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सामाजिक मूल्यों के अनुसार मानव व्यवहार का परिवर्तन एवं परिमार्जन

सामाजिक मूल्यों के अनुसार मानव व्यवहार का परिवर्तन एवं परिमार्जन भी होता है। व्यक्ति अपने व्यवहारों की अभिव्यक्ति सामाजिक सीमाओं में ही करता है और वह सामाजिक सीमाओं के उल्लंघन का प्रयास नहीँ करता है। ऐसा करने से वह समाज का सम्मानित सदस्य ही नहीं माना जाता है वरन् व्यक्ति अपने को सुरक्षित भी अनुभव करता है। व्यक्ति सभी सामाजिक परिस्थितियों से एक समान व्यवहार नहीं करता है, वह सभी परिस्थितियों के सामाजिक मांगो पर विचार करना है और सामजिक मांगों के अनुसार अपने व्यवहार में परिवर्तन एवं परिमार्जन करके...
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मद्यपान एवं औषधि व्यसन

आधुनिक युग में विकास की गति में वृद्धि के साथ-साथ समाज में असामाजिक कृत्यों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है। विभिन्न प्रकार के अपराध, मधपान तथा औषधि व्यसन समाज में दिनो-दिन बढ़ते जा रहे है और एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहे है। भारत में मादक द्रव्यो के उपयोग का पहला संदर्भ ऋग्वेद में मिलता है। लगभग 2000 ईसा पूर्व व्यक्ति विभिन्न उत्सवों पर 'सोम' रस का पान किया करते थे। प्राचीन ग्रंथो में काल नामक मादक द्रव्य के उल्लेख मिलता है जिसका पान आज भी...
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भावात्मक (संवेगात्मक) प्रक्रिया की असामान्यताएँ

व्यक्ति अपने जीवन में विध्या-न-किसी संवेग का अनुभव करता है। प्रेम, क्रोध, भय, हर्ष आदि भावनात्मक अनुभव संवेग के ही उदाहरण है। सवेरा और अथिप्रेश्या। में घनिष्ट संम्बन्ध है। जिस प्रकार अभिप्रेरणा व्यक्ति के व्यवहार को सक्रिय करता है उसी प्रकार संवेग भी व्यवहार को ऊर्जा प्रदान करते है। क्रोध, भय, प्रसन्नता दुख आदि को संवेग कहते है किन्तु ,भूख, प्यास , थकान आदि अवस्थाओं को प्रेरक कहते है। संवेग और प्रेरक के मध्य अतर इस आधार पर किया जा सकता है कि संवेग बाह्य उधिपकों से उत्पन्न होते है...
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