व्रत एवं त्योहार

मौनी अमावस्या: मौन रहकर स्नान और दान करने का विशेष महत्व, अच्छे स्वास्थ्य, ज्ञान की प्राप्ति होगी एवं ग्रह दोष दूर होंगे

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मौनी अमावस्या 24 जनवरी 2020 को मनाई जायेगी। इस दिन मौन रहकर स्नान और दान करने का विशेष महत्व माना गया है। ऐसी मान्यता है कि अगर इस अमावस्या पर मौन रहें तो इससे अच्छे स्वास्थ्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है। ग्रह दोष दूर करने के लिए भी ये अमावस्या खास मानी गई है। पौराणिक कथा अनुसार इस दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था और उन्हीं के नाम से मौनी शब्द की उत्पत्ति हुई। इसलिए इसे मौनी अमावस्या कहा जाता है।

मौनी अमावस्या पर कैसे करें स्नान? इस दिन पवित्र नदियों खासकर गंगा में स्नान करने का विशेष महत्व माना गया है। स्नान से पहले जल को सिर पर लगाकर प्रणाम करें। फिर स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें और जल में काले तिल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें। फिर सूर्य भगवान के मंत्र का जाप करें और यथाशक्ति जरूरतमंदों को दान करें। आप चाहें तो इस दिन व्रत भी रख सकते हैं।

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मौनी अमावस्या का शुभ मुहूर्त: अमावस्या तिथि 24 जनवरी को 02:17 ए एम से 25 जनवरी 03:11 ए एम तक रहेगी। मौनी अमावस्या ब्रह्म मुहूर्त यानी रात के आखिरी पहर में शुरू हो रही है। इसलिए स्नान का यही मुहूर्त सबसे शुभ रहेगा। इस दिन आप सूर्यास्त होने से पहले तक स्नान कर सकते हैं। ज्योतिष अनुसार अमावस्या के दिन ही शनि देव ने जन्म लिया था।

किन चीजों का करें दान: इस दिन गंगा स्नान के पश्चापत तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, कंबल, वस्त्र, अंजन, दर्पण, स्वूर्ण और दूध देने वाली गाय का दान करना ज्यादा फलदायी रहेगा।

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मौनी अमावस्या का महत्व: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है। मौनी अमावस्या पर किये गये दान-पुण्य का फल सौ गुना ज्यादा मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन गंगा का जल अमृत से समान होता है। मौनी अमावस्या को किया गया गंगा स्नान अद्भुत पुण्य प्रदान करता है।

मौनी अमावस्या पर शनि को शांत करने के लिए करें ये उपाय: यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि कमजोर स्थिति में है तो उसे मौनी अमावस्या के दिन सरसों के तेल का दीपक जलाकर शनि स्तोत्र का पाठ कम से कम 11 बार करना चाहिए। मान्यता है कि महाराज दशरथ को शनि देव से वरदान मिला था कि जो इस स्तोत्र का पाठ करेगा उसे शनि कभी नहीं सताएंगे। शनि के इस बीज मंत्र का जाप करें, ‘ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः’।