अप्रतिम सौंदर्य और चतुर्भुजी विष्णु की मूर्तियों की अधिकता के कारण स्कंद पुराण मेंं इसे श्री पुरूषोत्तम और श्री नारायण क्षेत्र कहा गया है। हर युग मेंं इस नगर का अस्तित्व रहा है और सतयुग मेंं बैकुंठपुर, त्रेतायुग मेंं रामपुर और द्वापरयुग मेंं विष्णुपुरी तथा नारायणपुर के नाम से विख्यात यह नगर मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और शबरी की साधना स्थली भी रहा है। भगवान श्रीराम और लक्ष्मण शबरी के जूठे बेर यहीं खाये थे और उन्हें मोक्ष प्रदान करके इस घनघोर दंडकारण्य वन मेंं आर्य संस्कृति के बीज प्रस्फुटित किये थे। शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए शबरी-नारायण नगर बसा है। भगवान श्रीराम का नारायणी रूप आज भी यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं। कदाचित् इसी कारण इसे गुप्त तीर्थधाम कहा गया है। याज्ञवलक्य संहिता और रामावतार चरित्र मेंं इसका उल्लेख है। भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से पुरी (उड़ीसा) ले जाया गया था। प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिला मुख्यालय से 64 किमी की दूरी पर मैकल पर्वत श्रृंखलाओ के मध्य शिवनाथ, जोंक और महानदी के संगम पर स्थित शिवरी नारायण को तीर्थ नगरी प्रयाग जैसी मान्यता मिली है। यहाँ पर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध शिवरी नारायण मंदिर है। पर्यटन की दृष्टी से यह स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां अत्यंत प्राचीन मन्दिर समूह है। इनमें से कुछ मंदिर निम्नानुसार है-
शिवरीनारायण:
इस मंदिर को बडा मंदिर एवं नरनारायण मंदिर भी कहा जाता है। उक्त मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला एवं मुर्तिकला का बेजोड नमूना है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा बाबर ने करवाया था। 9वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक की प्राचीन मुर्तियो की स्थापना है। मंदिर की परिधि 136फीट तथा ऊंचाई 72 फीट है जिसके ऊपर 10 फीट के स्वर्णीम कलश की स्थापना है शायद इसीलिये इस मंदिर का नाम बडा मंदिर भी पडा। सम्पूर्ण मंदिर अत्यन्त सुंदर तथा अलंकृत है जिसमें चारो ओर पत्थरों पर नक्काशी कर लता वल्लरियों व पुष्पों से सजाया गया है। मंदिर अत्यंत भव्य दिखायी देता है।
रामायण मेंं एक प्रसंग आता है जब देवी सीता को ढूंढते हुए भगवान राम और लक्ष्मण दंडकारण्य मेंं भटकते हुए माता शबरी के आश्रम मेंं पहुंच जाते हैं। जहांं शबरी उन्हें अपने जूठे बेर खिलाती है जिसे राम बड़े प्रेम से खा लेते हैं। शिवरी नारायण मंदिर के कारण ही यह स्थान छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। मान्यता है कि इसी स्थान पर प्राचीन समय मेंं भगवान जगन्नाथ जी की प्रतिमा स्थापित रही थी, परंतु बाद मेंं इस प्रतिमा को जगन्नाथ पुरी मेंं ले जाया गया था।
शिवरीनारायण – गुप्त धाम:
देश के प्रचलित चार धाम उत्तर मेंं बद्रीनाथ, दक्षिण मेंं रामेंश्वरम, पूर्व मेंं जगन्नाथपुरी और पश्चिम मेंं द्वारिका धाम स्थित हैं। लेकिन मध्य मेंं स्थित शिवरी नारयण को गुप्तधाम का स्थान प्राप्त है। इस बात का वर्णन रामावतार चरित्र और याज्ञवलक्य संहिता मेंं मिलता है। शबरी का असली नाम श्रमणा था, वह भील सामुदाय के शबर जाति से सम्बन्ध रखती थीं। उनके पिता भीलों के राजा थे। बताया जाता है कि उनका विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था, विवाह से पहले सैकड़ों बकरे-भैंसे बलि के लिए लाये गए जिन्हें देख शबरी को बहुत बुरा लगा कि यह कैसा विवाह जिसके लिए इतने पशुओं की हत्या की जाएगी। शबरी विवाह के एक दिन पहले घर से भाग गई। घर से भाग वे दंडकारण्य पहुंच गई। दंडकारण्य मेंं ऋषि तपस्या किया करते थे, शबरी उनकी सेवा तो करना चाहती थी पर वह हीन जाति की थी और उनको पता था कि उनकी सेवा कोई भी ऋषि स्वीकार नहीं करेंगे। इसके लिए उन्होंने एक रास्ता निकाला, वे सुबह-सुबह ऋषियों के उठने से पहले उनके आश्रम से नदी तक का रास्ता साफ़ कर देती थीं, कांटे बीन कर रास्ते मेंं रेत बिछा देती थी। यह सब वे ऐसे करती थीं कि किसी को इसका पता नहीं चलता था।
एक दिन ऋषि मतंग की नजऱ शबरी पर पड़ी, उनके सेवाभाव से प्रसन्न होकर उन्होंने शबरी को अपने आश्रम मेंं शरण दे दी, इस पर ऋषि का सामाजिक विरोध भी हुआ पर उन्होंने शबरी को अपने आश्रम मेंं ही रखा। जब मतंग ऋषि की मृत्यु का समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम मेंं ही भगवान राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे। मतंग ऋषि की मौत के बात शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा मेंं बीतने लगा, वह अपना आश्रम एकदम साफ़ रखती थीं। रोज राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। बेर मेंं कीड़े न हों और वह खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी। ऐसा करते-करते कई साल बीत गए।
एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुकुमार युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं। वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं, तब तक वे बूढ़ी हो चुकी थीं, लाठी टेक के चलती थीं। लेकिन राम के आने की खबर सुनते ही उन्हें अपनी कोई सुध नहीं रही, वे भागती हुई उनके पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पाँव धोकर बैठाया। अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और लक्ष्मण को भी खाने को कहा।
धान का कटोरांं कहलाने वाला छत्तीसगढ़ का सम्पूर्ण भूभाग मां अन्नपूर्णा की कृपा से प्रतिफलित है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर से 60 कि.मी., बिलासपुर से 64 कि.मी. और रायपुर से 120 कि.मी. व्हाया बलौदाबाजार की दूरी पर पवित्र महानदी के पावन तट पर स्थित शिवरीनारायण की पिश्चम छोर मेंं रामघाट से लगा लक्ष्मीनारायण मंदिर परिसर मेंं दक्षिण मुखी मां अन्नपूर्णा विराजित हैं। काले ग्रेनाइट पत्थर की 12 वीं शताब्दी की अन्यान्य मूर्तियों से सुसज्जित इस मंदिर का जीर्णोधार महंत हजारगिरि की प्रेरणा से बिलाईगढ़ के जमींदार ने 17वीं शताब्दी मेंं कराया था। मंदिर परिसर मेंं भगवान लक्ष्मीनारायण के द्वारपाल जय-विजय और सामने गरूण जी के अलावा दाहिनी ओर चतुर्भुजी गणेश जी जप करने की मुद्रा मेंं स्थित हैं। दक्षिण द्वार से लगे चतुर्भुजी दुर्गा जी अपने वाहन से सटकर खड़ी हैं। मंदिर की बायीं ओर आदिशक्ति महागौरी मां अन्नपूर्णा विराजित हैं। इस मंदिर का पृथक अस्तित्व है। मंदिर के जीर्णोद्धार के समय घेराबंदी होने के कारण मां अन्नपूर्णा और लक्ष्मीनारायण मंदिर एक मंदिर जैसा प्रतीत होता है और लोगों को इस मंदिर के पृथक अस्तित्व का अहसास नहीं होता। अन्नपूर्णा जी की बायीं ओर दक्षिणाभिमुख पवनसुत हनुमान जी विराजमान हैं। पूर्वी प्रवेश द्वार पर एक ओर कालभैरव और दूसरी ओर शीतला माता स्थित है।
टेम्पल सिटी शिवरीनारायण के केशव नारायण मंदिर के आसपासकी खुदाई के दौरान भूगर्भ से छठी शताब्दी का एक प्राचीन मंदिर निकला है। खुदाई मेंं कई उत्कीर्ण शिल्प व प्राचीन ईंटें भी मिली है। खुदाई पिछले कुछ दिनों से रोक दी गई है। अधूरी खुदाई के कारण अभी भी जमीन मेंं कई उत्कीर्ण शिल्प दबे हुए हैं, जिसका ऊपरी हिस्सा स्पष्ट दिखाईं दे रहा है। चित्रोत्पल्ला त्रिवेणी संगम के तट पर लाल बलुआ पत्थरों से निर्मितप्राचीन शबरी नारायण मंदिर संपूर्ण भारत मेंं विख्यात है। प्राचीनकला कृति व उत्कीर्ण शिल्प से निर्मित होने के कारण शबरीनारायण मंदिर तथा पूरे परिसर को भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है। यहां के केशव नारायण मंदिर के चारों ओर प्राचीन कला कृति के कई अवशेष पड़े हुए हैं, जिसे संरक्षित करने केलिए दो वर्ष पूर्व पुरातत्व विभाग द्वारा काम प्रारंभ किया गया। शुरूवात मेंं आस-पास बिखरी प्राचीन कालीन मूर्तियों को एकत्रित कर संग्रहित किया गया। इस दौरान केशव नारायण मंदिर का निचला हिस्सा भूगर्भ मेंं धसा हुआ दिखा, जिसकी खुदाई शुरू कराई गई, तब भूगर्भ के निचले हिस्से मेंं उत्कीर्ण शिल्प के होने का पता चला। साथ ही छठी शताब्दी की प्राचीन ईंटे भी मिली। खुदाई से केशव नारायण मंदिर के निचले हिस्से की उत्कीर्ण शिल्पकला भी दिखाई देने लगी। प्रारंभिक खुदाई के बाद लगभग डेढ़ वर्षों तक काम रोक दिया गया था। कुछ माह पूर्व खुदाई दोबारा शुरू कराई गई, जिससे केशव नारायण मंदिर के नीचले हिस्से मेंं उत्कीर्ण शिल्प स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं।
इसके अलावा भूगर्भ की खुदाई से केशव नारायण मंदिर के समीप छठी व सातवीं शताब्दी के मध्य निर्मित मंदिर, प्राचीन शिलालेख, प्राचीनकालीन ईंटे और कई मूर्तियां बाहर निकली हैं। मंदिर परिसर की गहरी खुदाई से कई प्राचीन कालीन मूर्तियां व मंदिर से संबंधित शिलालेख निकलने की संभावना है। कई प्राचीन शिल्प व कलाकृतियां अभी भी भूगर्भ मेंं समाई हुई है। वहीं केशवनारायण मंदिर के एक ओर खुदाई से जमीन गहरा होने व दूसरी ओर भूगर्भ से निकले प्राचीन ईंट तथा उत्कीर्ण शिल्प साथ ही कई मंदिर तथा उत्कीर्ण शिल्प के उपरी हिस्से स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं, जो आठ से दस फीट खुदाई होने पर निकलेंगे। शिवरीनारायण धाम मेंं पुरातात्विक कलाकृतियों का भंडार हैं। भगवान नरनारायण मंदिर के गर्भ गृह के प्रवेश द्वार मेंं उत्कीर्ण शिल्प कला देखने को मिलती है, उस तरह की कलाकृति देश के किसी अन्य मंदिर मेंं नहीं दिखती।इस मंदिर की उचाईं 172 फीट व परिधी 136फीट बताई जाती है। साथ ही मंदिर मेंं 10 फीट ऊंचा स्वर्ण कलश व गर्भ गृह मेंं चांदी का दरवाजा है।
नर नारायण मंदिर लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित है, जिसमेंं उकेरी गई मूर्तियां प्राचीन शिल्पकला का अनूठा उदाहरण हैं। मंदिर की शिल्पकला लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित इस अद्भुत मंदिर की छटा देती है।