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श्री महाकाल अमलेश्वर एवं सम्राट अशोक की दिव्य कथा

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# 🕉️ *श्री महाकाल अमलेश्वर एवं सम्राट अशोक की दिव्य कथा*

(एक ऐतिहासिक-आध्यात्मिक यात्रा)

## *🔱 भूमिका:*

प्राचीन भारत की धरती वीरों, संतों और महायोगियों की भूमि रही है। ऐसी ही एक दिव्य भूमि है — *श्री महाकाल अमलेश्वर*, जो आज के छत्तीसगढ़ राज्य में, खारून नदी के किनारे स्थित है। यह स्थान सदियों से शिवभक्तों, तपस्वियों और साधकों की साधना स्थली रहा है।

*सम्राट अशोक, जिनका नाम इतिहास के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली सम्राटों में लिया जाता है, यहीं आकर अपने जीवन की एक **अद्भुत मोक्ष-यात्रा* पर निकलते हैं।

## 🏯 *कलिंग युद्ध के बाद आत्ममंथन:*

कलिंग युद्ध (ईसा पूर्व 261) के बाद अशोक के जीवन में एक गहरा परिवर्तन आया। युद्ध के पश्चात उन्होंने युद्ध की विभीषिका देखी — खून, शव, विधवा स्त्रियाँ, अनाथ बच्चे।

> उन्होंने कहा — “क्या यह ही विजय है? क्या यही धर्म है?”

इस मानसिक पीड़ा में उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया, परंतु आत्मा की शांति अब भी अधूरी थी। तभी उनके गुरु *उपगुप्त* ने उन्हें शिव की उपासना का निर्देश दिया।

## 🧭 *अमलेश्वर की यात्रा:*

सम्राट अशोक अपनी शाही सेना और न्यूनतम सेवकों के साथ दक्षिण की ओर बढ़े। कई सप्ताहों की यात्रा के बाद वे *पाटन क्षेत्र* पहुँचे — जो आज दुर्ग जिले में स्थित है।

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वहाँ के ऋषि-मुनियों ने उन्हें बताया कि खारून नदी के पास एक प्राचीन, स्वयंभू शिवलिंग है, जिसे *“अमलेश्वर”* के नाम से जाना जाता है — “जो अमल (निर्मल, पवित्र) कर दे, वही अमलेश्वर।”

## 🐍 *नाग-नागिन के दर्शन:*

सम्राट जब उस घने वन में पहुँचे, तब वहाँ की *शांति और दिव्यता* अद्वितीय थी। उन्होंने वहाँ एक चमत्कार देखा —
शिवलिंग पर एक *नाग और नागिन* का युगल सर्प के रूप में लिपटा हुआ था। कुछ क्षणों बाद वे हटे, और अशोक को शिवलिंग के निकट आने का मार्ग मिला।

स्थानीय संतों ने बताया —

> “यह नाग-नागिन कोई सामान्य सर्प नहीं, बल्कि भगवान शिव के गण हैं। ये इस स्वयंभू लिंग की रक्षा करते हैं। केवल उन्हीं को दर्शन की अनुमति मिलती है जो शुद्ध मन से आए।”

अशोक ने साष्टांग दंडवत किया।

## 🧘‍♂️ *अशोक की तपस्या और दर्शन:*

अशोक ने वहीं *तीन दिन तक उपवास और मौन व्रत* रखा। तीसरी रात्रि को उन्हें स्वप्न में *श्री महाकाल अमलेश्वर* के दर्शन हुए —

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भगवान बोले:

> “हे अशोक! तूने अधर्म से धर्म की ओर यात्रा की। तूने कलिंग की पीड़ा को अपने अंतर्मन से अनुभव किया — यही तेरा *प्रायश्चित्त* है।
> मैं तुझे आशीर्वाद देता हूँ कि तेरा नाम *धर्माशोक* के रूप में युगों तक लिया जाएगा।”

तभी, वहाँ के *ऋषि द्विजगिरि* प्रकट हुए और बोले:

> “राजन्! यह धाम केवल तप और भक्ति से खुलता है। यहाँ जो भी पश्चाताप करता है, उसे शिव साक्षात दर्शन देते हैं। अब आप केवल सम्राट नहीं — *धर्मपथ के रक्षक* बन चुके हैं।”

## 📜 *अमलेश्वर में निर्माण और स्थापनाएं:*

श्री महाकाल अमलेश्वर के दर्शन से प्रेरित होकर, अशोक ने वहाँ:

* एक विश्राम भवन (धर्मशाला)
* एक तपोवन (साधकों के लिए)
* और शिवलिंग की स्थायी रक्षावाटिका का निर्माण करवाया।

कुछ लोगों का मानना है कि वहाँ की *पुरानी ईंटों और प्रस्तर अवशेषों* में मौर्यकालीन स्थापत्य की झलक मिलती है।मगर कालान्तर मे सम्राट अशोक के द्वारा निर्मित विश्राम भवन तपोवन और रक्षा वाटिका प्राकृतिक आपदाओं के कारण भूमि शायी हो गए पर आज भी अमलेश्वर मे खुदाई करने पर पुराने भग्नावशेष मिल जाते हैं,इस बीच भगवान महाकाल श्री अमलेश्वर भी जलमग्न हो गए और उनका पुनः प्राकट्य 2024 मे श्रावण प्रतिपदा को हुआ और फिर भगवान ने स्वयं अपने धाम का निर्माण कराया

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## 🛕 *कथा का प्रभाव और आज की मान्यता:*

इस कथा के प्रभाव से आज भी यह माना जाता है कि:

* *श्री महाकाल अमलेश्वर* का स्मरण करने मात्र से जीवन की *ग्लानि, पाप और क्रोध* शांत हो जाते हैं।
* वहाँ सर्पों की विशेष उपस्थिति आज भी शिव-शक्ति की *रक्षा-संहिता* मानी जाती है।
* भूतपूर्व सम्राटों, महापुरुषों, तपस्वियों और साधकों ने इस धाम को *अद्वितीय सिद्धि-स्थल* माना है।

## 🌺 *संदेश:*

यह कथा केवल अशोक की नहीं — हम सबकी है।
हम सभी जीवन में कहीं न कहीं “कलिंग युद्ध” करते हैं — अपनी गलतियों, पछतावों और क्रोधों के रूप में।
पर जब हम *महाकाल अमलेश्वर* के शरण में आते हैं,
तो हमें मिलता है — *अमलता (निर्मलता), मोक्ष और शिवत्व