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ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रमुखता प्राप्त है। कालपुरूष की कुंडली में शुक्र ग्रह दूसरे अर्थात् संपत्ति एवं सुख तथा सप्तम स्थान अर्थात् पार्टनर का स्वामी होता है। शुक्र ग्रह सुख, संपत्ति, प्यार, लाभ, यष, क्रियात्मकता का प्रplaतीक है। शुक्र ग्रह की उच्च तथा अनुकूल स्थिति में होने पर सभी प्रकार के सुख साधन की प्राप्ति, कार्य में अनुकूलता तथा यष, लाभ तथा सुंदरता की प्राप्ति होती है। इस ग्रह से जीवन में ऐष्वर्या तथा सुख की प्राप्ति होती है किंतु यदि विपरीत स्थिति या प्रतिकूल स्थान पर हो तो सुख में तथा धन ऐष्वर्या में कमी भी संभावित होती है। शुक्र ग्रह की दषा या अंतरदषा में सुख तथा संपत्ति की प्राप्ति का योग बनता है। किंतु शुक्र ग्रह भोग तथा सुख का साधन होने से इन दषाओं में मेहनत या प्रयास में कमी भी प्रदर्षित होती है। यदि ये दशाएं उम्र की परिपक्वता की स्थिति में बने तो लाभ होता है किंतु शुक्र की दषा या अंतरदषा कैरियर या अध्ययन के समय चले तो पढ़ाई में बाधा, कैरियर की राह में प्रयास में भटकाव से सफलता बाधित होती है। एकाग्रता में कमी तथा स्वप्न की दुनिया में विचरण से दोस्ती या सुख तो प्राप्त होता है किंतु अच्छा पद या प्रतिष्ठा प्राप्ति के मार्ग में प्रयास में विचलन से कैरियर बाधित हो सकता है। कैरियर की उम्र में शुक्र की दशाएं चले तो अभिभावक को बच्चों के व्यवहार में नियंत्रण रखते हुए अनुषासित रखते हुए लगातार अपने प्रयास करने पर जोर देने से कैरियर की बाधाएं दूर होती है। साथ ही ज्योतिष से सलाह लेकर यदि शुक्र का असर व्यवहार पर दिखाई दे तो ग्रह शांति के साथ नियम से दुर्गा कवच का पाठ लाभकारी होता है।
शुक्र का प्रभाव 1-शुक्र की दशा मेष राशि वालों अच्छी नहीं होती है। यदि कुण्डली में शुक्र छठें, आठवें, बारहवें व पाप ग्रहों से युक्त व दृष्ट हो व्यक्ति को शुक्र से सम्बन्धित कई रोगों का सामना करना पड़ता है।
2-अगर सप्तम भाव में बुध व शुक्र हो तो एक स्त्री होती है और सप्तमेश व द्वितीयेश शुक्र के साथ अथवा पाप ग्रहोे के साथ होकर छठे, आठवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो एक स्त्री मर जाती है। फिर दूसरा विवाह होता है।
3-मिथुन लग्न हो, लग्न में बुध, शुक्र, केतु व राहु हो तथा सप्तमेश गुरू दूसरे स्थान में पाप ग्रह के साथ हो व शनि सातवें भाव को देख रहा हो तो दो विवाह होते है लेकिन दोनों स्त्रियॉ मर जाती है
4-कन्या लग्न हो लग्न में शुक्र नीच का हो तो वह स्त्री अपने पति के अलावा अन्य पुरूष से संसर्ग करती है।
4-कन्या लग्न हो लग्न में शुक्र नीच का हो तो वह स्त्री अपने पति के अलावा अन्य पुरूष से संसर्ग करती है।
5-शुक्र धन भाव में हो और सप्तमेश ग्यारहवें भाव में हो तो जातक का विवाह 19 से 22 वर्ष की अवस्था में हो जाता है।
6-शुक्र पंचम भाव में और राहु चतुर्थ भाव में हो तो जातक का विवाह 31 से 33 वर्ष की उम्र में होता है।
7-लग्नेश से शुक्र जितना नजदीक होता है विवाह उतना ही जल्दी होता है।
7-लग्नेश से शुक्र जितना नजदीक होता है विवाह उतना ही जल्दी होता है।
8-शुक्र व मंगल लग्न, चतुर्थ, छठें, सातवें, आठवें व बारहवें हो तो जातक का प्रेम विवाह होता है।
9-शुक्र मंगल के साथ छठें भाव में हो तो मनुष्य कामी होता है। शुक्र मिथुन या तुला राशि में हो तो स्त्री-पुरूष दोनों कामी होते है।