व्रत एवं त्योहार

Pradosh Vrat 2020: सौम्यवारा प्रदोष, जानिए इसकी महिमा और व्रत विधि

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Pradosh Vrat 2020 Dates, Puja Vidhi, Significance, Katha: भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत का हिंदू धर्म में काफी महत्व माना गया है। हर दिन आने वाले प्रदोष व्रत के नाम और महिमा अलग अलग है। इस बार प्रदोष व्रत 22 जनवरी दिन बुधवार को पड़ रहा है। बुधवार को आने वाले प्रदोष व्रत को सौम्यवारा प्रदोष कहते हैं। हिंदू माह के दोनों पक्षो की त्रयोदशी को ये व्रत रखा जाता है। ये तिथि चंद्र से संबंधित है इसलिए इस दिन व्रत रखने से कुंडली में चंद्र की स्थिति मजबूत होती है। जानिए प्रदोष व्रत की महिमा और व्रत विधि…

प्रदोष व्रत की पहली कथा: एक पौराणिक कथा के अनुसार चंद्र देव एक बार क्षय रोग से पीड़ित हो गये थे। इसके चलते उन्हें कई कष्टों का सामना करना पड़ रहा था। भगवान शिव ने चंद्र देव के उस ‘दोष’ का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी (तेरस) के दिन ही एक तरह से नया जीवन प्रदान किया। इसलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा। प्रदोष का एक अर्थ गोधूलि बेला भी होता है। इसलिए प्रदोष व्रत की पूजा शाम को की जाती है।

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प्रदोष व्रत की इस कथा से जानिए इसकी महिमा: प्राचीनकाल में एक गरीब पुजारी हुआ करता था। उस पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख मांगती हुई शाम तक घर वापस आती थी।
एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, जो कि अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था। उसकी यह हालत पुजारी की पत्नी से देखी नहीं गई, वह उस राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र जैसा रखने लगी।

एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई। वहां उसने ऋषि से शिवजी के प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी तथा घर जाकर अब वह भी प्रदोष व्रत करने लगी। एक बार दोनों बालक वन में घूम रहे थे। उनमें से पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, परंतु राजकुमार वन में ही रह गया। उस राजकुमार ने गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा तो उनसे बात करने लगा। उस कन्या का नाम अंशुमती था। उस दिन वह राजकुमार घर देरी से लौटा।

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राजकुमार दूसरे दिन फिर से उसी जगह पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। तभी अंशुमती के माता-पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया तथा उससे कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है। अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आया और उन्होंने कहा कि शिवजी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते है, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं?

राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी तो उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। बाद में राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ राज्य करने लगा। वहां उस महल में वह पुजारी की पत्नी और पुत्र को आदर के साथ ले आया तथा साथ रखने लगा। पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

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एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे का कारण और रहस्य पूछा, तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया। उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा व महत्व बढ़ गया तथा मान्यतानुसार लोग यह व्रत करने लगे। कई जगहों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत की विधि: इस व्रत में शाम के समय यानी प्रदोष काल में पूजा की जाती है। पूजा से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन लें। इसके बाद पांच रंगों से रंगोली तैयार करें और भगवान शिव को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद विधिवत पूजा करें। पूरे दिन उपवास करें। फलाहार का सेवन कर सकते हैं। इस व्रत को करने से सभी तरह की समस्याएं दूर होने की मान्यता है।