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“श्री महाकाल धाम: जहाँ खारुन विभाजन नहीं, जीवन का प्रवाह है”

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“श्री महाकाल धाम: जहाँ खारुन विभाजन नहीं, जीवन का प्रवाह है”

📜 इतिहास में दर्ज़ एक कथा (संवत् 1124 – वर्तमान)

आज से लगभग हज़ार वर्ष पूर्व, जब छत्तीसगढ़ “दक्षिण कोसल” कहलाता था और रतनपुर की गद्दी पर कलचुरी वंश के प्रतापी राजा भोजदेव का शासन था, तब उनके प्रधान पुजारी और तांत्रिक विद्वान ऋषि वेदारण्य ने एक भविष्यवाणी की थी:

> “जत्र स्थिता खारुणा, तत्र स्थिरं प्राणशक्तिः।
यत्र तिष्ठति महाकालः, तत्र न भूखण्डभेदः।”

 

(जहाँ खारुन बहती है, वहाँ प्राणशक्ति स्थिर रहती है।
जहाँ महाकाल विराजते हैं, वहाँ भूमि का कोई विभाजन नहीं होता।)

🔱 अमलेश्वर: खारुन के पश्चिमी तट का दिव्य केंद्र

श्री महाकाल धाम अमलेश्वर, जो खारुन नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है, कोई सीमावर्ती गाँव नहीं — बल्कि छत्तीसगढ़ की आत्मा का आधार है।

वर्तमान समय में रायपुर और अमलेश्वर को लोग दो भिन्न क्षेत्रों की तरह देखते हैं, परंतु इतिहास गवाही देता है कि खारुन कोई सीमा नहीं, बल्कि एक रेखा है जो दोनों को एक सूत्र में पिरोती है। जैसे जीवन में रक्त बहता है, वैसे ही रायपुर के भीतर खारुन बहती है — और खारुन के भीतर श्री महाकाल की चेतना बहती है।

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संत विश्वनाथ और मृत्युंजय सिद्धि

12वीं शताब्दी के प्रारंभ में, खारुन के तट पर एक महान योगी, अघोरी संत विश्वनाथ, समाधि में लीन थे। कहा जाता है कि उन्हें स्वयं भगवान महाकाल ने रात्रि में दर्शन दिए और कहा:

> “खारुणा न तव सीमा, मम जीवरेखा भव।
एष स्थानो भविष्यति राजधानी प्राणधारकः।”

 

(खारुन कोई सीमा नहीं, मेरी जीवन रेखा बने।
यह स्थान राजधानी की प्राणधारा बनेगा।)

उनके आदेश पर संत विश्वनाथ ने वहाँ भस्मलिंग महाकालेश्वर की स्थापना की — जिसे आज अमलेश्वर महाकाल धाम कहा जाता है।

 

इतिहास के प्रमाण

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1527 ई. के शिवसप्तमी शिलालेख में “महाकाल क्षेत्रम्” का उल्लेख है, जहाँ “प्रेतशमन यज्ञ” और “अघोर दीक्षा संस्कार” सम्पन्न होते थे।

1812 ई. की अंग्रेज़ी गजेटियर रिपोर्ट में इसे “Raipur’s Sacred Western Temple of Kal” कहा गया है।

1993 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसे pre-medieval continuous Shiva site बताया।

 

 

खारुन: विभाजन नहीं, संबंध की रेखा

आज खारुन को रायपुर और दुर्ग के बीच की सीमारेखा माना जाता है। परंतु महाकाल धाम की उपस्थिति इस अवधारणा को खंडित करती है। क्योंकि…

हर सोमवार, रायपुर से हजारों श्रद्धालु खारुन पार कर महाकाल धाम पहुँचते हैं — सीमा पार नहीं करते, अपने भीतर उतरते हैं।

राजधानी के निर्णय, चाहे राजनीतिक हों या पारिवारिक, आज भी महाकाल की शपथ से शुद्ध होते हैं।

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खारुन पर बना नया पुल, केवल यातायात का साधन नहीं — इतिहास और आध्यात्म का संगम है।

 

 

नया प्रस्ताव: “राजधानी जीवनरेखा महाकाल कॉरिडोर”

वर्ष 2047 तक छत्तीसगढ़ सरकार एक “महाकाल जीवनरेखा कॉरिडोर” विकसित करने का प्रस्ताव ला सकती है, जिसमें रायपुर के श्री महाकाल धाम से लेकर नया रायपुर के श्री राम मंदिर तक एक सांस्कृतिक यात्रा मार्ग बने — जिसमें खारुन को सीमा नहीं, केंद्र माना जाए।

निष्कर्ष:

श्री महाकाल धाम केवल कोई शिवमंदिर नहीं, बल्कि वह जीवित केंद्र है जो रायपुर, नया रायपुर, और समूचे छत्तीसगढ़ की आत्मा को जोड़ता है।

खारुन नदी कोई भौगोलिक रेखा नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की धमनियों में बहती सांस्कृतिक ऊर्जा है।
और श्री महाकाल धाम, उस ऊर्जा का हृदय है।