व्रत एवं त्योहार

अनंत चतुर्दशी व्रत: ऐसे करें भगवान अनंत की पूजा और व्रत

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अनंत चतुर्दषी व्रत

भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्दषी को भगवान अनन्त का व्रत रखा जाता है। अनंत अर्थात् अंत ना होने वाले सृष्टि के कर्ता विष्णु भगवान की भक्ति का दिन होता है। ‘‘अनंत सर्व नागानामधिपः सर्वकामदः, सदा भूयात् प्रसन्नो में यक्तानामभयंकरः’’ मंत्र से भगवान की पूजन करनी चाहिए। इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटो से रक्षा करने वाला अनंतसूत्र बांधा जाता है। युधिष्ठिर द्वारा क्रीडा में हार के पष्चात् राजपट हारने के बाद वन में कष्ट भोग रहे पाण्डवों को भगवान कृष्ण ने अनंत चतुर्दषी का व्रत की सलाह दी थी। भगवान कृष्ण की सलाह अनुसार पांडवों ने अनन्त सूत्र बांधकर व्रत का पालन किया और सभी कष्टों निवृत्ति पाई।

स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजन स्थल पर स्वच्छ भूमि पर कलष स्थापित कर उसपर भगवान विष्णु की शेषनाग पर शैया पर लेटी मूर्ति रखें उनके समक्ष चैदह ग्रंथियों से युत अनंतसूत्र रखें। इसके बाद ऊॅ अनंताय नमः मंत्र से षोडषोपचार विधि से पूजन करें। पूजन उपरांत अनंत सूत्र को मंत्र पढकर हाथ पर बांध लें। ऐसा करने जीवन में सभी कष्टों से रक्षा होती है।

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अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा

अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा कुछ इस प्रकार है। पुराने समय में सुमंत नाम के एक ऋषि हुआ करते थे उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। दोनों की बेटी सुशीला थी। सुशीला थोड़ी बड़ी हुई तो मां दीक्षा का स्वर्गवास हो गया। अब ऋषि को बच्ची के लालन-पालन की चिंता होने लगी तो उन्होंने दूसरा विवाह करने का निर्णय लिया। उनकी दूसरी पत्नी और सुशीला की सौतेली मां का नाम कर्कशा था। वह अपने नाम की तरह ही स्वभाव से भी कर्कश थी। कर्कशा ने सुशीला को बड़े कष्ट दिए। जैसे तैसे सुशीला बड़ी हुई। तब ऋषि सुमंत को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। काफी प्रयासों के बाद कौण्डिन्य ऋषि से सुशीला का विवाह संपन्न हुआ। लेकिन यहां भी सुशीला को दरिद्रता का ही सामना करना पड़ा। उन्हें जंगलों में भटकना पड़ रहा था। एक दिन उन्होंने देखा कि कुछ लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं और हाथ में अनंत रक्षासूत्र भी बांध रहे हैं। सुशीला ने उनसे अनंत भगवान की उपासना के व्रत के महत्व को जानकर पूजा का विधि विधान पूछा और उसका पालन करते हुए अनंत रक्षासूत्र अपनी कलाई पर भी बांध लिया। देखते ही देखते उनके दिन फिरने लगे। कौण्डिन्य ऋषि में अंहकार आ गया कि यह सब उन्होंने अपनी मेहनत से निर्मित किया है। एक साल बाद फिर अनंत चतुर्दशी आई, सुशीला अनंत भगवान का शुक्रिया कर उनकी पूजा आराधना कर अनंत रक्षासूत्र को बांध कर घर लौटी तो कौण्डिन्य को उसके हाथ में बंधा वह अनंत धागा दिखाई दिया और उसके बारे में पूछा। सुशीला ने खुशी-खुशी बताया कि अनंत भगवान की आराधना कर यह रक्षासूत्र बंधवाया है, इसके बाद ही हमारे दिन अच्छे आए हैं। इस पर कौण्डिन्य खुद को अपमानित महसूस किया और सोचने लगे कि उनकी मेहनत का श्रेय सुशीला अपनी पूजा को दे रही है। उन्होंने उस धागे को उतरवा दिया। इससे अनंत भगवान रूष्ट हो गये और देखते ही देखते कौण्डिन्य फिर दरिद्रता आ पड़ी। तब एक विद्वान ऋषि ने उन्हें उनके किए का अहसास करवाया और कौण्डिन्य को अपने कृत्य का पश्चाताप करने की कही। लगातार चौदह वर्षों तक उन्होंने अनंत चतुर्दशी का उपवास रखा उसके पश्चात भगवान श्री हरि प्रसन्न हुए और कौण्डिन्य व सुशीला फिर से सुखपूर्वक रहने लगे। मान्यता है कि पांडवों ने भी अपने कष्ट के दिनों (वनवास) में अनंत चतुर्दशी के व्रत को किया था जिसके पश्चात उन्होंने कौरवों पर विजय हासिल की। यहीं नहीं सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के दिन भी इस व्रत के पश्चात फिरे थे।

अनंत चतुर्दशी या गणेश विसर्जन व्रत कथा एवम पूजा विधि 

अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत देव की पूजा की जाती हैं, इसे विप्पति से उभारने वाला व्रत कहा जाता हैं. इस दिन भगवान अनंत देव को सूत्र चढ़ाया जाता हैं, पूजा के बाद उस सूत्र को रक्षासूत्र अथवा अनंत देव के तुल्य मानकर हाथ में पहना जाता है. माना जाता हैं कि यह सूत्र रक्षा करता हैं.

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