैसे कि आप सब जानते हैं कि भारत में जितने भी देवी-देवताओं के मंदिर हैं उनके साथ कोई न कोई तथ्य या मान्यता छिपी हुई है। इन्हीं में से एक है केरल का प्रसिद्ध मंदिर जो यहां के कीजापेरुमपल्लम गांव में स्थित हैं। बता दें हम बात कर रहे हैं इस मंदिर को नागनाथस्वामी मंदिर व केति स्थल के नाम से जाना जाता है। बताया जता है कि कावेरी नदी के तट पर बसा यह मंदिर नवग्रह के छाया ग्रह यानि केतु देव को समर्पित है परंतु मंदिर के मुख्य देव भगवान शिव हैं। यहां इन्हें नागनाथ कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रह माने गए हैं। इनमें राहु और केतु को छाया ग्रह का दर्जा प्राप्त है। कहा जाता है राहु जहां सिर है वहीं केतु केवल धड़। हिंदू धर्म में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार असल में राहु एक राक्षस है और जो बेहद बलशाली हैं। नौ ग्रहों में राहु को कूटनीति, राजनीति, सट्टा, भ्रम और सत्ता पद का भी ग्रह माना गया है वहीं केतु को मोक्षकारक और रहस्यमयी गुप्त विद्याओं का प्रदाय ग्रह माना गया है। कलियुग में दोनों का ही प्रभाव माना गया है। कुंडली में राहु और केतु की स्थिति के अनुसार कालसर्प दोष का भी निर्माण होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नौ ग्रह हर देवी देवता के अधीन भी माने गए हैं। राहु की शांति के लिए जहां शिव की आराधना का महत्व बताया गया है वहीं केतु के लिए गणेश जी की आराधना।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में शिव जी के साथ-साथ राहु देव के ऊपर भी दूध चढ़ाया जाता है। कहा जाता है जो भी व्यक्ति केतु दोष से पीड़ित होता है उसके द्वारा चढ़ाया दूध नीला हो जाता है। जो इस बात का संकेत माना जाता है कि उसे बहुत जल्द कुंडली के दोषों से मुक्ति मिल जाएगी।
तो वहीं एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक ऋषि के श्राप से मुक्ति पाने के लिए केतु देव ने भगवान शिव की अराधना प्रारंभ की। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शिवरात्रि के पावन दिन केतु को दर्शन दिए और उसे श्राप मुक्त कर दिया। कुछ धार्मिक ग्रंथों के अनुसार केतु को सांपों का देवता भी माना जाता है क्योंकि उसका धड़ सांप का और सिर मनुष्य का है।