श्री महाकाल अमलेश्वर प्राकट्य कथा
प्रस्तावना
छत्तीसगढ़ की भूमि — जहाँ खारून की धाराएँ शिवमंत्रों सी बहती हैं, वहाँ अमलेश्वर के तट पर महाकाल हर 131 वर्षों में प्रकट होते हैं। उनका लिंग न केवल पृथ्वी पर प्रतिष्ठित है, बल्कि वह आग्नेय ज्योति का स्वयंभू स्वरूप है — जिसे किसी ने स्थापित नहीं किया, जिसे किसी ने गढ़ा नहीं — वह *स्वयं अग्नि में प्रकट हुए शिव हैं।
१. अघोर ऋषि और प्राचीन भविष्यवाणी
बहुत पुरानी बात है — जब न खारून का पुल था, न रायपुर नगर, न पाटन कस्बा। उस समय, एक *अघोर ऋषि, जो सप्तऋषियों की परंपरा में अंतिम कहे जाते थे, **खारून के पश्चिमी तट पर* घोर तपस्या कर रहे थे। उन्होंने न भोजन किया, न जल पिया — केवल “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे…” का जाप किया।
एक रात जब उन्होंने अग्निकुण्ड में आहुति दी, तो उसमें से प्रकट हुए एक *ज्वालामय शिवलिंग* — जिसे देख स्वयं अघोर भी कंपित हो उठे। तब आकाशवाणी हुई:
> “हे ऋषि! मैं महाकाल इस भूमि पर स्थिर रहूँगा, परन्तु हर 131 वर्षों में एक बार *भूमिशयन* करूंगा — क्योंकि यह भूमि पाप से तप्त होगी, और मुझे उसके केंद्र में जाकर उसे दग्ध करना होगा।”
२. श्रीराम के वनगमन और अमलेश्वर की द्वैत स्थापना
श्रीराम अपने वनवास के समय इस भूभाग से गुज़रे। खारून नदी को पार करते हुए *लक्ष्मण ने दो शिवलिंगों की स्थापना* की योजना बनाई — एक नदी के पूर्वी तट पर (वर्तमान हटकेश्वर), और एक पश्चिमी तट पर (वर्तमान अमलेश्वर)।
हनुमान, शिवभक्त होने के नाते, शिव को अपने कंधे पर उठाकर लाए। परंतु ब्रह्मा को आमंत्रण देने में देर हो गई। क्रोधित लक्ष्मण ने मुहूर्त के अनुरूप समय बचाने हेतु, दोनों शिवलिंग वहीं प्रतिष्ठित कर दिए।
इसलिए कहा जाता है —
हटकेश्वर = शिव का विधिपूर्वक प्रतिष्ठान
अमलेश्वर = शिव का कालपूर्वक और तेजस्वी स्वयम्भू प्राकट्य
3. भूमिशयन और विस्मृति का युग (1873-2004)
समय के चक्र में, जब धर्म दुर्बल हुआ, पाप प्रबल हुए — अमलेश्वर भूमिशाई हो गए। नदी की बाढ़ें, खेतों की जुताई, और लोगों की विस्मृति — सबने शिवलिंग को *भूमिगत कर दिया। परन्तु ऋषिवाणी थी — “जब श्रावण प्रतिपदा चंद्रप्रकाश से दीप्त होगी, तब मैं पुनः जागृत होऊंगा।”
4. स्वप्नादेश और दाऊ अशोक अग्रवाल का पुनःप्राप्ति अभियान (2004)
श्रावण मास, संवत 2061 (2004 ई.)
रायपुर के निकट *दाउ अशोक अग्रवाल* — छत्तीसगढ़ के दानवीर *दाऊ कल्याण सिंह* के अग्रज — को एक रात स्वप्न आया। उस स्वप्न में रुद्राक्षों की वर्षा हो रही थी, शिव तांडव कर रहे थे और कह रहे थे:
“मेरे तेज को उठाओ। मैं जाग चुका हूँ। मेरा पुनः पूजन करो, और मेरी भूमि को फिर से धर्मकेंद्र बनाओ।”
दाउजी ने उसी दिन अमलेश्वर के एक खेत में खुदाई शुरू करवाई — जहाँ से निकला *एक तेजस्वी लिंग, जिसे छूते ही श्रमिक चेतना शून्य हो गए, हवा में कर्पूर की गंध भर गई, और बिना आग के धूनी जल उठी।
5. श्रीमहाकाल धाम की स्थापना और चमत्कारी प्रभाव
शुरुआत में शिवलिंग को टेंट में स्थापित किया गया। फिर भक्तों की संख्या बढ़ी, चमत्कार दिखने लगे — विशेषकर वे लोग जो पितृदोष, कालसर्पदोष, या अकाल मृत्यु के भय से पीड़ित थे, उन्होंने वहाँ अद्भुत शांति पाई।
नारायण नागबली, रुद्राभिषेक, पिंडदान, कालसर्प शांति* जैसे कर्मकांड यहाँ प्रारंभ हुए — और आज श्री महाकाल धाम एक तांत्रिक, वैदिक, और लोकश्रुति से जुड़ा महासिद्ध स्थल बन चुका है।
भूमिशायि महीशोऽयं, खारुने तीर्थवासभृत्।
अग्निकुन्डोद्भवो लिङ्गः, दाहकः पातकाह्वयः॥
अशोकनामा दानार्थी, स्वप्नसंकेतभाजनः।
उत्थाप्य लिङ्गं सम्यक्तः, स्थापयामास धर्मतः॥
प्रतिपद्यां श्रावणस्य, जागृतो महाकालकः।
पुनः धर्मकेंद्रत्वं, अमलेश्वरम् अधारयत्॥