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धन वर्षा करावे यह सिद्धि कनकधारा स्तोत्रम् पर कैसे करें सिद्ध ?

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कनकधारा स्तोत्रम् — आदि शंकराचार्य द्वारा रचित यह महालक्ष्मी स्तुति स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली और फलदायी है। यदि विधिपूर्वक इसका पुरश्चरण किया जाए, तो यह दारिद्र्य नाश, वैभव प्राप्ति, ऋद्धि-सिद्धि, और लक्ष्मी कृपा के लिए अचूक माना गया है।


🌟 कनकधारा स्तोत्रम् पुरश्चरण — संपूर्ण साधना विधि


🪔 1. स्तोत्र परिचय:

  • रचना: आदि शंकराचार्य
  • श्लोक संख्या: 21 श्लोक + 1 फलश्रुति
  • स्रोत: महालक्ष्मी की स्तुति हेतु रचित
  • नाम “कनकधारा” का अर्थ: “सोने की धारा” (स्वर्ण वर्षा की कृपा)

🎯 2. पुरश्चरण का उद्देश्य (सिद्धि):

उद्देश्य फल
दरिद्रता निवारण आर्थिक संकटों का समाधान
वैभव, समृद्धि और सौंदर्य प्राप्ति जीवन में सौभाग्य, संपन्नता और दिव्य आकर्षण
लक्ष्मी सिद्धि स्थायी लक्ष्मी कृपा
कुल की रक्षा परिवार पर लक्ष्मी-रक्षा कवच

🔣 3. पुरश्चरण संख्या निर्धारण:

पुरश्चरण की मान्यता:
एक श्लोक × 1 लाख पाठ = सिद्धि संख्या

  • कुल श्लोक: 21
  • तो पूर्ण पुरश्चरण = 21 × 100000 = 21,00,000 श्लोक-पाठ

👉 पूर्ण कनकधारा स्तोत्रम् के 1 पाठ = 21 श्लोक
तो 1 पाठ = 21 मंत्र

तो:
21,00,000 ÷ 21 = 1,00,000 बार कनकधारा स्तोत्र का पाठ = सिद्धि
➡️ यानी 1 लाख पाठ पूरे स्तोत्र के करने होंगे।


📍 4. साधना स्थल और दिशा:

तत्व विधि
स्थान शांत, एकांत, शुद्ध स्थान (गृह के पूजास्थान में भी संभव)
दिशा उत्तर या पूर्वाभिमुख बैठें
आसन ऊन, कुश या मृगचर्म का आसन
वस्त्र पीले या सफेद शुद्ध वस्त्र
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🕰️ 5. समय निर्धारण:

समय विशेषता
प्रातः काल सर्वश्रेष्ठ — विशेषतः ब्राह्ममुहूर्त (4 से 6 AM)
संध्या काल वैकल्पिक — सूर्यास्त के बाद दीपक के प्रकाश में पाठ करें

🌼 6. साधन सामग्री:

  • पीला या सफेद वस्त्र
  • पीले पुष्प (कमल/गेंदे के फूल)
  • दीपक (घी का, दो मुखी)
  • नैवेद्य: मिश्री, खीर, केले, पान
  • जल पात्र, पीतल या ताम्र थाली
  • लक्ष्मी यंत्र (यदि हो तो)

🧘‍♂️ 7. नियम और संयम:

नियम अनिवार्यता
ब्रह्मचर्य, सात्त्विक भोजन ✔️
रात्रि जागरण वर्जित (साधना काल में) ✔️
लोभ, मोह, क्रोध पर नियंत्रण ✔️
मौन या केवल आवश्यक वाणी ✔️

📜 8. साधना विधि (प्रतिदिन):

● पूर्व विधि:

  1. स्नान कर, शुद्ध वस्त्र धारण करें
  2. लक्ष्मी माता की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें
  3. जल से अर्घ्य दें, दीप-धूप पुष्प अर्पण करें
  4. निम्न ध्यान मंत्र से ध्यान करें:

“सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी लक्ष्मीः पद्मालयाऽर्चिता ॥”

  1. संकल्प लें:

“मैं अमुक नाम, अमुक उद्देश्य हेतु, कनकधारा स्तोत्र का अमुक संख्या में पुरश्चरण कर रहा हूँ।”


● मुख्य पाठ:

  • कनकधारा स्तोत्र का उच्चारण करें (1 पाठ = 21 श्लोक)
  • कम से कम 108 पाठ प्रतिदिन करें (या लक्ष्य अनुसार)
  • माला द्वारा गिनती करें (रुद्राक्ष या स्फटिक की माला)
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● उत्तरकर्म:

  • लक्ष्मी मंत्र से 11 बार जप:

    “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः।”

  • नैवेद्य अर्पण करें, प्रार्थना करें:

“महालक्ष्मि प्रसन्न भव। दारिद्र्यं मे नाशय। सुखं देहि।”


🔥 9. होम, तर्पण, मार्जन, ब्राह्मभोज:

अनुष्ठान विधि
होम 10,000 पाठ = 1,000 आहुति, गाय के घी व तिल से
तर्पण जल + अक्षत + पुष्प से मंत्र उच्चारण के साथ अर्पण
मार्जन वही जल शरीर पर छिड़कें
ब्रह्मभोज 5 या 11 ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, दक्षिणा

📿 10. पाठ तालिका उदाहरण:

अवधि प्रतिदिन पाठ कुल पाठ समय लगने की औसत
21 दिन 4800 पाठ 1,00,800 ~6-8 घंटे/दिन
40 दिन 2500 पाठ 1,00,000 ~4-5 घंटे/दिन
84 दिन 1200 पाठ 1,00,800 ~2.5 घंटे/दिन

आप चाहें तो पहले 10,000 पाठ का लघु पुरश्चरण भी कर सकते हैं।


कनकधारा स्तोत्रम्

अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती

अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥१॥मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥२॥विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम्_
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्_
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥३॥

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आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्_
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्_
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्_
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥६॥

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥७॥

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम्_
अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥८॥

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र_
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥९॥

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥१०॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥११॥

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥१२॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥१३॥

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
संतनोति वचनाङ्गमानसैस्_
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥१४॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥१५॥

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट_
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष_
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥१६॥

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥१७॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥१८॥
– आदि शंकराचार्य कृत