❖ अमलेश्वर वट-ग्वाल कथा ❖ श्री महाकाल अमलेश्वर धाम, खारून नदी तट, छत्तीसगढ़ कालखंड:प्राचीन युग के उत्तरार्ध — जब ऋषियों का तप और श्राप एक साथ लोक-जीवन को आकार देते थे। कथा का प्रारंभ एक समय अमलेश्वर धाम के समीपवर्ती गांवों में कुछ ग्वाले (ग्वाल-बाल)रहते थे — चंचल, हँसमुख, परंतु धर्म-विरुद्ध कृत्यों की ओर उन्मुख। वे महाकाल की तपस्थली में नित्य शोर करते, ऋषियों की समाधि भंग करते और वटवृक्ष की शाखाओं पर क्रीड़ा करते। धाम में उस समय एक *परम तपस्वी ऋषि "वरुणकेतु"* तपस्यारत थे, जिन्होंने सात पीढ़ियों...
श्री महाकाल अमलेश्वर प्राकट्य कथा प्रस्तावना छत्तीसगढ़ की भूमि — जहाँ खारून की धाराएँ शिवमंत्रों सी बहती हैं, वहाँ अमलेश्वर के तट पर महाकाल हर 131 वर्षों में प्रकट होते हैं। उनका लिंग न केवल पृथ्वी पर प्रतिष्ठित है, बल्कि वह आग्नेय ज्योति का स्वयंभू स्वरूप है — जिसे किसी ने स्थापित नहीं किया, जिसे किसी ने गढ़ा नहीं — वह *स्वयं अग्नि में प्रकट हुए शिव हैं। १. अघोर ऋषि और प्राचीन भविष्यवाणी बहुत पुरानी बात है — जब न खारून का पुल था, न रायपुर नगर, न...