प्रत्येक ग्रह कुछ विकिरण बल या शक्तिबल का केंद्र होता है। ग्रहों के इस विकिरण का संसार के सभी जीवों द्वारा अपनी क्षमता के अनुपात में ग्रहण किया जाता है। उन पर ग्रहों के बल का प्रभाव पड़ेगा जरूर पर कितना पड़ता है यह उनकी अपनी ग्रह स्थिति पर निर्भर करता है। हिंदू ज्योतिष के निर्देषों की अनेक प्रणालियाॅ हैं, जिनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण दषाओं की विवेचना से फलित करना है। किसी भी दषाओं का फल प्रत्येक व्यक्ति पर एक समान नहीं पड़ता। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी ग्रह दषाओं या अंतरदषाओं पर उस ग्रह की स्थिति या प्रभाव के अनुरूप दषाएॅ अपना प्रभाव डालती हैं। किसी ग्रह दषाओं का प्रभाव किसी जातक पर कितना पड़ेगा इसका ज्ञान उस जातक की कंुडली के भाव या भावेष की स्थिति से जाना जाता है। किसी भाव की दषाओं या अंतरदषाओं में प्रभाव का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उस भाव का अधिपति, उसके ग्रह की स्थिति तथा ग्रह पर प्रभाव डालने वाले ग्रह के साथ उसका सामंजस्य तथा उस ग्रह पर स्थिति ग्रह तथा उसके प्रभाव का समायोजन कर ग्रह दषाओं की विवेचना करना चाहिए। किसी दषाओं के प्रभाव को जानने के लिए पाॅच बातें महत्वपूर्ण होती हैं जिसमें भाव का स्वामी, भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रह, भाव में स्थित ग्रह, भाव के स्वामी पर दृष्टि डालने वाले ग्रह तथा भाव स्वामी के साथ युक्ति करने वाले ग्रह। ये पाॅच तथ्य दषानाथ या भुक्तिनाथ के रूप में भाव पर प्रभाव डालते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के मामले में फल के स्वरूप में अंतर होता है। भाव पर प्रभाव डालने वाले अन्य ग्रह जिनकी मुख्य स्वामी के साथ युक्ति है, की अंतरदषा में भाव से संबंधित फल मिलेगा जो लगभग बहुत उत्तम होगा। भाव पर प्रभाव डालने वाले ग्रह जिनकी मुख्य स्वामी के साथ युक्ति है की अंतरदषा में प्रथम भाव से संबंधित फल साधारण प्राप्त होगा। फल का अच्छा या बुरा या साधारण अथवा उत्तम फल प्राप्ति पर ग्रह के सौम्य या कूू्रर होने का भी प्रभाव पड़ता है। कोई ग्रह अनुकूल हो या प्रतिकूल अथवा राजयोग कारक है अथवा मारक इसका प्रभाव भी फल को प्रभावित करता है। इस प्रकार किसी ग्रह दषाओं अथवा अंतरदषाओं में फल प्राप्ति का उत्तम अथवा साधारण योग ज्ञात कर उसके उचित उपाय आजमाते हुए फल प्राप्ति के स्वरूप को बदला जा सकता है।
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