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पितृदोष और उसकी शांति का विधान का शास्त्र प्रमाण

  1. पितृदोष और उसकी शांति का विधान गरुड़ पुराण (पूर्व खंड, अध्याय 40-42): पितृदोष का कारण, संकेत, और उसके निवारण के लिए श्राद्ध, नारायण बली, पिंडदान आदि विधियों का वर्णन है। इसमें वर्णन है कि पितरों के रुष्ट होने से संतानहीनता, गर्भपात, वंश रुकावट जैसे कष्ट होते हैं। 2. सर्पशाप का प्रभाव और शमन महाभारत (आदि पर्व, सर्पसत्र प्रसंग) राजा जनमेजय द्वारा तक्षक नाग को नष्ट करने हेतु किया गया सर्पसत्र यज्ञ, जो उनके पिता परीक्षित की मृत्यु के प्रतिशोध में था। इससे संकेत मिलता है कि सर्प द्वारा...
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सावन माह में शिववास और अग्निवास विशेष महत्व, इस महीने का रुद्राभिषेक है बेहद शुभ दायक – जानिए

सावन के महीने में शिववास और अग्निवास का काफी महत्व...जानिए रायपुर: सावन के महीने में शिववास और अग्निवास का काफी महत्व...
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जीना मुश्किल कर देते हैं राहु-केतु के अशुभ प्रभाव ! जानें इसके निदान

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