❖ अमलेश्वर वट-ग्वाल कथा ❖
श्री महाकाल अमलेश्वर धाम, खारून नदी तट, छत्तीसगढ़
कालखंड:प्राचीन युग के उत्तरार्ध — जब ऋषियों का तप और श्राप एक साथ लोक-जीवन को आकार देते थे।
कथा का प्रारंभ
एक समय अमलेश्वर धाम के समीपवर्ती गांवों में कुछ ग्वाले (ग्वाल-बाल)रहते थे — चंचल, हँसमुख, परंतु धर्म-विरुद्ध कृत्यों की ओर उन्मुख। वे महाकाल की तपस्थली में नित्य शोर करते, ऋषियों की समाधि भंग करते और वटवृक्ष की शाखाओं पर क्रीड़ा करते।
धाम में उस समय एक *परम तपस्वी ऋषि “वरुणकेतु”* तपस्यारत थे, जिन्होंने सात पीढ़ियों तक वंशविहीन राजाओं को संतान दिलाई थी, परंतु ग्वालों की नासमझी से व्यथित होकर एक दिन उन्होंने उन्हें श्राप दे दिया
“हे नादान बालक! तुमने तपोभूमि की मर्यादा भंग की है। जाओ — वटवृक्ष बनकर इसी अमलेश्वर धाम में 131 वर्षों तक स्थिर रहो। जब स्वयं महाकाल पुनः इस भूमि पर अवतरित होंगे, तभी तुम्हें मोक्ष मिलेगा।”
ग्वालों का पश्चाताप और आशीर्वाद
श्राप मिलते ही वे ग्वाले रुदन करने लगे। तब भगवान अमलेश्वर स्वयं प्रकट हुए और ऋषि से निवेदन किया कि *”हे मुनिवर! यदि इनका हृदय पश्चाताप से भर गया है तो कुछ आशा छोड़िए।”
ऋषि वरुणकेतु ने विनम्रतापूर्वक कहा —
“तो सुनो, ये वटवृक्ष अमलेश्वर धाम की पहचान बनेंगे। और इनका स्पर्श मात्र से भक्तों को वंशवृद्धि का वर मिलेगा।”
भगवान ने जाते-जाते ग्वालों से कहा:
“हे प्रिय ग्वालों! जब मैं 131 वर्षों पश्चात पुनः इस धरा पर अंतिम बार प्रकट होऊँगा, तब शिवलोक को प्रस्थान करने से पहले मैं स्वयं तुम्हें मुक्त करूंगा।”
भविष्यवाणी का वरदान
प्रस्थान से पूर्व उन ग्वालों ने अमलेश्वर धाम को एक दिव्य वचन दिया:
“जो कोई भी इस **भगवालीं वट* में 41 गुरुवार तक *गुड़ से भीगा चना* अर्पित करेगा और ₹1 का समर्पण करेगा, उसे हमारी आत्मा से आशीर्वाद मिलेगा —**
उसका भाग्य बदलेगा,
वह राजकीय पद प्राप्त करेगा,
और एक दिन अमलेश्वर की धरती की नायिका / नायक बनेगा।”
आज भी विश्वास है…
यह वृद्ध वटवृक्ष आज भी अमलेश्वर धाम में खड़ा है — झुका हुआ, किंतु साक्षात् जीवंत।
वहाँ प्रति गुरुवार गुड़-चना चढ़ाने वालों की कतार लगी रहती है।
अनेक स्थानीय जनकथाएँ कहती हैं कि कुछ गुप्त राजनेताओं, अफसरों, और साधकों को *स्वप्न में वही ग्वाले दिखाई दिए* जो उनके भाग्य में परिवर्तन का संकेत दे गए।
वटमूले स्थिताः पूर्वे ग्वाला बालकबालिका:।
तपोभूमौ विध्वंसकाः ऋषेः शापेन वटद्रुमाः॥**
दिने दिने च गुरौ समर्प्य चणकं गुडान्वितं।
मोक्षं लभंते त एव भूयाः राज्यस्य भाजनम्॥**